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सुख-दुख

बहुत दूर गईं जीवन संगिनी की तीसरी पुण्यतिथि पर याद!

Harpal Singh Bhatia : हमेशा से यही सुनते आया हूं कि वक्त हर ज़ख्म को भर देता है। बात एक हद तक सही भी है लेकिन ये भी सच है कि ज़ख्म भले ही भर जाता हो मगर उसका निशान हमेशा रहता है। जब-जब हाथ उस निशान को छूते हैं तो ज़ख्म का दर्द फिर से हरा होने लगता है । तुम्हारा जाना भी कुछ इसी तरह है।

देखो ना आज तीन साल बीत गये तुम्हें गये हुए। शायद सामने से कभी कह नहीं पाया मगर मैं जब भी घर से निकलता था तब तुम्हारा हंसता हुआ चेहरा देख कर निकलता था और जब भी घर लौटता तब तुम्हारा हंसता हुआ चेहरा देखने की आदत सी पड़ गयी थी। तुमने मुझे खुद में बसा लिया था। तभी तो घर से बाहर भी रहता था तो लगता था जैसे घर पर ही हूं क्योंकि मेरे बदले तुम यहां रहती थी न ।

अब देखो ना, घर से जाते हुए भी आंखें तुम्हें खोजती हैं और घर आने के बाद भी। ये आदत नहीं गयी मेरी और ना ही कभी जाएगी। लोग समझते हैं हरपाल हालात से उबर गया मगर ये तो हरपाल का मन ही जानता है कि तुम्हारे बिना बीतता हुआ हर पल कितना दुख पहुंचाता है। और सच कहूं तो तुम्हारी इन यादों से कभी मैं बाहर आना भी नहीं चाहता। तुम्हें दूर जाने से रोक पाना मेरे हाथ में नहीं था मगर तुम्हारी यादों को बनाए रखना तो मेरे हाथ में है। और मैं इसमें खुश हूं। बस तुम्हारी याद आने पर उदास हो जाता हूं थोड़ा मगर फिर जब अपने बच्चों के चेहरे देखता हूं तो फिर खुद को हिम्मत देता हूं।

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ऐसा लगता है जाते हुए तुम अपनी हिम्मत भी मुझे ही दे गयी । तभी तो इतना कुछ संभाल पा रहा हूं। यश और परी धीरे-धीरे बड़े हो रहे हैं। उनकी आंखों में तुम्हारी कमी दिखती है लेकिन मेरे बच्चे भी तुम्हारी तरह ही समझदार हैं वे दोनों पापा को ज़्यादा तंग नहीं करते। सब कुछ वैसा ही है लेकिन तुम्हारे बाद मैं ज़रा सा बदल गया हूं क्योंकि मुझे अब सब कुछ पहले जैसा नहीं लगता है। एक रिश्ता नाम का होता है जिसे भुलाया जा सकता है मगर जो रिश्ता रूह से जुड़ जाए उसे भला कैसे भुलाया जा सकता है। तुम मेरी रूह से जुड़ी हुई हो। मैं जानता हूं तुम्हारी नज़रें हर वक्त मुझ पर बनी हुई हैं। मेरी आंख से बह रहे इन आंसुओं को देख कर भी तुम तड़प उठती होगी ये सोच कर कि काश मैं वहां होती तो इन्हें पोंछ देती।

लेकिन तुम चिंता मत करना ये आंसू बस तुम्हारे सामने आते हैं। दुनिया के लिए हरपाल बहुत मजबूत है। मेरे पास तुम्हें देने के लिए अब बस ये आंसू ही तो बचे हैं। इन्हें सहेज कर रखना। मैं जितना कह नहीं सकता उससे ज़्यादा इन आंसुओं में छुपा है। तुम महसूस करना। सपनों में आती जाती रहा करो। तुम्हें देखने का मन करता है। इसी बहाने तुम्हें देख भी लियी करूंगा। बाक़ी किसी बात की चिंता मत करना। मैं अच्छा हूं क्योंकि मुझे हमारे बच्चों को हमेशा अच्छा रखना है।

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कुछ दूरियां ऐसी होती हैं
जो पास हमेशा रहती हैं
कुछ अपने ऐसे होते हैं
जो दूर कभी नहीं जाते हैं
वो दिल में ही बस जाते हैं
वो रूह में समा जाते हैं

तुम्हारा अपना
हरपाल

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लेखक हरपाल सिंह भाटिया सिद्धार्थनगर के पत्रकार और समाजसेवी हैं.

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