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हाथरस पर मत चूको चौहान की तरह फांद पड़े चैनल!

-अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-

  • सुशांत मामले पर अर्णब ने अपनी अनूठी शैली और अंजाम तक मामला पहुंचाने की जिद से रिपब्लिक को नंबर वन चैनल बनाकर बदल दी टीवी न्यूज की दुनिया

रिपब्लिक टीवी के कर्ता- धर्ता अर्णब गोस्वामी ने सुशांत मामले में जिस तरह महाराष्ट्र सरकार की हर किलेबंदी को ध्वस्त करते हुए लगातार खबरें दिखाईं और टीआरपी के दशकों पुराने शहंशाह आज तक को पछाड़कर देश का नंबर वन चैनल बन गया…. यह उसी का नतीजा है कि आज हाथरस मामले में कई चैनल यूपी सरकार की नींद हराम किए हुए हैं। जाहिर है, सुशांत मामले में रिपब्लिक ने बाजी मारकर बाकी सभी चैनलों को सुशांत मामले में कोई फायदा लेने नहीं दिया तो अब यही चैनल हाथरस मामले को किसी भी कीमत पर हाथ से निकलने नहीं देना चाहते हैं।

हालंकि रिपब्लिक टीवी इस वक्त भी सुशांत मामले को ही मुख्य खबर बनाकर पहले की ही तरह बाकी चैनलों की टीम के लिए खासा सरदर्द बना हुआ है। अब देखना यह है कि हाथरस मामले को बिल्कुल अर्णब गोस्वामी स्टाइल में लगातार उछालकर क्या ये चैनल रिपब्लिक के लिए खतरा बन सकते हैं या सुशांत मामले में अभी भी रिपब्लिक को शीर्ष पर बनाए रखने लायक आकर्षण बचा है।

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अपनी अनूठी शैली और एक ही खबर पर लगातार फोकस करके उसे अंजाम तक ले जाने की जिद के जरिए निसंदेह अर्णब गोस्वामी ने देश के टीवी समाचार जगत के लिए एक ऐसी चुनौती पेश कर दी है, जिसका तोड़ फिलहाल किसी चैनल को समझ नहीं आ रहा है। हाथरस मामले में भले ही बाकी चैनल अर्णब गोस्वामी की शैली को पकड़ कर आगे बढ़ रहे हों लेकिन अर्णब जिस जिद और आक्रामकता के साथ सुशांत मामले को अंजाम तक ले जाए बिना मानते नजर नहीं आ रहे, वैसा हाथरस मामले में बाकी चैनलों के लिए कर पाना तकरीबन असंभव ही है।

वह इसलिए क्योंकि हाथरस मामला जिस राज्य में हुआ है यानी कि उत्तर प्रदेश, उसमें अपराजेय और असीमित शक्ति पा चुकी भाजपा की सरकार है न कि खात्मे की तरफ अग्रसर कांग्रेस या क्षेत्रीय प्रभाव रखने वाले छोटे से दल शिव सेना / एनसीपी की मिलीजुली सरकार है। यहां अगर चैनलों ने सुशांत मामले की तरह अर्णब की नकल करते हुए हद से ज्यादा आक्रामकता दिखाई या अंजाम तक ले जाने की अर्णब जैसी जिद पकड़ कर बैठ गए तो केंद्र में बैठे मोदी- शाह अपनी भृकुटी टेढ़ी करके एक झटके में इनके कस- बल ढीले भी कर सकते हैं।

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हालांकि उसकी नौबत शायद ही आए क्योंकि अर्णब की नकल करके एक मुद्दे पर पूरी ताकत झोंक देने की मुहिम तो सभी छेड़ सकते हैं लेकिन वह दिलचस्प शैली कहां से लाएंगे, जिसे देखकर आजकल देश की जनता अर्नब को छोड़कर कुछ और देखना ही नहीं चाहती। लिहाजा इस शैली के अभाव में हाथरस का मुद्दा किसी चैनल को टीआरपी की रेस में रिपब्लिक से आगे निकाल पाएगा, ऐसे आसार तो नहीं दिख रहे। नतीजा क्या होने वाला है, यह अब आने वाले कुछ हफ्तों की टीआरपी देख कर ही साफ हो पाएगा।

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