विनय ओसवाल, स्वतंत्र पत्रकार
प्रदेश में राजनैतिक / प्रशासनिक संरक्षण में चल रहे बाहुबलियों और अपराधियों के गिरोहों की हँड़िया का हाल बताने वाली एक सत्य घटना : सट्टा सरगना गिरफ्तार, उ0प्र0 के मंत्री ने बनाया दबाव : हाईटेक सट्टा कंपनी के सरगना को क्राइम ब्रांच ने मुम्बई से गिरफ्तार किया है। उसकी गिरफ्तारी पर उ0प्र0 के एक मंत्री ने पुलिस पर दबाव बनाया। क्राइम ब्रांच के मुताबिक, गिरफ्तार आरोपी संजय चौरसिया है । उसे सेन्ट्रल वेस्ट मुम्बई स्थित ऑफिस से गिरफ्तार किया गया। वह — गेम किंग इंडिया और — किंग गेम , नाम से ऑनलाइन सट्टा कंपनी चलाता था।
उसके कारोबार का नेटवर्क भारत के अलावा मलेशिया, बांग्लादेश, पाकिस्तान, सऊदी अरब, ईराक, ईरान, सहित 13 देशों में फैला है। पुलिस ने आरोपी के ऑफिस से 10 कम्प्यूटर , कई मोबाइल और भारी नकद राशि बरामद की है । एसपी क्राइम के मुताबिक संजय की गिरफ्तारी होते ही उ0प्र0 के एक मंत्री ने एसपी को कॉल कर कार्र्बाई न करने का दबाव बनाया । ( सन्दर्भ – नयी दुनियां, इंदौर /दैनिक जागरण 01 जुलाई 2016) कुछ एसी ही दास्ताँ हाथरस में चतुर्भुज गुप्ता नाम के बर्फ बेचने वाले एक साधारण आदमी की भी है जिसने 24 वर्षों में सट्टे जुए का बेताज बादशाह बन जाने की मंजिल तय कर ली।
यह सब उस पुलिस की नाक के नीचे होता रहा जिसकी प्राथमिक जिम्मेदारी अपराधों , अपराधियों और उनके मददगारों की पहचान करना और रोकथाम करना होती है । चतुर्भुज गुप्ता उर्फ़ चतुरा जिसकी हरकतों की बारीक से बारीक कैफियत से हाथरस का जनबच्चा वाकिफ है को जिला हाथरस की पुलिस पिछले 18 सालों में एक बार भी कड़ी सजा दिलापाने में कामयाब नहीं हो पायी । उससे पहले जिला अलीगढ की तहसील रहे हाथरस की पुलिस की दास्ताँ का छः वर्षो का इतिहास भी वैसा ही रहा है। पुलिस अधिकाँश मामलों में न्यायालयों में आरोप सिद्ध करने में विफल होती रहीं। क्यों विफल होती रही ? क्या चतुरा के तार मुंबई के संजय चौरसिया से भी जुड़े हुए है ? चतुरा का कारोबार भी ऑनलाइन चलता है , इसलिए इस संभावना को मजबूती से नकारना या स्वीकारना हाथरस पुलिस का काम है। यदि वो ऐसा करना चाहे?
ऐसा नहीं है की चतुर्भुज गुप्ता उर्फ़ चतुरा पर गैंगस्टर एक्ट पहली बार 2016 में (अप0सं0158/16) लगा हो । इससे पहले 2005 (अप0सं0 282/05) और 2010 में (अप0सं227/10) लग चुका है । वर्ष 2005 में तो गैंगस्टर द्वारा अपराधिक कार्यों से अर्जित सम्पत्तियों चाहे वे खुद के नाम में खरीदी गयी हों या (बेनामी) अन्य के नाम की जब्ती के लिए (गैंगस्टर एक्ट की धारा 14/1के अंतर्गत) मामला जिलाधिकारी के समक्ष भी पहुंच था । जो बाद में इसी एक्ट के अंतर्गत तत्काल न्यायायिक श्रावणाधिकार अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (14वें) आगरा के न्यायालय में भी चला । और बताया जाता है बाद के वर्षों में ये सुनवाई मथुरा और फिर हाथरस पहुँच गई । लेकिन पहले की ही तरह हुआ कुछ भी नहीं.
मामलों की तफ्तीश करनेवाले पुलिस अधिकारियों, शासकीय अधिवक्ताओं, अभियोजन अधिकारियों की भूमिका, कर्तव्य और विभाग के प्रति उनकी निष्ठाओं पर अगर प्रश्न चिन्ह लगे तो इसमें गलत क्या है। इसे पुलिस का निकम्मापन कहें , जुर्म की दुनियां में सरगनाओं को पालने पोसने की मजबूरी कहें, व्यक्तिगत हित साधने की लालसा कहें, सरपरस्ती कहें, राजनैतिक दबावों के चलते निष्क्रीय बने रहने की मजबूरी कहें , क्या कहें वो तो इस विभाग के आला अधिकारी ही बताएं।
सक्रीयता के मामले में वर्तमान एसपी डा0अजय पाल शर्मा की पहचान पूर्व के पुलिस अधीक्षकों से थोडा अलग दिखी। हाथरस के लोगों की स्म्रति में ये शायद पहली बार होता हुआ दिखा कि चतुरा को जमानत पर रिहा होने से पहले लगभग एक माह जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा। एसपी ने अप्रैल, 2016 की 16 तारीख को प्रेस वार्ता बुलाकर पत्रकारों को बताया कि विगत रात्रि में लगभग नौ बजे जुए सट्टे के कारोबार के सरगना और अन्य कई गंभीर अपराधों में वांछित गैंगस्टर चतुर्भुज गुप्ता उर्फ़ चतुरा पुलिस के हत्थे चढ़ गया है। साथ ही यह भी बताया कि जिला प्रशासन का सहयोग लेकर उसकी संपत्ति को कुर्क करने की विधिवत कार्यवाही भी की जाएगी। दूसरे दिन इस पत्रकार ने एसपी से मुलाक़ात कर पिछले लगभग 24 वर्षों में , विभिन्न थानों में दर्ज कम से कम 30 अपराधिक मुकदमों की फेहरिस्त मांगी | सूचनाओं को चार्ट रूप में प्राप्त करने के लिए उनके निर्देश पर थाना हाथरस गेट के एसओ कुशल पाल भाटी को एक ईमेल भी भेजा जा चुका है । परंतु खेद है कि वह सूची प्राप्त नहीं हुयी हैं।
यदि वो सूचनाएं उपलब्ध करायी जाती तो हाथरस के आमजन ही नहीं , पूरे प्रदेश के लोग जान पाते कि एसपी डा0 अजय पाल शर्मा की कार्यशैली पारदर्शिता पूर्ण और हार्ड कोर अपराधियों के प्रति कठोर है। वे जान पाते कि इस महकमे में सभी अधिकारियों के चेहरों का रंग एक सा नहीं है। लेकिन उन्होंने पत्रकारों के सामने 30 मुकदमों की लिस्ट तो ठसक के साथ परोसी थी, और गिरोहबंद अपराधी के साथ कुछ पुलिसकर्मियों, पत्रकारों, वकीलों, राजनेताओं और व्यापारियों की संलिप्तता के दावे किये थे। लेकिन उन्होंने ये भी नहीं बताया कि इन लोगों की चतुरा से संलिप्तता के आरोपों का आधार क्या है? क्या उन्होंने चतुरा और उसके गैंग के अन्य साथियों की कॉल डिटेल खंगाली हैं? अगर वो नाम सामने नहीं आते हैं तो निष्कर्ष यही निकलेगा कि लंबी चौड़ी बातें अखबारों और न्यूज़ चैनलों में महज अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए ही की गयी थी ।। संजय चौरसिया और चतुरा के बीच भले ही सीधे जुड़ाव के साक्ष्य उपलब्ध न हो पर दोनों के बीच दिल्ली एक महत्वपूर्ण कड़ी हो सकती है। अगर क्राइम ब्रांच इस तरफ भी ध्यान दे तो उ0प्र0 में सट्टे के एक बड़े नेटवर्क का पर्दा फाश हो सकता है।
विनय ओसवाल
vinay oswal
स्वतंत्र पत्रकार