चंद्र भूषण-
एक सजदा समुंदर के नाम
समुद्र से मेरा संपर्क गिनती के कुल आठ बार ही हो सका है। हर बार अलग-अलग जगहों पर। पूरब में कोलकाता और पुरी के तटों से बंगाल की खाड़ी। पश्चिम में मुंबई और गोवा के तटों से अरब सागर और दक्षिण में एक बार काकीनाडा, एक बार विशाखापत्तनम और एक बार चेन्नई को चूमते हिंद महासागर से मुलाकात। इसमें एक पारी मॉरीशस की भी जोड़ी जा सकती है, जब अंटार्कटिका से आती हवाओं को छूने का मौका मिला था। समुद्र के किनारे रहने वाले कभी जान भी नहीं सकते कि तट से हजार मील दूर ठेठ मैदानी, हिंटरलैंड इलाकों में पैदा होकर लगभग अपना सारा जीवन वहीं गुजार देने वालों को समुद्र में उतर कर कैसा लगता है।
हिंदी में ‘अकबरनामा’ के एक अध्याय का शीर्षक ‘समुद्र दर्शन’ पढ़कर मैं चौंका था। गुजरात विजय के बाद सम्राट अकबर जब समुद्र देखने पहुंचे तो वहां घुटनों पर आकर सजदे में बैठ गए थे। समुद्र की विराटता के सामने कुछ ऐसी ही तुच्छता का अनुभव मुझे भी हर बार होता रहा है, हालांकि अकबर से जुड़कर मेरी यह बात किसी को बेतुकी लग सकती है। पुरी में इसे जरा और गहराई से महसूस करने के लिए आधी रात तक मैं कमर भर नमकीन पानी में घंटों अधलेटा पड़ा थपेड़े खाता रहता था। थोड़ा पहले गोवा में सपरिवार जाने के चलते ऐसी बेवकूफियां करने का मौका नहीं मिला।
बहरहाल, समुद्र दर्शन का आपका अनुभव तब तक अधूरा ही रहेगा, जब तक आप किनारे पर नहाकर या स्टीमर पर छोटी-मोटी यात्राओं की शक्ल में सिर्फ समुद्र का पाला छूकर चले आएंगे। मेरे लिए गोवा की यात्रा इस मायने में संतोषप्रद रही कि गोवा स्टेट म्यूजियम ने मुझे समुद्र के आदिम रहस्यों के करीब जाने में मदद पहुंचाई। इस म्यूजियम का एक पवेलियन पूरी तरह से समुद्री यात्राओं से जुड़ी टेक्नॉलजी के विकास के लिए समर्पित है। जिंदगी को लेकर नजरिया बदल देने वाली चीजें यहां मौजूद हैं, हालांकि ज्यादातर चीजों का इतिहास पुर्तगाली है। संभवतः यह पवेलियन पुर्तगालियों का ही बनवाया हुआ है, गोवा सरकार ने सिर्फ इसका अधिग्रहण करके इसे अपने म्यूजियम का हिस्सा बना लिया है।
इनका जायजा लेते हुए मानव इतिहास का एक ऐसा मोड़ आपको साफ नजर आता है, जहां पहुंच कर लोग समुद्र में अपनी डोंगी सिर्फ तटीय इलाकों में एक जगह से दूसरी जगह, या किसी नजदीकी द्वीप तक जाने के लिए नहीं उतारते। वे आगे और पीछे से बिलकुल अलग बनावट वाली गहरी नावें बनाते हैं, उनमें कई सारे लंबे-ऊंचे पाल बांधते हैं, नीचे ढेर सारा सूखा खाना भर लेते हैं और अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर कुछ नया, अनजाना खोज निकालने के लिए गहरे समुद्रों की ओर निकल पड़ते हैं।
आगे कुछ मिलेगा या नहीं, कोई नहीं जानता, लेकिन इतना पता है कि किसी वजह से नाव पलटी तो कुछ साल बाद कहानियां ही बाहर आएंगी। दिन में अंदाजे से चलते हैं। सूरज बहुत भरोसेमंद मार्गदर्शक नहीं है। रात में अपनी यात्रा की दिशा जानने के लिए वे ध्रुव तारे का सहारा लेते हैं, जो बादल और कोहरे में किसी काम नहीं आता। कुतुबनुमा से पहले एस्ट्रोलैब नाम का पीतल का बना हुआ एक सरल कोणमापी यंत्र दिखता है। लेकिन मौसम ठीक हो तो भी हिलती सतह पर कोण की सटीक माप इससे नहीं हो पाती।
जिंदा लौटने वाले तकनीक की छोटी-छोटी गलतियां दुरुस्त करने में सालोंसाल लगा देते हैं, फिर भी लुटे-पिटे जहाजी ताजादम जहाजियों को बॉन वोयेज (शुभ यात्रा) बोलते हैं! सफर एक दिन के लिए भी थमता नहीं। हम-आप हवाई जहाज से चौबीस घंटे में सात समंदर पार कर सकते हैं। लेकिन समुद्र से ही नहीं, अपनी जीवजाति की जिजीविषा से भी थोड़ी नजदीकी बनानी है तो उस तड़प को हमें अपने भीतर महसूस करना होगा, जो उन बेनाम जहाजियों को बार-बार जोखिम भरी यात्राओं पर भगाए रखती थी।