रविंद्र सिंह-
कब लौटेगा इफको का गौरव, हस्तक्षेप कर पाएगी मोदी सरकार?
भारत के किसानों ने सन् 90 से देश में कई तरह के बदलाव देखे हैं। यह बदलाव गांव से शहर और सडक से संसद तक देखे गए हैं। तरक्की के लिए परिवर्तन जरूरी माना जाता है, अगर कोई सरकार परिवर्तन लाने में असफल रहती है तो जनमानस भी उसे आसानी से भुला देता है। इस बीच देश ने काफी तरक्की की है और खट्टा-मीठा अनुभव भी देखा है। 25 साल के इतिहास में किसानों की समृद्धि के लिए कई जन आंदोलन हुए लेकिन इफको जैसा गंभीर मुद्दा इन आंदोलनों का हिस्सा क्यों नहीं बन पाया, किसान आंदोलनकारी की आंखों से यह मुद्दे ओझल क्यों थे?
आखिर क्या वजह थी भारत में किसानों के मुद्दों पर सरकारें बनती और गिरती रही हैं, फिर भी इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया। उदय शंकर का नाम आते ही चर्चा शुरू हो जाती है, यही वह सहकारिता माफिया है जिसने देश के 5.5 करोड किसानों के अंश धन से संचालित इफको का अपहरण कर रखा है। यह किसानों की तरक्की के लिए कार्यक्रमों का आयोजन करता है और प्रचार-प्रसार अपना शुरू कर देता है। यह प्रचार अवस्थी के दिमाग की उपज नहीं है बल्कि राजनीतिक और नौकरशाहों की रणनीति का एक हिस्सा है।
भारत में नौकरशाह सरकारी योजनाएं जमीन पर लाने और संविधान की रक्षा कर उसके अनुरूप कार्य करने की सौगंध तो लेते हैं लेकिन यह शपथ लेने तक ही सीमित रहते हैं इसके बाद यह अपनी मनमानी इसलिए शुरू कर देते हैं कि भारत के जनता की याद्दाश्त काफी कमजोर होती है। आज उनका शोषण करिए कल उनके बीच जाकर पुचकार लीजिए महज इतना करने से सारे गिले शिकवे दूर हो जाते हैं। इसी तरह जनता की सेवा करने के लिए राजनीतिज्ञ उसकी समृद्धि के मुद्दे लेकर बीच में जाते रहे हैं। सरकारें किसानों को आत्म निर्भर बनाने के बड़े-बड़े दावे करती आई हैं, क्या किसान फसली ऋण माफी से आत्म निर्भर बन पाएगा। यह जानते हैं जिस तरह से घायल को दर्द से राहत के लिए मरहम की जरूरत होती है उसी तरह समय-समय पर किसानों को मरहम लगाकर उनकी भावनाओं से खिलवाड़ होता रहा है।
मोदी सरकार का बार-बार यह दावा किसानों को अब पूरी तरह से झूठ लगने लगा है कि आगामी 5 साल में सरकार उनकी आय दोगुना कर देगी। किसानों के आंगन में समृद्धि आ सकती है परंतु सरकार उस फार्मूला पर कार्य करने को तैयार नहीं है, किसानों की उपज से बिचौलिए समाप्त करने की दिशा में काम किया गया होता तो अब तक खेतीहरों की दशा भी सुधरना शुरू हो गई होती।
इसी तरह इफको किसानों की संस्था है यह बातें अब बेईमानी सी लगने लगी हैं। कहते हैं जब विपक्ष मजबूत होता है तो सत्ता की सरकार लोकप्रिय कार्य करने पर नीति बनाती है और जब विपक्ष कमजोर होता है तो सरकारें लोकहित के कार्य करने के बजाए अपना और अपनी मशीनरी के हितों तक सिमटकर रह जाती हैं। इसी तरह जब तक इफको पर भारत सरकार का नियंत्रण कायम था लोकतंत्र भी पूरी तरह से जिंदा था।
अवस्थी ने सत्ता के गलियारों, नौकरशाही की भूख को सही समय पर पूरा कर देखते-देखते इफको से सरकार का नियंत्रण खत्म कर दिया। यह किसी फिल्म की कहानी नहीं बल्कि कृषि प्रधान देश भारत में किसानों के अंश धन से स्थापित इफको का जीता जागता उदाहरण है। इफको में सरकार की 69.11 फीसदी हिस्सेदारी थी, इसलिए नियंत्रण था, सयंत्रों की सुरक्षा में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल की तैनाती थी और लेखा-जोखा का ऑडिट कैग द्वारा किया जाता था। 1 करोड तक के प्रस्ताव पर फंड खर्च करने की प्रबंध निदेशक को सीमा निर्धारित की गई थी। इसके अलावा कृषि, वित्त और उर्वरक मंत्रालय से प्रस्ताव स्वीकृत कराने के बाद ही नियुक्ति एवं अन्य कार्य पूर्ण किए जाते थे। संस्था पर सी.वी.सी की हमेशा निगरानी रहती थी ऐसे में गलत करना तो दूर गलत सोचने के बाद कार्रवाई के भय से उदय शंकर की सांसे रुकने लगती थी। इफको में 16 वर्ष से सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। भारत में लंबे समय से व्यवस्था में चले आ रहे दोष का फायदा उठाते हुए इस भ्रष्टाचारी ने 5.5 करोड किसानों और उनके आश्रित परिवारों के समृद्धि में पूरी तरह से खलल डाल दिया है।
अवस्थी के मनमानी की सफलता के पीछे यह भी माना जाता है, सरकारें आती हैं और चली जाती हैं, नौकरशाहों के सिर्फ विभाग बदलते हैं उनकी कार्यशैली और आवाजाही में कभी बदलाव नहीं आता है।
जनता के द्वारा चुने गए राजनीतिज्ञों में इतनी अक्ल नहीं होती है, वह योजनाबद्ध तरीके से इफको से सरकार का नियंत्रण खत्म कर देते। सत्ता के गलियारों में व्यस्त रहने वाले यह राजनीतिज्ञ अपने क्षेत्र के कार्यकर्ताओं से हर रोज मिलकर सुकून की नींद सो ले, यही बहुत बडी बात है।
आज इफको का अस्तित्व खतरे में है और चन्द लोग ही किसानों की संस्था पर हावी होकर मौन ठस्ती कर रहे हैं। अवस्थी इफको में प्रबंध निदेशक की भांति कार्यों की देख-रेख नहीं कर रहे हैं बल्कि वह आतंकी संगठन की दुबइ, जार्डन, अमेरिका में बैठकर भारत की संसद में भय का माहौल कायम किए हुए हैं। भ्रष्टाचार के मुददे पर नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने सन् 2014 में देश के लोकसभा चुनाव का नेतृत्व किया था, वह बात-बात पर कहते थे यह देश 125 करोड जनता का है। देश इसलिए अभी युवा है, यहां अधिकांश नौजवानों की आयु 35 साल से कम है। इसलिए हमारे नौजवानों मैं कार्य करने और निर्णय लेने की अपार क्षमता है।
चुनाव हुए, अपार बहुमत मिला, सरकार बनी, धीरे-धीरे चुनावी दिन और रात गए उसी तरह 125 करोड लोगों से बार-बार किए वादे भी मौसम की तरह बदल गए। आज देश की सबसे बडी उर्वरक निर्माता कंपनी इफको का गौरव वापस लाने की सबसे बडी चुनौती है। क्या यह चुनौती स्वीकारते हुए मोदी सरकार इफको को पूर्व की तरह नियंत्रण में लेने के लिए सार्थक पहल कर पाएगी? यदि हां तो किसानों से किए आय दोगुना करने वाले वादे पूरे होने की दिशा में जरूर अग्रसर होंगे। केंद्र में नरेंद्र मोदी और उ.प्र. में महंत योगी आदित्यनाथ की नीति, नियत और ईमानदारी पर किसी को शक नहीं है लेकिन यह हर कार्य अपनी आंखों से देखकर, कानों से सुनकर और मुंह से बोलकर नहीं कर पाते हैं। इनके आंख, नाक, कान नौकरशाह हैं, इन नौकरशाहों में ईमानदार और बेईमान भी हैं।
जब ईमानदार पूरी संवेदनशीलता दिखाते हुए कार्य करता है तो योजनाएं जनता के बीच जाकर जमीन पर दिखाई देने लगती हैं और जब बीच का कोई नौकरशाह जिम्मेदारी भूलकर गरीब किसानों की योजनाओं में सुख-सुविधाएं खोजता है तो सरकार को वाह-वाही मिलने के बजाए बदनामी और जनता का आकोश देखने को मिलता है। गांव से शहर और सडक के रास्ते जो भी दल सरकार बनाकर संसद में पहुंचा और कोई निर्णय ले पाता उससे पहले अवस्थी ने सरकार के मंत्री और प्रधान मंत्री को सावधानी बरतते हुए पूरी चतुराई से अपने जाल में फंसा लिया है।
25 साल से लोकतंत्र के पवित्र मंदिर में शपथ लेने वाली हर सरकार उक्त माफिया के जाल में फंसती रही हैं। यही पकड और रिश्ते मोदी सरकार में भी हैं जो पीएमओ द्वारा भ्रष्टाचारी पर कसे जा रहे शिकंजे में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। मोदी सरकार में भी अवस्थी ने अपनी पकड़ और राजनीतिक रिश्तों का एहसास कराते हुए जांच एजेंसी सीवीसी, ईडी, सीबीआई को पूरी तरह से पिंजरे में कैद कर रखा है।
शातिर दिमाग अवस्थी ने इफको की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में नौकरशाहों से रिश्तों के बल पर या फिर व्यवस्था में दोष को भांपकर प्रधान मंत्री से 17 अक्टूबर 2017 को प्रशंसा पत्र जारी करा लिया फिर पीआर टीम के जरिए पीटीआई से यह खबर प्रसारित करवाई। उधर पीआर टीम ने समाचार पत्रों में पहले ही सांठ-गांठ कर रखी थी जिससे खबर प्रकाशित होकर देश भर में प्रसारित हो गई यह अवस्थी के चहेते नौकरशाह एवं राजनीतिक सलाहकारों की रणनीति के की जांच पीएमओ के निर्देश पर चल रही है ऐसे में प्रशंसा पत्र जारी होने से तहत सोची समझी साजिश थी। अहम् बात यह है जब अवस्थी के भ्रष्टाचार जांच एजेंसी पर अघोषित दबाव तो नहीं बन रहा है? क्या यह पत्र प्रधानमंत्री की जानकारी के बिना जारी कराया गया है? उक्त पत्र पर रबर स्टैम्प युक्त हस्ताक्षर हैं।
देखें नरेंद्र मोदी के हस्ताक्षर वाला यह प्रशंसा पत्र…
बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब इफको किसकी का 19वां पार्ट..
जारी है..
पिछला पार्ट.. इफको की कहानी (18) : उदय शंकर ने देश के हर नेता और नौकरशाह को धन-बल से दबा दिया!