Mahendra Mishra : विदेशी मीडिया में भारत के हालात को लेकर बहस शुरू हो गई है। मशहूर पत्रिका इकोनॉमिस्ट भी अब इससे अछूती नहीं रही। पत्रिका में छपे एक लेख में मौजूदा हालात को लेकर गहरी चिंता जाहिर की गई है। साथ ही मौजूदा घटनाओं को भारत की छवि के लिए बड़ा धक्का करार दिया गया है। लेख में बताया गया है कि इससे देश में होने वाला विदेशी निवेश सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। और सारी चीजों के लिए प्रधानमंत्री मोदी को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया गया है।
Arun Maheshwari : 5 मार्च के ‘इकोनॉमिस्ट’ में मोदी सरकार पर एक बहुत तीखी टिप्पणी प्रकाशित हुई है जिसका शीर्षक है – अंतिम शरण-स्थली : नरेन्द्र मोदी की सरकार भारतीय देशभक्ति को परिभाषित करना और उस पर अपना मालिकाना हक़ क़ायम करना चाहती है। इस टिप्पणी में कहा गया है कि भाजपा की राजनीति की गंदी बातों के चलते सत्ताधारी पार्टी के आर्थिक विकास के एजेंडे से लोगों का ध्यान बँट रहा है।
इस लेख में भाजपा के नेताओं के नफ़रत फैलाने वाले भाषणों, रोहित वेमुला को आत्म हत्या के लिये मजबूर करने वाली करतूतों और जेएनयू पर किये जा रहे हमलों, अदालत में कन्हैया कुमार की बुरी तरह पिटाई का विस्तृत ब्यौरा दिया गया है। यह भी बताया गया है कि जेएनयू के छात्रों पर देशद्रोह के आरोप लगाने के लिये जिन सात वीडियो का इस्तेमाल किया गया उनमें से दो वीडियो फ़र्ज़ी पाये गये हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिये इन सारी बुरी ख़बरों के बावजूद उन्होंने अपनी मानव संसाधन मंत्री के उत्तेजक भाषण के लिये ट्वीट करके उनकी पीठ ठोकने के अलावा अब तक कुछ नहीं किया है। ऐसा लगता है जैसे वे आज भी विपक्ष में हैं । बड़ी-बड़ी रैलियाँ कर रहे है और कह रहे हैं कि उनके ख़िलाफ़ साज़िशें की जा रही है।
इकोनॉमिस्ट ने इसे दुनिया की एक सबसे तेज़ गति से बढ़ रही अर्थ-व्यवस्था के लिये दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। अर्थनीति के क्षेत्र में मोदी से जो उम्मीदें की गई थी, वे ग़लत साबित हो रही है। ऐसा लगता है जैसे संकीर्ण सांप्रदायिक राजनीति के ज़रिये ही वे कुछ राज्यों में होने वाले चुनावों में उतरने की तैयारी कर रहे हैं।
पत्रकार महेंद्र मिश्र और साहित्यकार अरुण माहेश्वरी के फेसबुक वॉल से.
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