दैनिक जागरण, बिहार में वरिष्ठ पद पर काम कर चुके ज्ञानेश्वर ने अपने एफबी वाल पर दैनिक जागरण को लेकर एक पोस्ट लगाई थी जिसे उन्होंने डिलीट कर दिया है. डिलीट करने का कारण भी उन्होंने खुद बताया रखा है. पहले पढ़िए पोस्ट डिलीट करने का जो कारण उन्होंने बताया है, उसे. उसके बाद वो पोस्ट जिसे उन्होंने डिलीट किया. डिलीट किए गए पोस्ट से पता चलता है कि दैनिक जागरण के लोग गांधी मैदान हादसे के बाद अवकाश में भी विशेष संस्करण निकालना चाहते थे लेकिन सरकुलेशन के इंद्रजीत चौधरी के कारण ऐसा न कर सके.
Gyaneshwar Vatsyayan : दशहरा हादसा के बाद दैनिक जागरण से जुड़े मेरे दोनों पोस्ट को लेकर काफी चर्चा हो चुकी है। आज भी दैनिक जागरण, पटना से अपनत्व तो है ही। मूल टीम के सभी योद्धाओं से अखबार के इतर निजी रिश्ते रहे हैं। मेरे निर्माण में दैनिक जागरण का बड़ा महत्व है। निदेशक सुनील गुप्ता जी सदैव स्नेह से सिंचित करते रहे हैं। आज भी उनका सानिध्य प्राप्त होता रहता है। Anand Tripathi जी अग्रज की भांति है। पोस्ट हटाने का आदेश किया है इन्होंने, आदत नहीं है, फिर भी बड़े भाई का सम्मान कर डिलीट कर दे रहा हूं। मेरी ओर से बहस को यहीं खत्म मानें।
अब पढ़ें वो पोस्ट जिसे ज्ञानेश्वर अपने एफबी वाल से डिलीट कर चुके हैं….
Gyaneshwar Vatsyayan : मुंह पर टेप है। फिर भी दैनिक जागरण, पटना की संपादकीय टीम में भारी गुस्सा है। गांधी मैदान हादसे के बाद अवकाश में भी विशेष संस्करण निकालने में दैनिक भास्कर व हिन्दुस्तान से मात खाए जागरण को खुद जवाब नहीं समझ में आ रहा। सबसे अधिक आहत तो Anand Tripathi जी होंगे, जो मूल टीम में अकेले बच गये हैं। बताया गया है कि तीर-कमान से संपादकीय टीम लैस हो गई थी। लेकिन सर्कुलेशन वाले इन्द्रजीत चौधरी मैदान छोड़कर भाग गये । कहा कि हाकर नहीं मिलेंगे। जज्बाती साथी खुद अखबार बेचने को तैयार थे। ऐसे मौके पर प्रसार संख्या से अधिक आपकी उपस्थिति दर्ज की जाती है।
इन्द्रजीत चौधरी जी को मैं जानता नहीं, सो पूर्वाग्रह नहीं। लेकिन स्पष्ट है कि थल सेना की तरह वे लड़ना नहीं जानते। दैनिक जागरण, पटना मार्केट लीडर ऐसे नहीं बना है। नये लोगों को इतिहास ज्ञान जरूर करना चाहिए। मैं तो पहले छोड़ आया। शैलेन्द्र दीक्षित जी रिटायर हो गये। रामाज्ञा तिवारी रांची में हैं, कोई जानेगा तो जरूर बतायेंगे। आनंद त्रिपाठी जी तो हैं ही। सन् 2000 में पटना में अखबार शुरु हुए महीना नहीं हुआ था।
आठ मई की तारीख आई। अखबारों में हड़ताल का एलान था। लेकिन दैनिक जागरण को मार्केट में आना था। विरोधी सभी अखबारों ने दफ्तर पर चढ़ाई कर दी थी। लेकिन अपने बहादुर सैनिकों ने लड़ाई-कूटाई-छपाई कर मार्केट में दस्तक दे दी थी। दूसरे सभी सन्न रह गये थे। कुछ ही दिनों बाद मैट्रिक का रिजल्ट निकला। तब हार्ड कापी में रिजल्ट का हजारों पन्ना अखबारों को मिलता था। लालू प्रसाद ने जागरण को देने से मना कर दिया। न छपता तो अगले दिन जागरण हारा रहता। कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। खत्म होते समय के कारण रिजल्ट की कंपोजिंग भी असंभव दिख रही थी। आनंद जी, दीक्षित जी, रामाज्ञा जी के साथ हम सभी चौखटों पर दस्तक दे रहे थे। मनाही ऐसी थी कि हार ही दिख रही थी। लेकिन इतनी जल्दी हम सभी हार मानने वाले कहां थे। प्रतियोगी अखबार के पीटीएस डिपार्टमेंट में हमलोगों ने अंत समय में सेंधमारी कर दी। तब पेन ड्राइव भी नहीं आया था। चोरी-छुपे सीडी प्राप्त की गई। अब तो जीत हम लोगों को छू रही थी। सुबह सबसे पहले रिजल्ट के साथ हम लोग मार्केट में थे। बाकी अखबार वाले जागरण के बदले भी अखबार बेचने को आये थे, लेकिन रिजल्ट छपा देख आजू-बाजू झांकते रह गये थे। इसके बाद भी जब कभी विशेष मौके आये, दूसरे दैनिक जागरण के प्रयोग से डरे होते थे। किंतु आज जागरण खुद पीछे छूट गया।
दैनिक जागरण में वरिष्ठ पद पर काम कर चुके ज्ञानेश्वर के फेसबुक वाल से.
Abhishek Anand
October 7, 2014 at 2:22 pm
LOL on the new team of Dainik Jagran 😆 😆 😆 😆