गोरखपुर : मजीठिया वेज की संस्तुतियों को लागू कराने के सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अमल में लाने के लिए गोरखपुर जर्नलिस्टस प्रेस क्लब द्वारा बनाए गए दबाव के बाद गोरखपुर का श्रम विभाग हरकत में आ गया है। यहां से प्रकाशित होने वाले दस अखबारों के प्रबंधन से मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियां लागू करने के सबंध में पांच बिंदुओं पर नोटिस से जवाब तलब किया गया है। इस नोटिस के बाद अखबार प्रबंधकों के होश उड गए हैं। सबसे ज्यादा मुसीबत एचआर के गले आ पड़ी है। उन्हें सूझ नहीं रहा है कि क्या जवाब दें। लिहाजा नोटिस की अवधि लगभग समाप्त होने को है। मात्र तीन अखबारों ने आधा-अधूरा जवाब भेजा है। श्रम विभाग का कहना है कि यदि तय अवधि में जवाब नहीं आते हैं तो अगली कार्रवाई की जाएगी। इसमें औचक छापे पड़ेंगे और जानकारी ली जाएगी। इस दौरान कर्मचारियों के बयान भी दर्ज किए जाएंगे।
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने मई माह में देश के सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों को विशेष श्रम अधिकारी नियुक्त कर मीडिया संस्थानों में मजीठिया वेज बोर्ड लागू होने के संबंध में जांच पड़ताल कराकर रिपोर्ट भेजने का आदेश दिया था। 28 जून तक श्रम अधिकारियों की नियुक्ति हो जानी थी। 24 जून को गोरखपुर में जर्नलिस्टस प्रेस क्लब के अध्यक्ष अशोक चौधरी की अगुआई में पत्रकारों के एक दल ने उप श्रमायुक्त को सुप्रीम कोर्ट के उक्त आदेश की प्रति सौंपकर पत्रकारों व प्रेसकर्मियों को मजीठिया वेज बोर्ड के अनुरूप वेतन दिलाने की मांग की थी।
वार्ता के दौरान अधिकारी ने बताया था कि अभी उनके पास शासन से इस संबंध में कोई निर्देश नहीं आया है। ज्ञापन को शासन को भेजकर निर्देश लेंगे। इसके बाद इस ज्ञापन को श्रमायुक्त को भेजा गया। ज्ञापन मिलने के बाद 28 जून को श्रमायुक्त ने पूरे प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में सभी उप श्रमायुक्तों को मीडिया हाउसों की जांच करने का निर्देश दिया। मालूम हो सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हो रही इस जांच पडताल में श्रम विभाग को डीएम की अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी। वे सीधे बिना किसी सूचना के मीडिया संस्थानों का औचक निरीक्षण कर सकेंगे।
पता चला है कि नोटिस मिलने के बाद अखबारों के प्रबंधन ने पूर्व की भांति श्रम निरीक्षकों की सेटिग करने की कोशिश की। उनसे मनुहार की गयी कि वे प्रबंधन के मनोनुकूल रिपोर्ट भेज दें। एक अखबार के प्रबंधन ने तो इसके एवज में बड़ी रिश्वत की भी अपने वकील के माध्यम से पेशकश कर दी लेकिन निरीक्षकों ने हाथ खड़े कर दिये और साफ कहा कि वे इस मामले में कोई मदद नहीं कर पाएंगे। मामला सुप्रीम कोर्ट का है, लिहाजा वे अपनी नौकरी के साथ खिलवाड़ नहीं करेंगे।
सेटिंग के सभी प्रयास विफल हो जाने के बाद प्रबंधन ने अपने संस्थानों के भीतर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। स्ट्रिंगरों की हाजिरी बंद है। सारे रिकार्ड छिपा लिए गए हैं। एचआर विभाग के कमरे में कर्मियों के प्रवेश पर निगरानी रखी जा रही है। जिला कार्यालयों पर जांच में गए श्रम अधिकारियों को गलत सूचनाएं दी गयीं। उन्हें दिन में 11 बजे बुलाया गया। जब कोई कर्मी आफिस में होता ही नहीं लेकिन कर्मियों ने भी मजीठिया लेने के लिए कमर कस ली है। जिलों से उपश्रमायुक्त कार्यालय पर अभिलेखों के साथ पत्रकारों के शिकायती पत्र पहुंच रहे हैं। बस्ती, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, देवरिया, पडरौना के दो बड़े राष्ट्रीय अखबारों के पत्रकारों ने श्रम निरीक्षकों से सायं 6 से 7 के बीच में अखबारों के आफिस में आने को कहा है ताकि प्रबंधन के फर्जीवाड़े का असली नजारा मिल सके।
सूत्रों के अनुसार गोरखपुर के दो राष्ट्रीय अखबारों की कथित फ्रेंचाइजी कंपनियों को भी नोटिस भेजा गया है। टेक्नो वे और कंचन नाम की इन कंपनियों से उक्त दोनों अखबारों के प्रोडक्शन, विज्ञापन, डीपीटी आदि विभागों के कर्मियों को जुड़ा बताया गया है। एक अधिकारी ने बताया कि यह फर्जीवाड़ा मजीठिया से बचने के लिए किया गया लगता है क्योंकि पिछले तीन साल में होने वाली सारी भर्तियां इन्हीं कंपनियों में दिखाई गयी हैं।
इधर मीडियाकर्मियों में भी एकजुटता दिख रही है। दैनिक जागरण के 17 पूर्व कर्मियों ने मजीठिया वेज बोर्ड के नवंबर 2011 से बकाया एरियर की मांग करते हुए प्रबंधन और श्रम विभाग को ज्ञापन भेजा है। इस ज्ञापन में उप श्रमायुक्त से बताया गया है कि जागरण प्रबंधन ने दूर के स्थानों पर उनका स्थानांतरण कर त्यागपत्र देने के लिए विवश किया। उनकी उम्र 54 से 56 के बीच पहुंच चुकी थी। ऐसे में उनकी सेवामुक्ति को बीआरएस का लाभ मिलना चाहिए।
पत्रकार अशोक चौधरी से संपर्क : [email protected]