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दैनिक भास्कर ने भारत की कराई थू थू, फिनलैंड की पीएम का फर्जी इंटरव्यू छाप दिया

दैनिक भास्कर अखबार ने 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन फिनलैंड की महिला प्रधानमंत्री का फर्जी इंटरव्यू छाप दिया. इस इंटरव्यू में बताया गया है कि अमेरिका में दैनिक भास्कर के प्रतिनिधि सिद्धार्थ राजहंस ने फिनलैंड जाकर वहां की प्रधानमंत्री सना मरीन से बातचीत की.

बताया जाता है कि दैनिक भास्कर को इसके अमेरिकी फ्रीलांसर ने बड़ा वाला उल्लू बना दिया. इससे न सिर्फ भास्कर समूह की ब्रांड इमेज की वाट लगी है बल्कि भारत की भी विदेश में थू थू हो रही है. फिनलैंड की पीएम का फर्जी इंटरव्यू फ्रंट पेज बड़ा-बड़ा छाप दिया गया. यह पाठकों के साथ कितना बड़ा धोखा है.

8 मार्च को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन कुछ एक्सक्लूसिव देने के चक्कर में भास्कर के DB पोस्ट ने फिनलैंड की महिला प्रधानमंत्री का 15 सवालों का पूरा का पूरा फेक इंटरव्यू पब्लिश कर दिया. हालाँकि बाद में DB पोस्ट ने अपने ऑनलाइन संस्करण से इस इंटरव्यू को हटा लिया.

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फिनलैंड के प्राइम मिनिस्टर ऑफिस ने यह कन्फर्म किया है कि प्रधानमंत्री सना मरीन से न तो कोई पत्रकार मिला और न ही उन्हें कोई सवालों की लिस्ट भेजी गई. यह इंटरव्यू पूरी तरह से झूठा है.

टीवी मीडिया में तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने की अनेक घटनाएं सामने आती रहती हैं लेकिन अब प्रिंट मीडिया भी घटियापने के इस दौड़ में शामिल हो गया है.

ये यूं ही नहीं है कि भारतीय मीडिया की क्रेडिबिलिटी विश्व में 140वें स्थान पर है. इस पतन में ऐसे फेक इंटरव्यू और तोड़ी-मरोड़ी-दबाई गई खबरों का बहुत बड़ा स्थान है.

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भास्कर ग्रुप में अगर थोड़ी भी शर्म बाकी है तो डीबी पोस्ट में फ्रंट पेज पर अपनी इस गल्ती के लिए पाठकों से और फिनलैंड की पीएम से माफी मांगनी चाहिए. बाकी, फिनलैंड की वेबसाइट्स पर भारतीय मीडिया हाउस के फर्जीवाड़े की कहानी खूब गूंज रही है. देखें स्क्रीनशॉट-

फिनलैंड की जिस वेबसाइट पर उपरोक्त खबर छपी है, उसका लिंक ये है-

https://newsnowfinland.fi/domestic/indian-news-outlet-publishes-fake-sanna-marin-interview

इस घटनाक्रम पर पत्रकार Soumitra Roy फेसबुक पर लिखते हैं-

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इस साल महिला दिवस से ठीक पहले दैनिक भास्कर के एक साथी मित्र को फ़ोन किया। बातों में पता चला कि महिला दिवस की तैयारी है। अच्छा लगा कि भास्कर के दिवंगत नेशनल एडिटर कल्पेश याग्निक की परंपरा अभी भी जारी है। लेकिन 8 मार्च का आउटपुट देखकर समझ आ गया कि कंटेंट के स्तर पर मोटी सैलरी पाने वाले संपादकों की फौज सिर्फ खानापूर्ति करने में लगी है।

अभी मित्र गिरीश मालवीय की पोस्ट पढ़ी। पता चला कि फ़िनलैंड की पीएम सना मरीन का झूठा इंटरव्यू छाप मारा है। उनके दफ्तर से इसका खंडन भी आ गया है। लगता है कि इस अखबार के पास ऐसे बौद्धिक निर्धन संपादकों को झेलने के सिवा और कोई चारा भी नहीं है। दूर-दूर से जाहिल टाइप के, चाटुकार इसमें भर्ती होकर सैलरी जम्प ले रहे हैं।

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कभी एमडी सुधीर अग्रवाल अखबार को पढ़ते थे। ग़लतियों पर पेशी होती थी। लगता है, वह भी बंद हो गया। कभी ऐसे समूह संपादक भी होते थे, जो हर छोटी गलती पर भी मेमो लिखा करते थे। अब सुधीरजी को ऐसे पढ़ने वाले संपादक बोझ लगते हैं।

तो फिर अब अखबार के सारे गए-गुजरे संपादक सामूहिक इस्तीफा देंगे? या फिर नेशनल एडिटर इस्तीफ़ा देंगे? बिल्कुल नहीं। क्यों दें? इस्तीफे के बाद इन सफेद हाथियों को कौन पालेगा? फिर एमडी सुधीर अग्रवाल ही इस्तीफा देकर दैनिक भास्कर को बंद कर दें।

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यही बेहतर रास्ता है।

इंदौर के विश्लेषक गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.

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