20 साल की शोभा ने कॉलेज से असम में पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद बड़े संस्थान से अपने करियर की शुरुआत करने का सपना देखा, 22 साल की दिशा आदिवासी इलाके झारखंड से नौकरी मिलते ही घरवालों को जैसे-तैसे मनाकर हैदराबाद के सपने देखने लगी….
शोभा, दिशा और ना जाने कितने सैकड़ों ऐसे खुली आँखों से देखे गए सपने थे जो मानो हैदराबाद आकर साकार होने की ओर अग्रसर हुए थे।
ईटीवी भारत, रामोजी फ़िल्म सिटी के अंतर्गत चलाया जाने वाला ऐसा संस्थान है जहां आपको कर्मचारियों के रूप में पूरे भारत की एक झलक छोटे से न्यूज़रूम में देखने को मिलेगी।
हर साल तमाम पत्रकारिता विश्वविद्यालयों से निकले युवा पत्रकार अपने करियर को किक-स्टार्ट देने यहां का रूख करते हैं. एक तरह से देखें तो पूरे साल यहां भर्तियों का सिलसिला चलता रहता है.
युवा पत्रकारों पर मैं इसलिए शुरुआत से केंद्रित हूं क्योंकि 10-15 साल पत्रकारिता में धक्के खा चुके संपादक स्तर के वरिष्ठ लोगों के लिए तो यहां एकदम फील गुड सरकारी नौकरी टाइप माहौल तैयार है.
अब आते हैं, संस्थान में हाल में मची उथलपुथल पर, ईटीवी भारत से 2 दिनों के भीतर वहां संचालित होने वाली लगभग सभी डेस्क से स्टाफ में भारी कटौती की गई, कुछ डेस्क पर नौकरी जाने वालों का आंकड़ा दहाई में है।
निकाले जाने वाले लोगों में अधिकतर 19-26 साल के युवा पत्रकार हैं जिनमें से कितनों की तो यह शुरुआत थी. संस्थान अचानक से अपनी तमाम वजहों का हवाला देकर एक के बाद एक करते करते करीब 200-250 कर्मचारियों से इस्तीफा लिखवा चुका है.
संस्थान का हिस्सा होने के नाते मैंने इस पूरी प्रक्रिया को करीब से देखा है, नौकरी गंवाने वाले अधिकांश युवा कर्मचारी है जो देश के अलग-अलग हिस्सों से महीना भर, हफ्ते भर पहले आये थे, हालांकि संस्थान से तनख्वाह देने की बात कही है लेकिन सोचिए उन युवाओं की मानसिक व्यवस्था किस तरह का भूचाल इस समय झेल रही होगी ?
किसी के पास 3 महीने का कार्य अनुभव का कागज होगा तो कुछ के पास 6 महीने का, नोएडा की पत्रकारों की मीलों में क्या ये कागज देखे भी जाएंगे ?
वहीं नौकरी से निकाले जाने के तरीके पर भी दबे मुँह कई चर्चाएं हैं, 24 साल का अनुराग सुबह अपनी माँ को नौकरी पर जाने का कहकर निकलता है और शाम के कॉल में नौकरी चली गई थी.
ये युवा पत्रकारों की फौज अब अपने पीछे आने वाले साथियों को क्या फीडबैक देगी, संस्थान का छोड़ भी दें तो पत्रकारिता की दहलीज पर खड़े इन युवाओं का इस तरह स्वागत ना जाने कितनों को आगे की चुनौतियां झेलने की हिम्मत देगा ?
ना जाने नोएडा जाकर, दिल्ली जाकर ये युवा अगली किसी नौकरी देने वाले से किस तरह का अनुभव साझा करेंगे, किसी के कागज चीख-चीख कर उसको फिर फ्रेशर कह रहे होंगे तो किसी को इस तरह नौकरी जाने के पीछे के सवाल झकझोर रहे होंगे ?…..इन्हीं सवालों के साथ आपको छोड़ता हूं।
बाकी संस्थान की अंदरूनी और तकनीकी बातें करना अनुचित और बेतुका होगा, बेवजह मोरल ड्यूटी का पाठ पढ़ाने वाले दूर रहें प्लीज !
(Note : आखिर में मेरी पहचान सार्वजनिक नहीं करने के पीछे मेरी निजी समस्याएं हैं, मकसद बात रखना था और ऊपर दिए गए सभी पात्र सच और नाम काल्पनिक हैं)
-भुक्तभोगी
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