Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

आइंस्टीन ने ग्रैविटेशनल वेव्ज़ को बिना किसी ऑब्ज़र्वेटरी के सौ साल पहले सुन लिया था!

Sushobhit Saktawat : अल्बर्ट आइंस्टीन उर्फ अल्बर्ट आइंश्टाइन के कान बहुत तेज़ थे! पूरे सौ साल पहले, वर्ष 1916 में, अल्बर्ट आइंश्टाइन ने एक दूरगामी प्रत्याशा जताई थी। उस प्रत्याशा की तरंगें आज आकर हमसे टकरा रही हैं लेकिन आइंश्टाइन ने उन तरंगों को बहुत पहले ही सुन लिया था। आइंश्टाइन के कान सचमुच सवा तेज़ थे!

Sushobhit Saktawat : अल्बर्ट आइंस्टीन उर्फ अल्बर्ट आइंश्टाइन के कान बहुत तेज़ थे! पूरे सौ साल पहले, वर्ष 1916 में, अल्बर्ट आइंश्टाइन ने एक दूरगामी प्रत्याशा जताई थी। उस प्रत्याशा की तरंगें आज आकर हमसे टकरा रही हैं लेकिन आइंश्टाइन ने उन तरंगों को बहुत पहले ही सुन लिया था। आइंश्टाइन के कान सचमुच सवा तेज़ थे!

Advertisement. Scroll to continue reading.

“थ्योरी ऑफ़ जनरल रिलेटिविटी” के ब्योरों पर बात करते हुए आइंश्टाइन ने कहा था कि “हो ना हो, ब्रह्मांड में ऐसी तरंगें ज़रूर मौजूद हैं, जो सुदूर अतीत में हुए बड़े टकरावों के कारण निर्मित हुई हैं।” इन तरंगों को उसने “ग्रैविटेशनल वेव्ज़” कहकर पुकारा था।

किसी पोखर में कंकर फेंके जाने से जो लहरें बनती हैं, वर्तुलाकार वलय के रूप में केंद्र से दूर खिसकते हुए, वैसी ही तरंगें अंतरिक्ष में भी होना चाहिए, देश, काल, दूरी, द्रव्यमान, घनत्व, परिविस्तार और सुदूर आरंभ की ख़बर देने वालीं, ऐसा आइंश्टाइन का मानना था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

स्टीफ़न हॉकिंग ने एक बार कहा था कि “अल्बर्ट वॉज़ ऑलवेज़ द स्मार्टेस्ट मैन इन द रूम!” इसलिए जब अल्बर्ट ने वैसा कहा तो उसके आसपास मौजूद लोगों ने सहमति में सिर हिलाकर कहा कि “जी, ठीक है, आप कह रहे हैं, तो वैसा ही होगा!”

लेकिन विज्ञान “होगा” की भाषा में नहीं सोचता है। विज्ञान को “है” चाहिए। विज्ञान के लिए प्रत्यक्ष ही प्रमाण है। साक्ष्य ही सत्य है!

Advertisement. Scroll to continue reading.

अल्बर्ट के समय वैसे यंत्र नहीं थे, जो इन “ग्रैविटेशनल वेव्ज़” को सुन सकें, लेकिन अल्बर्ट ने कहा है तो ज़रूर उसका कोई आधार होगा, यह कल्पना एक सदी तक वैज्ञानिकों के ज़ेहन में गूंजती रही।

अल्बर्ट आइंस्टीन

Advertisement. Scroll to continue reading.

और फिर, आइंश्टाइन की प्रत्याशा के पूरे सौ साल बाद, यानी वर्ष 2016 में, लिविंग्स्टन, अमेरिका की “लीगो ऑब्ज़र्वेटरी” में वैज्ञानिकों ने पहली बार “ग्रैविटेशनल वेव्ज़” को सचमुच में सुना। उनकी ख़ुशी और हैरत का ठिकाना नहीं रहा!

Advertisement. Scroll to continue reading.

1.3 अरब प्रकाशवर्ष पूर्व दो “ब्लैक होल” आपस में टकराकर एक-दूसरे में मिल गए थे, उनकी “ग्रैविटेशनल वेव्ज़” अंतरिक्ष में उठी लहरों की तरह पृथ्वी को छूते हुए आगे बढ़ रही थीं। इन “वेव्ज़” को अभी तक हमारे कान सुनने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन “लीगो ऑब्ज़र्वेटरी” ने इन्हें सुन लिया।

उन लोगों ने उस अद्भुत ध्वनि को एक “जेंटल चर्प” की संज्ञा दी। यानी एक मुलायम सी चहचहाहट!

Advertisement. Scroll to continue reading.

1.3 अरब प्रकाशवर्ष पहले घटित हुई एक घटना ने हमें हाथ हिलाकर “वेव” किया था। उसने कहा था कि “देखो, मैं यहां पर हूं, मेरा अस्त‍ित्व है। और तुम लोग अकेले नहीं हो!” अचानक, इस अंतरिक्ष में होने वाली घटनाएं एक सातत्य में श्रंखलाबद्ध हो गई थीं, और सबकुछ अंधेरे में नहीं था।

“ब्रोकाज़ ब्रेन” में नमक के एक कण पर विचार करते हुए कार्ल सैगन ने कहा था : “उस बुद्ध‍ि का कोई महत्व नहीं है, जो सबकुछ जान ले, या जिसके लिए सबकुछ अगम्य हो। हम इन दोनों अतियों के बीच में समय-समय पर कुछ चीज़ें जानते रहते हैं। और जो कुछ हम जानते हैं, वह अकारण नहीं होता।”

Advertisement. Scroll to continue reading.

उसके बाद से तीन और “ग्रैविटेशनल वेव्ज़” को सुना जा चुका है, जिसमें दो “न्यूट्रॉन स्टार्स” के आपस में टकराने से निर्मित हुई तरंगें भी शामिल थीं। अब उम्मीदें लगाई जा रही हैं कि शायद 13.8 अरब साल पुरानी उस परिघटना को भी सुना जा सकेगा, जब “बिग बैंग” के बाद ब्रह्मांड की उत्पत्त‍ि हुई थी!

जिस दिन “लीगो ऑब्ज़र्वेटरी” में पहली बार “ग्रैविटेशनल वेव्ज़” को सुना गया, उसी दिन यह तय हो गया था कि यह खोज भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीतेगी!

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेकिन सवाल यह था कि नोबेल पुरस्कार दिया किसे जाए। इस प्रयोग में एक हज़ार से भी ज़्यादा वैज्ञानिक शामिल थे। और पिछले चालीस सालों से यह प्रयोग अनेक रूपों में जारी था।

पंद्रह दिन पहले भौतिकी के नोबेल पुरस्कारों की घोषणा की गई और “ग्रैविटेशनल वेव्ज़” के अनुसंधान के लिए तीन अमेरिकियों को यह पुरस्कार दिया गया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ठीक है! वे तीन अमेरिकी इस अभियान के दलनायक थे, प्रतीकात्मक रूप से उन्हें यह पुरस्कार दिया जा सकता था, यह भलीभांति जानते हुए कि वे तीन इस अनुसंधान का अंतिम निर्णायक बिंदु भर थे, संपूर्ण अनुसंधान नहीं।

जब मैंने सुना कि राइनर वेस्स ने “ग्रैविटेशनल वेव्ज़” की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार जीता तो “काव्य-न्याय” की एक युक्त‍ि मेरे ज़ेहन में कौंधी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

और वो ये कि वास्तव में राइनर वेस्स और उसके साथियों ने उस “तरंग” को सुना भर ही था, जो कि अल्बर्ट आइंश्टाइन के दिमाग़ में सौ साल पहले कौंधी थी!

कि अल्बर्ट आइंश्टाइन का सटीक “पर्सेप्शन” अपने आपमें किसी “बिग बैंग” से कम नहीं था, जिसने भौतिकी के भुवन में “वेव्ज़” उत्पन्न कर दी थीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

भौतिकी की दुनिया कितनी मासूम है कि 1.3 अरब साल पहले हुए दो “ब्लैकहोल” के टकराव को वह आज सुनती है, लेकिन उसके आज सुने जाने को नहीं, उसकी उस पूरी की पूरी टाइमलाइन के प्रसार को वह रेखांकित करती है। लेकिन 100 साल पहले चली एक “विचार-तरंग” की टाइमलाइन को वह फ़रवरी 2016 में जाकर अवस्थित कर देती है और कहती है : “आख़ि‍रकार, “अब” जाकर हमने “ग्रैविटेशनल वेव्ज़” को सुन लिया!”

इन “ग्रैविटेशनल वेव्ज़” को अल्बर्ट आइंश्टाइन ने सौ साल पहले सुन लिया था, बिना किसी “लीगो ऑब्ज़र्वेटरी” की मदद के, “अब” तो हमने सहमति में सिर हिलाया है कि “हां अल्बर्ट, तुम सही थे।”

Advertisement. Scroll to continue reading.

राइनर वेस्स और उनकी टीम को दिया गया नोबेल पुरस्कार केवल एक विनयशील स्मृति चिह्न भर है। वह एक सौजन्य पुरस्कार है। जीत का सेहरा “ग्रैविटेशनल वेव्ज़” के अनुसंधान के समूचे सौ साला उद्यम के सिर ही बांधा जावै, जिसका आरंभ बिंदु अल्बर्ट आइंश्टाइन के तेज़तर्रार कान थे।

एवमस्तु।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सोशल मीडिया के चर्चित लेखक और पत्रकार सुशोभित शक्तावत की एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement