मनी लॉन्ड्रिंग, भ्रष्टाचार, आपराधिक साजिश, जालसाजी और विश्वासघात के आपराधिक मुकदमों से निकल पाना इस डाक्टर के लिए मुश्किल हो गया है…मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मेदांता पर ईडी की कार्रवाई के तहत नरेश त्रेहन समेत 16 लोगों पर एफआईआर
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बुधवार को बड़ी कार्रवाई करते हुए गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल के चेयरमैन डॉ नरेश त्रेहन के खिलाफ केस दर्ज किया है। ईडी ने मेदांता अस्पताल के लिए भूमि आवंटन के संबंध में पीएमएलए के तहत उनके और 15 अन्य लोगों के खिलाफ मामले में रिपोर्ट दर्ज की है।
गुरुग्राम पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर के आधार पर यह मामला दर्ज किया गया था। शनिवार को गुरुग्राम पुलिस ने केस के सिलसिले में डॉ. नरेश त्रेहान और अन्य के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग, भ्रष्टाचार, आपराधिक साजिश, जालसाजी और विश्वासघात के आपराधिक मुकदमे दर्ज किए।
मेदांता अस्पताल की मूल कंपनी का नाम है ग्लोबल हेल्थ प्राइवेट लिमिटेड. केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी ने मेदांता अस्पताल के फाउंडर डॉ. नरेश त्रेहान समेत 16 लोगों के खिलाफ के खिलाफ मामला दर्ज किया है। इसके साथ-साथ ग्लोबल इंफ्राकॉम प्राइवेट लिमिटेड सहित पुंज लॉयड, सुनिल सचदेवा, अनंत जैन, अतुल पुंज के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है। ईडी इस मामले में एक-दो नहीं, बल्कि 7 आरोपों की जांच करेगी।
आरोप है कई शेल कंपनियां बनाकर बाहर के देशों और देश के अन्य राज्यों में व्यक्तिगत कार्यों के लिए पैसे का निवेश किया गया. ईडी शेल कंपनियों के निर्माण और विदेशी निवेश की जांच करेगी. मेदांता मेडिसिटी प्रोजेक्ट के लिए जितनी राशि का निवेश कानूनी तौर डॉ. नरेश त्रेहन और उनकी कंपनी ने बताया है, वह गलत है।
कंपनी के पास उस वक्त निवेश की रकम का मात्र 10 फीसदी ही सबस्क्रिप्शन एमाउंट था, लेकिन इस मसले पर सरकार की ओर से शुरुआती जांच नहीं की गई। कथित कंपनी को बिना पूर्व भुगतान के ही गलत तरीके से शेयर दे दिया गया, जिस पर सवाल उठाना सरकारी अधिकारियों की जिम्मेदारी थी, लेकिन वो नहीं किया गया।
हरियाणा सरकार ने इस मामले में स्वास्थ विभाग से जुड़े किसी अधिकारी को नियुक्त नहीं किया, जिससे प्रोजेक्ट पर नजर नहीं रखी जा सकी। इस कारण मेडिसिटी प्रोजेक्ट तय समय पर पूरा नहीं हो सका. ये भी इस मामले में बड़ी लापरवाही और संदेह का बिंदु है.
मेडिसिटी प्रोजेक्ट मामले में कंपनी की वित्तीय मामलों से जुड़ी जांच नहीं की गई, यानी कंपनी के बैंक एकाउंट सहित अन्य संपत्तियों की आकलन का काम नहीं हुआ। सरकार ने कंपनी और उसके लेन-देन को ऑडिट कराने का काम भी नहीं किया।
शुरुआती रिपोर्ट में इस बात की भी जानकारी मिली है कि मेडिसिटी प्रोजेक्ट को पास कराने में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार हुआ। मेडिसिटी को प्रोजेक्ट दिलाने के लिए दूसरी कंपनी को आगे नहीं आने दिया गया, जिसका फायदा मेडिसिटी प्रोजेक्ट से जुड़ी कंपनियों को हुआ। इसकी भी अब जांच होगी। किसी सरकारी प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद कंप्लीट होने के बाद एक ऑक्युपेशन प्रमाणपत्र मिलता है। आरोप ये भी है कि वह प्रमाणपत्र भी भ्रष्टाचार के माध्यम से प्राप्त किया गया। हकीकत ये है कि ये प्रोजेक्ट पिछले 15 सालों से अधूरा पड़ा है।
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