सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आपके सोशल मीडिया अकॉउंटस को बैंक, पैन और मोबाइल की तरह आधार के साथ लिंक करने की दलील दी है. वैसे यह मामला मद्रास, बॉम्बे और एमपी के हाई कोर्ट में पहले से चल रहा है. फेसबुक इन तीनों मामले में याचिकाकर्ता है और वो खुद पूरे मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुँच गई है.
फेसबुक का कहना है कि 12 नंबर का आधार और बायोमीट्रिक सोशल मीडिया अकाउंट से लिंक करने पर यूजर्स की प्राइवेसी खत्म हो जाएगी और यह प्राइवेसी नियमों का उल्लंघन होगा. फेसबुक का कहना है कि वह यूजर्स का आधार नंबर किसी थर्ड पार्टी के साथ शेयर नहीं कर सकते हैं. आखिर सोचिए फेसबुक को अचानक आपकी प्राइवेसी की चिंता क्यों सताने लगी है?
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि सोशल मीडिया प्रोफाइल को आधार नंबर से जोड़ने पर फेक न्यूज, आपत्तिजनक और पोर्नोग्राफिक कंटेंट पोस्ट करने वालों की पहचान हो पाएगी. ऐसा होने से सोशल मीडिया के जरिए राष्ट्रविरोधी और आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने वालों पर भी नकेल कसी जा सकेगी. सरकार के इरादे तो नेक हैं लेकिन क्या गारंटी है कि इसका बेजा इस्तेमाल अपने राजनीतिक विरोधियों को टारगेट करने में नहीं करेगी. सोशल मीडिया को आधार से लिंक करना दोधारी तलवार है. इसके फायदे और नुकसान दोनों हैं.
जहां तक फेंक न्यूज, पोर्नोग्राफी कंटेंट की बात है तो वो आईपी एड्रेस से ट्रेस हो सकता है और उसको ब्लाक करके आसानी से इस काम को किया जा सकता है. आज तक सरकार 135 करोड़ की जनसंख्या के सिम कार्ड की वैरिफिकेशन तो ठीक से कर नहीं पाई है. पुलिस की जांच में भी 100 में से 90 सिम नकली पहचान पर लिए हुी निकलते हैं. ऐसे में सरकार सोशल मीडिया को आधार से लिंक करके क्या तीर मार लेगी?
लेकिन फेसबुक क्यों विरोध कर रहा है, इसका गणित समझिए. उसे आपकी निजता से कोई मतलब नहीं है. उसको आपका डाटा चाहिए और वो इसे किसी भी हालत में सरकार के साथ शेयर नहीं करेगा क्योंकि उसके व्यावसायिक हित इससे जुड़े हुए हैं. वो आपकी निजी जानकारी से लेकर आपका यूजर पैटर्न एनालिटिक्स के जरिये सब कुछ बेचता है. जबरदस्त प्रोफाइलिंग करता है इसके लिए. एक पूरी रिसर्च टीम बना रखी है और आपको लगता है वो सब यूं ही सरकार को थाली में रखकर दे देगा.
सरकार को फेक न्यूज और आतंकवादी गतिविधियों की इतनी चिंता है तो सबसे पहले सभी मोबाइल आपरेटर से बोलकर एक महीने के अंदर सारे मोबाइल नंबरों की केवाईसी पूरी कराए और वो बिना आधार के भी हो सकता है. अगर मोबाइल नंबर वेरिफाइड होगा तो सोशल मीडिया अकॉउंट अपने आप वेरिफाइड हो जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने बैंक और मोबाइल नंबर के लिए आधार की अनिवार्यता समाप्त कर दी है. सरकार ने आसान तरीका खोजा है. एक तीर से वो कई शिकार करने का सोच रही है. वो पहले से मंदी में डूबी मोबाइल कंपनीयो के पैसे बचानी चाहती है और अपनी अगली चुनावी व डिजिटल रणनीति के लिए पूरा डाटा इकट्ठा कर रही है.
न तो फेसबुक और न तो सरकार को आपकी निजता की फिक्र है. उन्हें बस फिक्र डाटा की है. जैसा मैं हमेशा कहता हूँ. व्यापार और राजनीति डाटा से चलती है. डाटा आज की दुनिया का सबसे बड़ा धन है. आपको इसको बचाना है तो संभल जाइये वरना यह डाटा चोर एक दिन आपकी जिंदगी से सब कुछ चुरा लेंगे और आपको पता भी नही चलेगा.
लेखक अपूर्व भारद्वाज पत्रकार रहे हैं. इन दिनों खुद की साफ्टवेयर कंसल्टेंसी के जरिए डिजिटल प्रोजेक्ट्स पर काम करते हैं.
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