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अखबारों को नई शिक्षा नीति के पुराने मसौदे की खबर ही नहीं मिली

सपा-बसपा की खबर आज भी प्रमुखता से है पर बिहार में भाजपा और नीतिश का मामला?

आज हिन्दुस्तान में पहले पन्ने पर स्कंद विवेक धर की एक खबर है, “चूक : हिंदी नहीं थी अनिवार्य अपलोड हुआ था पुराना मसौदा”। कल मैंने लिखा था कि अनिवार्य हिंदी शिक्षण पर मोदी सरकार के पहले यू-टर्न की खबर हिंदी के अखबार ही खा गए! (कल यह खबर नवोदय टाइम्स में थी)। आज इस खबर से लग रहा है कि हिन्दी के मामले में देश में क्या हो रहा है इससे हिन्दी के अखबार भी बेखबर या निश्चिंत हैं। पुराना मसौदा अपलोड होना भले ही चूक है पर साधारण नहीं है और अखबार वाले, बीट कवर करने वाले इसे पकड़ नहीं पाए यह कम नहीं है। हिन्दुस्तान ने लिखा है, “नई शिक्षा नीति में तीन भाषा फॉर्मूला के तहत हिंदी को पूरे देश में अनिवार्य करने को लेकर उत्पन्न विवाद की वजह अधिकारियों की लापरवाही थी। दरअसल अधिकारियों ने शिक्षा नीति का पुराना मसौदा अपलोड कर दिया था।”

मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया कि बीते दिसंबर महीने में मीडिया रिपोर्ट्स में नई शिक्षा नीति में हिंदी को अनिवार्य करने की खबरें सामने आई थी। इसके बाद ही तत्कालीन एचआरडी मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के निर्देश पर इस प्रावधान को हटा दिया गया था। नए मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को पदभार ग्रहण करने के बाद मंत्रालय कवर करने वाले कुछ पत्रकारों को इसकी सॉफ्ट कॉपी मुहैया कराई गई थी जिसकी प्रति ‘हिन्दुस्तान’ संवाददाता के पास भी उपलब्ध है। हालांकि, अगले दिन मंत्रालय की वेबसाइट पर नई शिक्षा नीति के पुराने ड्राफ्ट को ही अपलोड कर दिया गया। इसके बाद हिंदी की अनिवार्यता के मुद्दे पर हंगामा मचा तो दिसंबर में ही तैयार संशोधित रिपोर्ट को फिर से अपलोड किया गया।

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दिल्ली के जामा मस्जिद की फोटो नवभारत टाइम्स में आज छपी है जबकि श्रीनगर की इस बच्ची की फोटो द टेलीग्राफ ने कल छापी थी।

ईद की बधाई
यह तो हुई हिन्दी और शिक्षा नीति में हिन्दी से संबंधित खबर की बात। अब आता हूं ईद की बधाई पर। आज टाइम्स ऑफ इंडिया में ईद की बधाई देने वाली एक खबर उल्लेखनीय है। खबर के शीर्षक का अनुवाद होगा, “पाकिस्तान के उड्डयन निदेशक ने इंडिगो से कहा, जेट सुरक्षित उतरा, ईद मुबारक”। इस खबर में बताया गया है कि पाकिस्तानी वायुसीमा पर से प्रतिबंध हटने के बाद पहला भारतीय विमान सुरक्षित दुबई पहुंचा तो दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट स्थित इंडिगो के फ्लाइट ऑपरेशंस सेंटर में सोमवार-मंगलवार की रात एक कॉल आई जिसे इंडिगो के ड्यूटी ऑफिसर से रिसीव किया। कॉल करने वाले पाकिस्तान के नागरिक उड्डयन निदेशक थे। इंडिगो के अधिकारी ने उनसे पूछा, “जनाब आप अभी तक जाग रहे हैं”। जवाब मिला, “मैं उड़ान पर नजर रखे हुए था। विमान सुरक्षित उतर गया है। आपको जुबान दी थी। ईद मुबारक”।

अखबार ने लिखा है कि इंडिगो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उसे यह जानकारी दी। यह खबर आज दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। आपने पढ़ा होगा कि पाकिस्तान ने भारतीय वायु सेना की तरफ से बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविर पर हमले के बाद 27 फरवरी से अपना हवाईक्षेत्र पूरी तरह बंद कर दिया था। चुनाव खत्म होने और नतीजे आने के बाद नई दिल्ली, बैंकॉक और क्वालालम्पुर को छोड़ अन्य सभी स्थानों के लिए अपना हवाई क्षेत्र 27 मार्च को खोलने की घोषणा की थी। इतवार को तेलेम नाम की जगह से पहली उड़ान पाकिस्तान होते हुए गई।

भाजपा और नीतिश कुमार
केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड या एकीकृत) को सिर्फ एक मंत्री का कोटा दिया गया था। इस पर अंतररात्मा की आवाज पर भाजपा के पाले में चले आए नीतीश कुमार नाराज हो गए। उन्होंने इसका बदला अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करके लिया और अपनी पार्टी के आठ नेताओं को मंत्री पद की शपथ दिलवाई। जाहिर है, यह साधारण बात नहीं है। निश्चित रूप से यह भाजपा और जेडीयू के रिश्ते में दरार का संकेत है। यह केंद्रीय मंत्रिमंडल के गठन के 100 घंटे के भीतर हुआ है। खबर है कि यहां भाजपा ने न्यौते के बावजूद अपने कोटे से मंत्री नहीं बनवाए और यह वैसे ही है जैसे जेडीयू ने मोदी कैबिनेट में एक सांसद को मंत्री बनाने की पेशकश पर मंत्रिमंडल से दूरी बना ली थी।

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यह अलग बात है कि उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने इसपर स्पष्टीकरण दिया है। और कहा जा रहा है कि “बाद में” दोनों मंत्रिमंडलों में संतुलन बनाया जाएगा। इन सब के बीच बिहार विधानसभा के चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा है कि नीतीश जी कब पलटी मारेंगे यह कोई नहीं कह सकता है। पर इन सारी बातों और इससे बनी स्थिति को अखबारों में प्रमुखता नहीं दी गई। ये खबरें वैसे नहीं छपी जैसे बसपा – सपा के संबंधों में दरार की अटकल कल छपी थी और इसकी पुष्टि होने पर आज फिर छपी है। कुल मिलाकर अखबारों में बसपा – सपा के अलग होने की चिन्ता भारतीय वायु सेना का विमान लापता होने से ज्यादा है।

वायु सेना का लापता विमान
आप जानते हैं कि तीन साल पहले, 22 जुलाई 2016 को चेन्नई से पोर्ट-ब्लेयर जा रहा वायुसेना का एएन-32 विमान लापता हो गया था। इसमें 29 लोग सवार थे। तकरीबन दो महीने तक विमान के बारे में कुछ भी पता नहीं चला। इसके बाद वायुसेना ने तलाशी अभियान पर रोक लगा दी और विमान में सवार सभी लोगों को मृत मान लिया गया। अब एक बार फिर भारतीय वायुसेना का एएन-32 विमान सोमवार से लापता है। इसमें 13 लोग सवार थे। तलाशी अभियान अभी जारी है पर कुछ पता नहीं चला है। तलाशी के तहत क्या हो रहा है, क्या अड़चनें हैं और आज के वैज्ञानिक युग में जब केंद्रीय मंत्री दावा कर चुके हैं कि ज्योतिष विज्ञान से आगे है तो कोई ज्योतिषीय घोषणा भी सुनने को नहीं मिल रही है। अखबार सरकारी विज्ञप्ति से ज्यादा कुछ नहीं छाप रहे हैं। ना इस मामले में सरकारी कमजोरी या जांच की बाधाएं उजागर कर रहे हैं। क्या आपने इस सबंध में कोई अच्छी खबर अपने अखबार में देखी?

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फिर भी बसपा सपा – दोबारा
आज बसपा सपा की खबर लगभग सभी अखबारों में दोबारा पूरे विस्तार से पहले पन्ने पर छपी है। लेकिन विमान लापता होने की खबर कहीं-कहीं, वह भी छोटी सी ही दिखी है। दैनिक जागरण में दो कॉलम में है। राजस्थान पत्रिका में बसपा सपा पहले पन्ने पर नहीं है लेकिन लापता विमान को ढूंढ़ने की खबर है। विमान लापता होना कोई मामूली बात नहीं है लेकिन उससे संबंधित खबर को महत्व नहीं मिलना पहली बार नहीं हो रहा है। 2016 में भी ऐसा ही हुआ था। हालांकि, तब माना जा रहा था कि विमान गहरे समुद्र में गिर गया होगा इसलिए पता नहीं चला। लेकिन इस बार दुर्घटना स्थल से समुद्र काफी दूर है। फिर भी कोई जानकारी न मिलना पहले से अलग है। लेकिन अखबारों और सोशल मीडिया में भी आम लोगों की चिन्ता अलग है।

मुमकिन है कि अखबारों की राय में यह दुर्घटना की सामान्य खबर हो और इसके पाठक राजनीतिक खबर के मुकाबले कम हों। इसलिए राजनीतिक खबर ज्यादा छापी जा रही हो। पर सच यह है कि राजनीतिक खबरों में वही खबरें प्रमुखता पाती हैं जो भाजपा के पक्ष में हों या विरोधियों के खिलाफ हों। वरना बिहार भाजपा और जेडीयू का मामला इतना हल्का या साधारण नहीं है कि उसकी चर्चा अखबारों में पहले पन्ने पर प्रमुखता से न हो। आज खबर है कि नीतीश कुमार से संबंधित गिरिराज सिंह के बयान के लिए अमित शाह ने गिरिराज सिंह को फटकार लगाई है।

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इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर पहले पन्ने पर है लेकिन हिन्दी अखबारों में नवोदय टाइम्स और अमर उजाला में ही पहले पन्ने पर दिखी। असल में गिरिराज सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इफ्तार पार्टी में शामिल होने को लेकर एक ट्वीट किया था। इस ट्वीट के सामने आने के बाद बिहार में बीजेपी और जेडीयू के बीच आपसी खींचतान की खबरें सुर्खियां बनने लगीं। मंगलवार शाम बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने गिरिराज सिंह के इस ट्वीट पर पलटवार करते हुए कहा कि गिरिराज सिंह ऐसे ट्वीट सिर्फ सुर्खियों में बने रहने के लिए करते हैं। इस खबर से पहले उप मुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील मोदी ने भी गिरिराज सिंह के इस बयान की निंदा की थी और कहा था कि राम नवमी की पूजा हो या नवरात्र, होली मिलन हो या इफ़्तार – नीतीश कुमार न केवल सब में भाग लेते हैं बल्कि अगर बात आयोजन करने की हो तो भी पीछे नहीं हटते।

ऐसा नहीं है कि गिरिराज सिंह यह सब नहीं जानते होंगे। फिर भी उन्होंने ट्वीट किया, “कितनी खूबसूरत तस्वीर होती जब इतनी ही चाहत से नवरात्रि पे फलाहार का आयोजन करते और सुंदर सुदंर फ़ोटो आते??…अपने कर्म धर्म मे हम पिछड़ क्यों जाते और दिखावा में आगे रहते है???” क्या गिरिराज सिंह जैसे नेता ने सहयोगी दल के नेता और अपने ही प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ यह ट्वीट यूं ही कर दिया होगा? वे नीतिश कुमार को नहीं जानते हैं या उन्हें रघुवंश प्रसाद सिंह का कहा नहीं मालूम होगा? मेरे कहने का मतलब है कि मामला साधारण, छोटा या हल्का नहीं है। यह अलग बात है कि अमित शाह अपनी योग्यता क्षमता और कौशल से इसे संभाल लें और सत्तारूढ़ दल के लाभ को देखकर नीतिश भाजपा से अलग न हों पर यह सब सपा बसपा के अलग होने से कम महत्वपूर्ण है क्या?

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वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट

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