अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
पूरी दुनिया का अंडर वर्ल्ड अपना धंधा चलाने के लिए बड़े पैमाने पर वसूली करता है और इसके लिए वह अपने गुर्गों को शिकार को धमकाने के काम में लगा देता है. इसे जबरन उगाही या extortion कहा जाता है.
भारत के धनकुबेरों ने राजनीतिक दलों को अरबों खरबों का ‘चंदा’ दिया या उनसे जबरन उगाही हुई, यह आरोप प्रत्यारोप राजनीतिक धड़ों के बीच एसबीआई की लिस्ट आते ही तेज हो गया है.
इसकी वजह साफ है. देश के राजनीतिक दलों को अरबों- खरबों का ‘चंदा’ देने के लिए जिन्होंने सबसे ज्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे, उनमें से ज्यादातर कंपनियां ED वाले मिश्रा जी और इनकम टैक्स विभाग के अधिकारियों के कोप का शिकार थीं. एक तरफ जहां ED वाले मिश्रा जी इन कंपनियों से जबरदस्त तरीके से खफा थे, वहीं मोदी जी को मिश्रा जी इतने प्रिय थे कि सुप्रीम कोर्ट को बरसों लग गए सरकार को यह समझाने में कि ED प्रमुख बनाए रखने की मियाद इतनी बार नहीं बढ़ाई जा सकती, जितनी सरकार पहले ही बढ़ा चुकी थी.
मिश्रा जी के सेवा विस्तार में मोदी सरकार में नियम कानूनों को तोड़ने की आतुरता और मिश्रा जी के कोप भाजन की शिकार कंपनियों का ही इन बांड्स का सबसे बड़ा खरीदार निकलना, इन दोनों बातों में आपस में कोई नाता है या नहीं, अभी किसी को नहीं पता.
लेकिन शक के आधार पर इस रिश्ते की जांच तो बनती ही है. हालांकि अभी यह पता नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट अब इसमें आगे क्या कदम उठाएगा.
इधर जनता की अदालत में इस चंदे को लेकर दो खेमे बंट ही चुके हैं. भाजपा समर्थक इसे कतई गलत नहीं मानेंगे और इसी तरीके से कांग्रेस, तृणमूल आदि को चंदा मिलने का मुद्दा उठाकर अपने दामन के दाग जैसे दाग वाले दामन सामने लाएंगे.
उनका तर्क वाजिब भी लगता है क्योंकि कांग्रेस और तृणमूल या अन्य दल भी तो कई राज्यों में सत्ता में हैं. उन्हें जो चंदा मिला है, इसकी क्या गारंटी है कि वह जबरन उगाही या घूस जैसा गंदा धन नहीं है?
मगर यहां यह समझना जरूरी है कि भाजपा, कांग्रेस या तृणमूल या देश के सारे दल मिलकर भी किसी तरह की जबरन उगाही अथवा घूस को वाजिब नहीं ठहरा सकते.
लिहाजा सुप्रीम कोर्ट को इस बात की जांच तो करनी ही चाहिए कि केंद्र सरकार या विभिन्न राज्य सरकारों में बैठे दल जिन धनकुबेरों से चंदा ले रहे हैं, वे इसे देने के पहले या बाद में इन दलों की सरकारों से किस तरह का लाभ ले चुके हैं.
भले ही पूरा देश अपने अपने दलों के समर्थन में खड़ा हो मगर लोकतंत्र को अगर बचाना है तो इस जबरन उगाही या घूस के आरोप की जांच सुप्रीम कोर्ट को हर कीमत पर करवानी ही चाहिए.