हम पर कार्रवाई तो जरूर करें सर जी.. हम तैयार हैं, परन्तु ये तो बता दें कि 2011 के पीसीएस अंतिम परिणाम की संलग्न सूची में कुल चयनित 86 एसडीएम में 54 एक ही जाति के कैसे आ गए ? अनिल यादव पर करम और हम पर सितम, रहने दे अब थोडा सा धरम, सर जी ! हम तो सरकार के एक दीगर कारिन्दा है। हमें तो कभी भी कुचल सकते हो। चलो, हमे तो टीवी पर आने का चस्का है, मार ही डालोगे क्या।
जनसामान्य तो ‘प्रेम चंद’ का ‘होरी’ है और रहेगा, न जाने आने वाली और कितनी सदियों तक परन्तु अनिल यादव पर इतनी मेहरबानी क्यों? उसके खिलाफ तो आपराधिक मामले हैं। पैसे लेकर व जाति विशेष की आँख मूंद कर भर्ती करने के आरोप हैं। जरा जांच तो करा लो सर जी। यादव सिंह पर इतना करम क्यों। जेल तो भेज देते, सर जी। आगरा में शैलेन्द्र अग्रवाल के खुलासे में दो पूर्व डीजीपी को भी जेल भिजवा देते। शाहजहांपुर में पत्रकार को जलाने के आरोपी पापी आरोप मंत्री तथा एआरटीओ को पीटने वाले मंत्री को जरा सा बर्खास्त ही कर देते, सर जी।
खनन माफिया तो लोकायुक्त से भी छूट गए। उन्हें भी हटा देते। जरा सा, हां जरा सा, जरा सी ही तो कार्रवाई की मांग कर रहे हैं सर जी। रोज-रोज हो रहे बलात्कारों के आरोपियों को जेल भेज दो। छवि बन जाएगी ‘प्रेमचंद’ के होरी के भगवान की। सही बता रहे हैं सर जी।
यह वार्तालाप पता है, किसका किससे से हो रहा है? ‘प्रेमचंद’ की कहानी ‘गुल्ली-डंडा’ के दो पात्रों के बीच उपरोक्त वार्तालाप हो रहा है। कोई और समझकर भ्रमित न हों। एक पात्र है शाहूकार का बेटा ‘गया’ प्रसाद (सत्ता पक्ष) तथा दूसरे का कोई नाम नहीं दिया। अतः मैंने उसको ‘बेनामी’ ( पीड़ित वर्ग) कहा है। साहित्य की भाषा समझो सर जी। एक काल्पनिक पात्र है। उपरोक्त वार्तालाप को अंग्रेजी में ‘Self-talking’ (Talking -to-Myself) भी कहते हैं, जो सामान्यतः विवशतावश अपने मन को समझाने के लिए किया जाता है, वही तो कर रहा हूँ, और क्या करूँ।
वरिष्ठ आईएएस सूर्यप्रताप सिंह के एफबी वाल से