रविंद्र सिंह-
भारत में सहकारी आंदोलन देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की विरासत है और सहकारिता की अवधारणा को प्रचारित और प्रोत्साहित करने में उनका बहुत अधिक योगदान रहा है. उन्हें सहकारिता के दर्शन में दृढ़ विश्वास था. वह देश में सामाजिक-आर्थक परिवर्तन लाने के शक्तिशाली साधन के रूप में सहकारी समितियों की भूमिका की कल्पना कर चुके थे.
सहकारिता के बारे में उनकी यही दूरगामी सोच उन्हें अपने समय का महान सहकारी विचारक बनाती है. भारत में इफको के 5 उर्वरक उत्पादक संयत्र एवं बाजार किसानों की मांग को पूरा करने में अच्छी भूमिका निभा रहे हैं. उक्त संयत्रों में वर्ष 2016-17 8.4 मिलियन मी.टन उर्वरकों का उत्पादन किया गया था. उर्वरक के साथ जैव उर्वरकों, पौधसंवर्धकों के साथ-साथ नाइट्रोजीनस और फॉस्फेटिक उर्वरकों का उत्पादन भी किया जा रहा है.
उर्वरकों की बिक्री करने के लिए पूर्णत: प्रशिक्षित कर्मचारियों से युक्त एक सशक्त देश व्यापी विपणन नेटवर्क का भी इस कार्य में काफी योगदान है. इफको के अनूठे वितरण नेटवर्क द्वारा यह सुनिश्चित किया है कि इफको के उर्वरक रेल, सड़क और समुद्री मार्गों के जरिए भारत के दूर दराज इलाकों तक पहुंचाए जा सकें. वर्ष 2016-17 में इफको ने भारत में 10.7 मिलियन मी.टन उर्वरकों की बिक्री की है. इस प्रकार इफको ने मेक इन इंडिया के स्वप्न को साकार किया है यह संतोषजनक नहीं है. इफको किसानों द्वारा स्थापित संस्था है परंतु निदेशक मंडल एवं बोर्ड हमेशा से उनके हितों के साथ अनदेखी करते आया है.
वर्ष 1967 में जहां इफको में मात्र 57 समिति सदस्य थे जो बाद में 38155 की संख्या तक हो गई. जैसे की कार्यकारिणी एवं निदेशक मंडल के दायित्व निर्धारित किए गए हैं उससे यही लगता है इफको घोटाले में सबकी बराबर की जिम्मेदारी है. संयत्रों के भीतर एवं बाहर 16 वर्ष से कुप्रबंधन के लिए पूरा निदेशक मंडल यह कहकर नहीं बच सकता कि सरकार का मालिकाना हक छीनकर की गई लूट में एकमात्र अवस्थी ही दोषी हैं. हां इतना जरूर है भ्रष्टाचार किसी ने कम तो किसी ने ज्यादा किया है.
इफको के कारोबार तथा मामलों के प्रबंधन व पर्यवेक्षण तथा उसके संचालन के लिए विनियमों, नियमावली, मैनुअल्स को तैयार अथवा उनका अनुमोदन किया जाता है. 31 मार्च 2017 को कार्यकारिणी समिति में 12 निदेशक थे जिनमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और 4 फंक्शनल निदेशक शामिल थे. वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान कार्यकारिणी समिति की 12 बैठकें हुईं हैं. वर्तमान में इफको के 5 संयत्र कलोल गांधी नगर गुजरात, कांडला कच्छ गुजरात, फूलपुर इलाहाबाद उत्तर प्रदेश, आंवला बरेली उत्तर प्रदेश, पाराद्वीप जगत सिंह पुर उड़ीसा में स्थित हैं.
सर्वप्रथम अवस्थी इफको में वरिष्ठ प्रबंधक सन् 1976 से 1986 तक इफको मुख्यालय में तैनात रहे. इस दौरान फूलपुर और आंवला संयत्र के निर्माण का कार्य प्रगति पर था. मुख्यालय में होने के कारण मलाईदार कमाई करने के लिए जिम्मेदारी लेकर उक्त संयत्रों में समस्त प्रकार के लॉजिस्टिक खरीदारी में जमकर पैसा कमाया और मंत्रालय में भी चढ़ावा दिया जिससे बोर्ड की बैठक बुलाकर अपना पद वरिष्ठ प्रबंधक में परिवर्तित करा लिया. अवस्थी ने इफको को अपना जागीर बनाने का जाल शुरू में ही बुनना शुरू कर दिया था. तदोपरांत मंत्रालय से सांठ-गांठ कर संयुक्त महाप्रबंधक बन गए.
उक्त पद ‘सी’ श्रेणी में आता था अवस्थी ने सोचा पायराट फास्फेट्स एंड केमिकल लिमिटेड (PPCL) भारत सरकार की ‘सी’ श्रेणी कंपनी है. इसलिए इफको में एमडी की कुर्सी पर कब्जा करने के लिए क्यों न ‘सी’ श्रेणी कंपनी में प्रबंध निदेशक का कार्यबार ग्रहण कर लिया जाए. रणनीति के तहत सन् 1986 में उक्त कंपनी में प्रबंध निदेशक का कार्यभार ग्रहण कर लिया. अब अपने रसूख का फायदा उठाते हुए PPCL को ‘बी’ श्रेणी कंपनी बनवा दिया. इसके पीछे शड्यंत्र यह था कि इफको ए श्रेणी की कंपनी है इसलिए प्रबंध निदेशक के पद पर वह व्यक्ति आ सकता है जो पूर्व में बी श्रेणी के पद पर तैनात रहा हो. आंवला इकाई में एसआर सहोर अधिशासी निदेशक एवं प्रबंध निदेशक के पद पर श्री अबधानी तैनात थे.
इसी बीच अवस्ती ने अपनी पहुंच और शातिर दिमाग से सबसे पहले यूनियन को पक्ष में लिया फिर दोनों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगवाए. इसके बाद मीडिया मैनेजमेंट से ख़बरें छपवाईं. एसआर सहोर के खिलाफ फर्जी मुकदमा लिखा दिया. बाद में अबधानी ने दुखी होकर अपने पद से इस्तीफा देकर प्रबंध निदेशक का पद विवादित करा दिया. अवस्थी यह खेल PPCL में रहते हुए पर्दे के पीछे से खेल रहे थे. PPCL में कार्यकाल पूरा होने पर अवस्थी एक बार फिर सन् 1993 में इफको में निदेशक पद पर आसीन हो गए.
सन् 1994-95 में आंवला द्वितीय संयत्र का विस्तार शुरू किया गया था, फूलपुर इकाई में श्री भट्ट अधिशासी निदेशक थे इसी बीच अवस्थी ने आंवला और फूलपुर इकाई के अधिकारियों की बैठक बुलाई फिर कहा दोनों संयत्र से फर्जीवाड़ा कर पैसे का इंतजाम करिए, मंत्रालय में देना है. इस पर उन्होंने इंकार कर दिया तो अवस्थी ने पुन: अपना सवाल दोहराते हुए कहा उक्त कार्य को कौन अधिकारी आसानी से कर सकता है?
इस पर चौधरी ने हामी भर दी तो श्री भट्ट को कार्यमुक्त कर चौधरी को प्रभारी बना दिया गया और लंबे समय के बाद भट्ट को निदेशक मार्केटिंग का दायित्व सौंपा. अवस्थी ने सन् 2003 में कलोल संयत्र में यह बहाना बनाया कि गेल इंडिया के द्वारा गैस की आपूर्ति समय पर नहीं की जा रही है जिससे उत्पादन महंगा हो रहा है. रणनीति के तहत 10000 मी.टन क्षमता के नेफ्था टैंक का निर्माण शुरू करा दिया गया. जिसके निर्माण पर 5.5 करोड़ का निवेश दिखाया, बाद में यह टैंक इस्तेमाल नहीं किया गया. निर्माण कार्यों में भारी धांधली की गई थी जिससे संस्था को भारी नुकसान हुआ.
इसी तरह गैस टर्बाइन पॉवर संयत्र की क्षमता पहले से बड़ी हुई थी परंतु भ्रष्टाचार करने के उद्देश्य से बेम परियोजना लगाकर 10 से 12 करोड़ का धन बर्बाद कर दिया गया. इसी तरह उर्जा बचत के नाम पर लगभग 250 करोड़ का धन निवेश किया गया. इसके बावजूद संयत्र में कार्बन डाई ऑक्साइड की स्लिप क्षमता से ज्यादा बढ़ा दी गई. जिससे लगातार नुकसान होता चला गया.
बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखित किताब ‘इफ़को किसकी?’ का तीसरा पार्ट.
जारी है…
दूसरा पार्ट : इफको की कहानी (2) : देश के किसानों को गुलाम बनाकर IFFCO का अपहरण कर लिया गया!