आज (शनिवार, 27 अप्रैल 2019) ) के दैनिक भास्कर की लीड है – मोदी का बैंक बैलेंस 26 लाख रुपए से चार हजार रुपए हुआ, एफडी 32 लाख से बढ़कर 1.27 करोड़ रुपए हुए। इस शीर्षक को पढ़कर ग्यारहवीं में पढ़ने वाली मेरी बेटी ने पूछा कि बैंक बैलेंस इतना कम कैसे हो गया। उसके सवाल में तारीफ थी पर जिज्ञासा भी थी। मैंने उसे बता दिया पर हिन्दी में देश के सबसे विश्वसनीय और नंबर 1 अखबार को पढ़ने वाले उन लोगों का क्या किया जाए जिनका मानसिक स्तर एनसीआर के पबलिक स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे से ज्यादा नहीं है और जो वोट देते हैं और “एक बार फिर मोदी” की आवाज पर थिरक रहे हैं तथा (जो) भिन्न कारणों से किसी से पूछ भी नहीं सकते।
कहने की जरूरत नहीं है कि इस शीर्षक से यही लगता है कि मोदी जी का बैंक बैलेंस कम हो गया जबकि एफडी यानी सावधि जमा (जो उसी बैंक में उसी खाते से संबंधित हो सकता है और जिसका पैसा उसी चेक से निकल सकता है) लगभग चौगुना हो गया है। आप जानते हैं कि बैंक बैलेंस कम होने और एफडी बढ़ने का कुल मतलब कम होने जैसा कुछ नहीं है। यह सिर्फ बढ़ना ही है। अखबार ने यह खबर अपने इलेक्शन फ्रंट पेज पर छापी है जो सबसे विश्वसनीय और नंबर 1 अखबार होने के उसके दावे से पहले का पन्ना है। इससे आप इस खबर और शीर्षक पर अखबार का बचाव समझ सकते हैं। पर मुद्दा वह नहीं है। मैं आपको अखबारों के खेल बताता हूं, वही बता रहा हूं।
मैं हिन्दी के सात और अंग्रेजी के तीन अखबार रोज देखता हूं। दैनिक भास्कर को छोड़कर किसी भी अखबार में यह खबर आज पहले पन्ने पर नहीं है। आप जानते हैं कि पिछले पांच साल से देश की सरकार चलाने का श्रेय ढाई लोगों को ही दिया जाता रहा है। आप इससे सहमत हों या नहीं – तथ्य यह है कि तीन ही लोग इस सरकार में प्रभावशाली रहे हैं। प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के अलावा तीसरे व्यक्ति वित्त मंत्री अरुण जेटली हैं जिन्हें बीमार होने की वजह से आधा माना जाता होगा पर मैं इससे सहमत नहीं हूं। ब्लॉग मंत्री के रूप में उनकी भूमिका सरकार के पक्ष में जोरदार रही है और देश की आर्थिक स्थिति का कबाड़ा करने के लिए अगर किसी एक को जिम्मेदार ठहराया जाएगा (भविष्य में भी) तो वो वित्त मंत्री के रूप में अरुण जेटली ही होंगे।
मैंने यह सब ये बताने के लिए लिखा कि ऐसे में इन तीन लोगों की अपनी (जीवन साथी और बच्चों समेत) कमाई कितनी बढ़ी उसका खास महत्व है। वैसे तो वित्त मंत्री के साथ कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद भी राहुल गांधी के पर्चा दाखिल करने के बाद उनकी आय में वृद्धि पर सवाल उठाते रहे और प्रधानमंत्री ने एबीपी न्यूज से अपने इंटरव्यू यह एतराज जताया था कि इस विषय पर (हालांकि विषय की चर्चा उन्होंने नहीं की थी) वित्त मंत्री की प्रेस कांफ्रेंस पर चैनल ने खबर नहीं दिखाई। ऐसी हालत में अरुण जेटली को (लोकसभा का) चुनाव लड़ना नहीं है। अमित शाह की पत्नी की आय में भारी वृद्धि हुई है। इस पर खबरें छपीं थीं पता नहीं आपने पढ़ी की नहीं। और अब जब प्रधानमंत्री ने अपनी आय की घोषणा की है तो उसका इंतजार बहुत लोग कर रहे होंगे। यह जानने के लिए कि इसमें कितनी वृद्धि हुई या आम भारतीयों की तरह कमी तो नहीं हुई।
इस लिहाज से प्रधानमंत्री के आय से संबंधित घोषणा निश्चित रूप से पहले पन्ने की खबर है। मौजूदा माहौल में आम तौर पर इसमें वृद्धि या कमी, जो भी होती खबर पहले पहले पन्ने पर ही होनी चाहिए थी। खासकर हिन्दी अखबारों में जिनके पाठक ऐसी सूचनाओं के लिए अखबारों पर ही निर्भर रहते हैं। इस लिहाज से सुबह मुझे भास्कर देककर उसका निर्णय़ सही लगा। पर शीर्षक से निराशा हुई। यह एक गंभीर खबर का मजाक बनाना है। तथ्यात्मक रूप से यह खबर और शीर्षक भी शत प्रतिशत सही है पर क्या यह भ्रम नहीं फैलाता है? क्या एफडी तीन गुना बढ़ गई यह बताने से पहले बैंक बैलेंस कम हुआ बताना तथ्यों को ईमानदारी से रखना है? अगर ऐसे ही खबर छपे तो हर साल हर नेता अपना बैंक बैलेंस आंखों में धूल झोंकने के लिए कम या ज्यादा करता रहे।
उपरोक्त शीर्षक के साथ इस संबंध में अखबार की जो खबर है, उसके साथ प्रकाशित तालिका देखिए
स्पष्ट है कि नकदी ज्यादा नहीं बढ़ी (क्योंकि कायदे से निवेश की गई है और आम आदमी को निवेश सलाहकार नहीं होने से यह लाभ नहीं मिलता है पर वह दूसरा मुद्दा है), बैंक बैलेंस कम हुआ पर एफडी (जो फालतू पैसा है, बचत है लोग बीमारी, शादी बुढ़ापे के लिए बचाकर रखते हैं, मोदी जी को शादी किसी की करनी नहीं, बीमारी का ख्याल सरकार रखेगी और पेंशन मिलेगी ही, फिर भी) चार गुना बढ़ गया है, कुल जमा राशि भी दूनी से ज्यादा हो गई है, निवेश भी दूना हो गया है, गहने जरूर कम हुए हैं – (पता नहीं क्यों हुए होंगे पर जरूरी खर्चे पूरे करने के लिए बेचे तो नहीं ही होंगे और उम्मीद है यह भी देश की खराब आर्थिक स्थिति के कारण नहीं होगा। अगर हो तो देश भर के लोगों के सोने का मूल्य कितना कम हो गया होगा और स्त्रीधन का क्या हाल होगा यह सब चिन्ता और खबर के विषय हैं – पर अभी तो अलग मुद्दा है) और अंत में, कुल संपत्ति भी ठीक-ठाक बढ़ी है। सालाना आय का तो जवाब ही नहीं – पर वह मुख्य रूप से वेतन वृद्धि ही होगी।
संपूर्ण वृद्धि साधारण नहीं है। और राहुल गांधी की आय में जितनी वृद्धि पर ये लोग शोर मचाते रहे हैं उससे कम तो बिल्कुल नहीं है। मैं नहीं कह रहा कि राहुल गांधी की आय में वृद्धि पर शोर नहीं मचाना चाहिए या वह सही ही है। लेकिन उसकी जांच करने और उसे सही होने का सर्टिफिकेट क्यों नहीं दिया गया यह आप समझते हैं। गलत होता तो कार्रवाई हुई ही होती। नहीं हुई तो यह सरकार का विशेषाधिकार है। मैं उसपर क्या कहूं। पर यह समझ में आता है कि दूसरे अखबारों में यह खबर पहले पन्ने से क्यों गायब है। नोटबंदी से कालेधन वाले रो रहे थे। जीएसटी से नुकसान भ्रष्टाचारियों को हुआ है और प्रधानमंत्री की आय कैसे बढ़ी? अगर वेतन भत्तों से ही बढ़ी तो क्या आम आदमी की आय में भी ऐसी ही वृद्धि हुई है। क्या पकौड़े बेचने का कारोबार करने वालों की भी हुई है?
पेश है दो उदाहरण। साथी यशंवत सिंह ने पूछा है – क्या आपकी सम्पत्ति 5 साल में डेढ़ से ढाई गुना हुई? मेरी तो नहीं हुई। झोले वाले फ़क़ीर मोदीजी की हो गई। पिछली बार मां गंगा ने बुलाया था तो डेढ़ करोड़ के आदमी थे। दुबारा मां गंगा ने चुनाव लड़ने बुलाया है तो अब ढाई करोड़ के आसामी हैं। ये उन्होंने लिख कर दिया है। बनारस में चुनावी पर्चा भरने के वक़्त। जो ब्याहने के बाद बीवी छोड़ चुका हो। घर परिवार से मतलब नहीं। आगे-पीछे कोई है नहीं। खुद को त्यागी तपस्वी कहता फिरता हो। वो डेढ़ का ढाई करोड़ बनाकर करेगा क्या? गुजरातियों से बिजनेस सीखिए। बोलो कुछ और, करो कुछ और। चाहता तो ये आदमी अपने कमाए एक करोड़ रुपए बनारस वाले गोद लिए गांव की गरीब लड़कियों को दे सकता था, पढ़ाई के वास्ते। लेकिन नहीं। अब तो गोद लिए गांवों तक पर बात नहीं करता, बाकी गांवों की हालत छोड़िए ….।
मेरी भी नहीं हुई। मेरा हाल तो और बुरा है। मुझे अपना फ्लैट बेचना है (जरूरत से ज्यादा बड़ा है, पांच साल से कमाई नहीं होने से अब संभालना भी मुश्किल है)। 2014 में इसके लिए 1.35 करोड़ मिल रहे थे। मैंने मना कर दिया कि 1.5 करोड़ में बेचूंगा। सरकार बनने के बाद समझ में आया कि अब 1.35 भी मिल जाए तो किस्मत और पांच साल हो गए 1.35 देने वाला दूसरा ग्राहक नहीं आया। “भ्रष्टाचारियों” के राज में इतने समय में प्रोपर्टी की कीमत दूनी हो जाती थी। काम धंधे का जो हाल है अपनी जगह। कम ही हुआ है। इस साल शायद 2014 के बराबर ही हो, ज्यादा तो नहीं होगा। ऐसे में कोई बचत नहीं हुई है। उधार बढ़ गया है सो अलग। एक भक्त मित्र कहते हैं आप बेरोजगार नहीं हो, स्वरोजगार करते हो। और स्वरोजगार का हाल यही है कि कमाई कम, जमा नहीं, संपत्ति का मूल्य घट गया। मोदी जी के गहने कैसे कम हुए मुझे नहीं मालूम पर पांच साल में मैंने तो कुछ गहने बेचे भी हैं।
वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट
sanjay chaudhary
April 28, 2019 at 8:18 pm
As PM of India he is getting that salary … and biased reporting did by you is clearly seen in this post .. well now you must be thinking I am a Modi bhakt … bhakt are way better than biased chamcha ..