हल्द्वानी। हिन्दुस्तान अखबार में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। लांचिंग से पहले हल्द्वानी यूनिट के संपादक योगेंन्द्र रावत को हटाते हुए नोएडा से योगेश राना को हल्द्वानी का नया संपादक बनाकर भेजा गया है. लांचिंग से ठीक पहले उत्तराखंड सेल्स हैड गिरीश अदलखा ने हिन्दुस्तान को बाय-बाय कहते हुए उत्तराखंड जागरण सेल्स हैड के पद मे ज्वाईन कर लिया है.
कुमाऊं में हिन्दुस्तान अखबार ने ग्राहकों से 100 रुपये लेकर यह कहकर पेपर बुक किया था कि उन्हें 28 अक्टूबर या 1 नवंबर को पेपर मिल जाएगा लेकिन अभी तक कई क्षेत्रों में अखबार की पेपर एजेंसी नहीं खुल पाई है. जो हाकर हैं या जो एजेंसियां चल भी रही हैं उन्हें यह नहीं पता है कि आखिर उन्हें ग्राहकों को कब पेपर देना है, कूपनों का क्या करना है.
लांचिंग को लेकर प्रधान संपादक दो बार हल्द्वानी में संपादकीय टीम की बैठक ले चुके हैं. दो दौर की बैठक में प्रधान संपादक और प्रबंधन यह तय नहीं कर पाया है कि पेपर लांच कब करना है. अब कहा जा रहा है कि हल्द्वानी की लांचिंग 5 नवंबर को होनी है.
हल्द्वानी यूनिट के लिए हिन्दुस्तान में देहरादून से योगेंद्र रावत को संपादक और बरेली से अनिल शर्मा को जीएम बनाकर भेजा गया था. इन लोगों ने वहां ज्वाइन कर लिया और लांचिग की तैयारी शुरू हो गई. अब रावत को हल्द्वानी से हटाकर नोएडा अटैच कर लिया गया है और नोएडा से योगेश राना को हल्द्वानी का नया संपादक बनाकर भेज दिया गया.
keshav
November 2, 2015 at 8:22 am
हिन्दुस्तान के कुमाउं की लांचिंग से कई शख्स बौखलाएं हैं, उनमें कुछ विभीषण हिन्दुस्तान के अंदर से भी हैं जो अंदर की बातें गलत तरीके से परोस कर खुद की पीठ थपथपा रहे हैं. हल्द्वानी से रावतजी को हटाया नहीं गया बल्कि उन्हें पहाड़ में हिन्दुस्तान के फैलाव को लेकर सर्वे को भेजा गया था. रावतजी ने अपनी रिपोर्ट में पहाढ़ में हिन्दुस्तान के अच्छे भविष्य को लेकर रिपोर्ट अपने उच्चाधिकारियों को सौंप दी. उनका हल्द्वानी में संपादक के पद पर आना भी एक तरह से हिन्दुस्तान की एक रणनीति का हिस्सा रहा. वर्तमान में राणाजी अब संपादक के रूप में मैदान में आ गए हैं. इनकी खबरों को लेकर अच्छी सोच है. इन्होंने संपादक का पद ग्रहण करते ही पहाड़ के हर क्षेत्र का दौरा कर पत्रकारों को अपने अनुभव बांटते हुए बताया कि किस तरह से खबरों में पहाड़ की पीड़ा को अखबार के माध्यम से उठाकर कर उनकी लड़ाई में भागीदार बनकर उन्हें मुकाम तक पहुंचाया जा सकेगा.
गिरीश अदलखाजी ने हिन्दुस्तान छोड़ा ये राहत पहुंचानी वाली बात हर किसी के लिए रही है. वैसे ये यदि हिन्दुस्तान नहीं छोड़ते तो इन्हें देर सबेर बाहर का रास्ता नापना ही पड़ जाता. अपने कार्यकाल के दौरान इन्होंने ना तो कभी पहाड़ का दौरा किया और ना ही इन्हें पहाड़ की समझ रही. इन्हें तो ये भी पता नहीं रहा कभी कि जिलों में कितनी एजेंसिया हैं, कितना अखबार जा रहा है और टाईम क्या है. इनके साथ वाले इन्हें गरियाते हुए कहते थे कि इन्हें तो सिर्फ अखबार ले जाने वाली गाड़ियों से कमिशन से ही मतलब रहता था, चाहे अखबार शाम को ही क्यों ना पहुंचे. एजेन्सी वालों से इस बावत् इन्हें शिकायत करने पर वो पहले तो गरम हो जाते थे और बाद में उसका नंबर ही ब्लाक कर देते थे.
बहरहाल् भड़ास में खबर देने वाला अंदर का ही कोई शुभचिंतक होगा जिसे आधी—अधूरी मिर्ची वाली खबर देने में मजा आता है. जय हो इन साहेबान की…….
jeewan
November 2, 2015 at 8:38 pm
Girish Gurani jb tk sampadak rahega hindustan ka tb tk hindustan haldwani ki lounching safal nahi ho skti. ismne apne ristedaro or chamcho ko hindustan m bhr diya h. iska jita jata udharan haldwani or rudarpur, pithoragrah hai. waha k reporter ko typing tk ni aati . samachar banana to dur ki baat h
keshav bhatt
November 2, 2015 at 8:49 pm
हिन्दुस्तान के कुमाउं की लांचिंग से कई शख्स बौखलाएं हैं, उनमें कुछ विभीषण हिन्दुस्तान के अंदर से भी हैं जो अंदर की बातें गलत तरीके से परोस कर खुद की पीठ थपथपा रहे हैं. हल्द्वानी से रावतजी को हटाया नहीं गया बल्कि उन्हें पहाड़ में हिन्दुस्तान के फैलाव को लेकर सर्वे को भेजा गया था. रावतजी ने अपनी रिपोर्ट में पहाढ़ में हिन्दुस्तान के अच्छे भविष्य को लेकर रिपोर्ट अपने उच्चाधिकारियों को सौंप दी. उनका हल्द्वानी में संपादक के पद पर आना भी एक तरह से हिन्दुस्तान की एक रणनीति का हिस्सा रहा. वर्तमान में राणाजी अब संपादक के रूप में मैदान में आ गए हैं. इनकी खबरों को लेकर अच्छी सोच है. इन्होंने संपादक का पद ग्रहण करते ही पहाड़ के हर क्षेत्र का दौरा कर पत्रकारों को अपने अनुभव बांटते हुए बताया कि किस तरह से खबरों में पहाड़ की पीड़ा को अखबार के माध्यम से उठाकर कर उनकी लड़ाई में भागीदार बनकर उन्हें मुकाम तक पहुंचाया जा सकेगा.
गिरीश अदलखाजी ने हिन्दुस्तान छोड़ा ये राहत पहुंचानी वाली बात हर किसी के लिए रही है. वैसे ये यदि हिन्दुस्तान नहीं छोड़ते तो इन्हें देर सबेर बाहर का रास्ता नापना ही पड़ जाता. अपने कार्यकाल के दौरान इन्होंने ना तो कभी पहाड़ का दौरा किया और ना ही इन्हें पहाड़ की समझ रही. इन्हें तो ये भी पता नहीं रहा कभी कि जिलों में कितनी एजेंसिया हैं, कितना अखबार जा रहा है और टाईम क्या है. इनके साथ वाले इन्हें गरियाते हुए कहते थे कि इन्हें तो सिर्फ अखबार ले जाने वाली गाड़ियों से कमिशन से ही मतलब रहता था, चाहे अखबार शाम को ही क्यों ना पहुंचे. एजेन्सी वालों से इस बावत् इन्हें शिकायत करने पर वो पहले तो गरम हो जाते थे और बाद में उसका नंबर ही ब्लाक कर देते थे.
बहरहाल् भड़ास में खबर देने वाला अंदर का ही कोई शुभचिंतक होगा जिसे आधी—अधूरी मिर्ची वाली खबर देने में मजा आता है. जय हो इन साहेबान की…….
jeewan
November 3, 2015 at 8:50 pm
संपादक के चम्चों को तेल लगाने की आदत होती है, आधी-अधूरी जानकारी के साथ आ जाते हैं। गिरीश गुररानी ने अपनी गर्दन बचाने के लिए रावत को बलि का बकरा बनाया। गुररानी ने सिर्फ अपने चम्चों को स्टाफर बनाया और चम्चों को ही सुपर स्ट्रिंगर बनाया। जब प्रधान संपादक के पास भड़ास व अन्य माध्यमों से उनके पास खबर पहुंची तो पूरे स्टाफ के सामने हल्द्वानी में डांठ भी पड़ी। गिरीश ने अपनी बचाने के लिए रावत को बली का बकरा बनाया। मैं आपकों बता भी देता हूं कि दो बार गिरीश गुरानी संपादक हिन्दुस्तान उत्तराखंड अमर उजाला के नोएडा आॅफिस जा के आ चुका है।
pankaj
November 3, 2015 at 8:55 pm
केशव तुम बात कर रहें हो गिरीश अदलखा सेल्स हेड की तो तुम्हें बता देना चाहते हैं कि हिन्दुस्तान प्रबंध तंत्र की पाॅलिसी में नहीं था कुमाऊं में पेपर बढ़ाना। क्योंकि बरेली यूनिट जहां पेपर छपता है उसकी कैपिसीटी इतनी नहीं थी कि वह इतने अधिक पेपर छाप सके। संपादक की गलत नीतियों के कारण ही गिरीश अदलखा ने हिन्दुस्तान छोड़ा।
[email protected]
November 4, 2015 at 12:32 pm
हिन्दुस्तान हल्द्वानी का अब भगवान ही मालिक है, सरे नकारे अमर उजाला देहरादून के भर लिए है. कुछ अभी भी प्रयास मई है.
vijay
November 4, 2015 at 1:39 pm
अमर उजाला देहरादून से फितरती लोगो की सूचि मे कोशिश की लेकिन मामला पेंडिंग मे चला गया
pant
November 4, 2015 at 1:50 pm
ये बात भाई साहब अपने ठीक कही.
Tarun bhatt
November 4, 2015 at 9:08 pm
पांच की लांचिंग भी घूस गयी। क्या हो रहा है गिरीश गुरूरानी जी। क्यों तुम्हारी टीम को जंग लग गया या फिर………… ?
संपादक जी, मैं आपकी भाषा को समझता हूं, सामने आ कर बात करो, दूसरों के कंधे में बंदूक रखकर तो कोई भी चला लेता है। केशव भट्ट के नाम से पोस्ट डालने के बदले अपने नाम से पोस्ट डालों। तुम्हारे अंदर अगर कैलीबर था तो तुमने देहरादून में गिरती हुई सेल को क्यों नहीं संभाला। अपनी गर्दन में बनता देख तुमने रावत जी को बलि का बकरा बना दिया। तुम्हारी टीम का दम तो लांचिंग के बाद पता चल जायेगा। जैसा घमासान मचा हुआ है, वैसे में तुम अमर उजाला तो दूर तुम जागरण को भी टक्कर नहीं दे सकते हो। कुछ दिन और देखों दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।
samvaddata
November 4, 2015 at 10:24 pm
जीवन जी ठीक कहा आपने. गिरीश गुरनानी अमर उजाला से पिथौरागढ़ और रुद्रपुर वालो को खोज खोज कर लाये है. अब अमर उजाला से ओमप्रकाश तिवारी तेजी से हिन्दुस्तान जाने की तैयारी कर रहे है. काम तो कुछ आता नहीं है. पुराने संपादक के खास चमचो मे शामिल रहे है. नए संपादक ने आते ही किनारा कर दिया उनका. रिपोर्टिंग से उठाकर डेस्क पर डाल दिया. तिवारी की फ़्रस्ट्रेशन फेसबुक पर देखो. अब डेस्क पर भी गुटबाज़ी करता है, मनपसंद संवाददाताओं की खबर लगाता है. कुछ वरिष्ठ संवाददाता तो इस बात से खिन्न हो गए है. जब तक फील्ड मे रहे, लोग परेशान रहते थे. अब लोगो ने वहा राहत की साँस ली तो डेस्क पर तोड़फोड़ करने लगे. डेस्क भी परेशान हो गई है. संपादक को रोज माफीनामा छापना पड़ रहा है. इतनी गलतिया जा रही है. हर खबर मे गलती. तिवारी की छुट्टी के दिन उसके चहेते संवाददाता उसे ढूंढते है. अब गिरीश गुरनानी के पीछे पड़ा है हिन्दुस्तान के लिए.
mani
November 5, 2015 at 2:24 pm
ओमप्रकाश अकेले नहीं पूरी टीम को यहाँ से ले जाने की फेर मे आजकल चमका रहे है रिपोर्टर्स को.
om prakash
November 5, 2015 at 9:18 pm
केशव जी! चलो कोई नहीं आपने दूसरों के नाम से कमेंट तो किया। आपकों एक बात ये बता देते हैं कि योगेन्द्र रावत जी गढ़वाल के हैं और उन्होंने अधिकत्तर बहार काम किया है। उन्हें यहां तक कि गढ़वाल के जिलों के बारे में जानकारी नहीं है तो कुमाऊं के बारे में खाक जानकारी होगी।उन्हें अपने स्वार्थ के लिए बलि का बकरा बना दिया अब सफाई देते फिर रहे हो। कुछ दिन और देखों सारी चीजें निकल के बहार आएंगी।
badtwal
November 5, 2015 at 11:53 pm
गिरीश गुरनानी जब तक अमर उजाला मे रहे, गन्दगी का ढेर लगा दिया था. ये देहरादून के पत्रकार जानते है . आज भी अमर उजाला देहरादून मे एक लॉबी सक्रिय रूप से काम कर रही है. मौजूदा संपादक को ऐसे ही लोगो को ठिकाने लगाने को भेजा गया है. जो रिपोर्टर्स अपने छेत्र मे नहीं जाते, un पर शिकंजा कस जा रहा है. ऐसे लोगो की bakayda सूचि तैयार की जा रही है. अखबार की तुलना जुलाई के पहले का अखबार और आज के अखबार से की जा सकती है. गुरनानी उन्ही रिपोर्टर्स को बढ़ा रहे है. उन्हें पता है की ये अमर उजाला के रिपोर्टर्स shahar मे जमकर दलाली करते रहे है. शशि शेखर के पास ये सुचना है. लॉन्चिंग के बाद अमर उजाला के लोगो को अछि तरह से लात पड़ेगी. ये शशि जी का नियम रहा है purana. लॉन्चिंग कराओ लात मारो.
आदित्य
November 7, 2015 at 6:25 am
यहाँ दूसरों के ऊपर कीचड़ फेंकने वाले कुछ ऐसे महान लोग कमेंट कर रहे हैं, जिनका वास्तव में पत्रकारिता की दूर दूर तक समझ नहीं है। मुर्ख मित्रों कोई किसी का चमचा नहीं होता। उसका काम ही किसी भी संपादक को उसके करीब लाता है। कभी खुद की काम करने की औक़ात नहीं रही। यहाँ ज्ञान बघार रहे हो। वैसे भी सचिन नहीं उसका बल्ला बोलता है। तुम हमेशा यहीं कूड़ा उठाते रह जाओगे। कब तक दूसरों पर कीचड़ उछालते रहोगे। शर्म करो मूर्खों। लानत है तुम पर। धिक्कार।