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सियासत

जीएसटी ने बाजार का चाल चेहरा चरित्र सब बिगाड़ दिया, व्यापारी परेशान

-निरंजन परिहार-
बाजार की हालत ठीक नहीं है। व्यापारी परेशान हैं। उनमें भी ज्वेलर सबसे ज्यादा परेशानी झेल रहे हैं। गोल्ड की खरीद पर पैन कार्ड़ पहले से ही परेशानी का कारण था। अब जीएसटी झंड बनकर छाती पर खड़ी हो गई है। नए झंझट पैदा हो रहे हैं। जीएसटी में कागजी कारवाई इतनी ज्यादा है कि ज्वेलर धंधा करे कि कागजात संभाले। सीए लूट रहे हैं। और छोटे व्यापारी मर रहे हैं। जीएसटी को जी का जंजाल कहा जा रहा है। इधर, गोल्ड के भाव बढ़ रहे हैं,  लेकिन ग्राहक नजर नहीं आ रहे। बाजार की चाल चेहरा और चरित्र सब बिगड़े हुए हैं। ज्वेलर की हालत खराब है। कमाई ठप है और लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। देसी बाजार में कहीं कही, अगर डिमांड है भी, तो कारीगर नहीं मिल रहे हैं।

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-निरंजन परिहार-
बाजार की हालत ठीक नहीं है। व्यापारी परेशान हैं। उनमें भी ज्वेलर सबसे ज्यादा परेशानी झेल रहे हैं। गोल्ड की खरीद पर पैन कार्ड़ पहले से ही परेशानी का कारण था। अब जीएसटी झंड बनकर छाती पर खड़ी हो गई है। नए झंझट पैदा हो रहे हैं। जीएसटी में कागजी कारवाई इतनी ज्यादा है कि ज्वेलर धंधा करे कि कागजात संभाले। सीए लूट रहे हैं। और छोटे व्यापारी मर रहे हैं। जीएसटी को जी का जंजाल कहा जा रहा है। इधर, गोल्ड के भाव बढ़ रहे हैं,  लेकिन ग्राहक नजर नहीं आ रहे। बाजार की चाल चेहरा और चरित्र सब बिगड़े हुए हैं। ज्वेलर की हालत खराब है। कमाई ठप है और लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। देसी बाजार में कहीं कही, अगर डिमांड है भी, तो कारीगर नहीं मिल रहे हैं।

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बीते करीब डेढ़ साल भर से यही हाल है। वजह सिर्फ एक ही है कि पहले से ही डिमांड की कमी से जुझ रही ज्वेलरी इंडस्ट्री को ग्लोबल इकॉनोमी के लो ट्रेंड और सरकारी पाबंदियों की वजह से नई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है कि अगर कुछ दिन यही हाल और जारी रहा, तो लेने के देने पड़ जाएंगे। ऊपर से ज्वेलरी इंडस्ट्री पर शिकंजा कसने की कोशिश में सरकारी फैसलों ने बाजार को परेशान कर रखा है। पहले इंपोर्ट ड्यूटी, फिर बजट, बाद में नोट बंदी और अब जीएसटी। लगने लगा है कि जैसे सारे ईमानदार तो जैसे, सरकारों में ही बैठे होते हैं और चोर तो सिर्फ व्यापारी ही हैं।

वैसे देखा जाए तो, परेशानी जरूर है, लेकिन धंधा बंद नहीं होगा। उम्मीद सिर्फ एक ही है कि भगवान राम, भगवान आदिनाथ और भगवान महावीर के जमाने से गोल्ड हर किसी लुभाता रहा है। आज भी इसकी चमक के प्रति लोगों का आकर्षण जारी है और भविष्य में भी यह चमकता रहेगा। सो, धंधा तो बंद नहीं होगा। हां, मुश्किलें जरूर बढ़ रही हैं। क्या करें, धंधा मुश्किलों के साथ करना होगा। व्यापारी मुश्किलें झेलने को तैयार है। हालांकि सरकारें आम जनता के रास्ते आसान करने के लिए बनती है। लोग उनको चुनते भी इसीलिए हैं। लेकिन वर्तमान सरकार से व्यापारी खुश नहीं है।

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कहते हैं कि कांग्रेस के राज में कमाई का मजा ही कुछ और था। वैसे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निजी ईमानदारी के बारे में किसी को भी कोई शक नहीं है, लेकिन परेशानी यह है कि उनके राज में व्यापार करने की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। जीएसटी ने बहुत बड़ा बंबू फंसा रखा है। अभी तो तीन महीने ही बीते हैं, आगे क्या होगा, राम जाने। सरकारी लफड़े लगातार विकसित होते जा रहे है। कागजी कारवाई परेशानी का सबब है। लेकिन व्यापारी करें, तो क्या करे। मजबूरी है। धंधा है, तो करना ही है। इधर गोल्ड के रेट्स में कुछ दिन से हाई ट्रेड दिख रहा है, मौका कमाई का है। जिन्होंने लो रेट्स में गोल्ड खरीदकर ज्वेलरी बनाई थी, उनके लिए बिक्री करके कमाई का अवसर है। बाजार से ग्राहक गायब हैं लेकिन यह ट्रेंड कितने दिन जारी रहेगा, कहा नहीं जा सकता।

हमारे हिंदुस्तान में रंगबिरंगे रत्नों से जड़ी ज्वेलरी पहनने से भले किसी की हैसियत में चार चांद लग जाते हों, लेकिन इनको बनाने वालों का इससे मोह भंग होने लगा है। मुंबई में भी हालात कोई खास ठीक नहीं है। डेढ़ साल में कोई दो हजार से भी ज्यादा कारीगर मुंबई छोड़कर फिर से गांव चले गए हैं। यहां ज्यादातर कारीगर बंगाली हैं। मुंबई की ज्वेलरी इंडस्ट्री में स्किल्ड मैनपावर सबसे बड़ी जरूरत है। उधर, ज्वेलरी में कलर स्टोन व टेक्नोलॉजी का भी खूब इस्तेमाल हो रहा है। हाथों की जगह मशीनों ने ले ली है। डिमांड में कमी से जूझ रहे ज्वेलरी और कलर स्टोन के धंधे को अब स्कील्ड मेनपावर की किल्लत का भी सामना करना पड़ रहा है। लोग नहीं मिल रहे हैं। देश में ज्वेलरी और कलर स्टोन के सबसे बड़े बाजार जयपुर में भी ट्रेंड कारीगरों की भारी कमी देखी जा रही है। जितनी मांग है उसके मुकाबले करीब आधे कारीगर मिल पा रहे हैं। जयपुर की ज्वेलरी का दुनिया भर मे नाम है, वहां की ज्वेलरी की खूबसूरती लुभाती है। लेकिन कारीगरों की कमी से ज्वेलरी इंडस्ट्री काफी दिक्कत में हैं।

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उधर, ज्वेलरी का इंपोर्ट लगातार घट रहा है। इंपोर्टर्स परेशान है कि करें, तो क्या करें। रास्ता कोई सूझ नहीं रहा है। और सरकार है कि उसके रवैये से साफ लग रहा है जैसे, उसे व्यापारियों की कोई चिंता ही नहीं है। कुछ लोगों को जरूर लगता है कि अगले कुछ महीनों में भारत सरकार जैसे ही अपना बजट तैयार करने बैठेगी, हमारी अर्थ व्यवस्था में सुधार की गुंजाइश बढ़ेगी। लेकिन वर्तमान माहौल में क्या खाक गुंजाइश बढ़ेगी, सरकार ने हालत तो खराब करके रखी है।

लेखक निरंजन परिहार राजनीतिक विश्लेषक हैं.

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0 Comments

  1. डॉ. मत्स्येन्द्र प्रभाकर

    September 19, 2017 at 10:54 am

    बाज़ार का कोई ‘चरित्र’ होता है क्या भड़ासी भाइयों!
    __________________________________
    बाज़ार ‘वेश्या’ की तरह केवल बेहिसाब पैसे का होता है! ऐसे की चाल को ‘कोठीबाज़ों’ का ‘अनर्गल पैसा’ बिगाड़ता है! फ़िर भी वेश्या कोई अंकुश पसन्द नहीं करती!
    इसका अवसर जाने की शुरुआत से बाज़ार रूपी वेश्या बेचैन है! उपचार की आशा में वह (बाज़ार) अनाचार के प्रचार के लिए हमजोलियों को उकसा रहा है! इस (बाज़ार) का चेहरा निश्चित बिगड़ेगा क्योंकि अभी तक इसका रूप-शृंगार मदहोश करने वाला पैसा सुधारता/सँवारता था!
    बहरहाल, अब चेहरा ख़राब तो हो रहा है, पर वज़ा अनर्गल आमदनी का हिसाब के दायरे में होना है! बाकी कुछ कहने की ज़ुरूरत नहीं!!!

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