मजीठिया वेज बोर्ड मामले में माननीय सुप्रीमकोर्ट ने साफ़ आदेश दिया था कि मजीठिया वेज बोर्ड की रिपोर्ट को 11 नवम्बर 2011 से माना जाएगा और कर्मचारियों को उनका एरियर मार्च 2014 तक जरूर दे दिया जाए लेकिन इंदौर में दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका और स्वदेश ने बाकायदे मार्च 2014 के बाद श्रम आयुक्त कार्यालय को एक पत्र लिखा और इस रिपोर्ट को लागू करना इसलिए जरूरी नहीं बताया क्योंकि उन्होंने 20 (जे) का सहारा लिया है। स्वदेश ने तो दो दो बार श्रम आयुक्त कार्यालय को पत्र लिखकर कागजात देने में समय माँगा।
मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर अपने ही पत्रकारों और गैर पत्रकारों के पेट पर लात मारने वालों में मध्यप्रदेश के अखबार मालिक भी कम नहीं हैं। इंदौर सहित कई जगहों पर अब तक श्रम आयुक्त कार्यालयों द्वारा अखबार मालिकों के कार्यालय में जाकर सर्वे नहीं किया गया। मध्यप्रदेश के एक साथी ने आरटीआई के जरिये ये जानकारी निकाली कि किस समाचार पत्र प्रतिष्ठान ने मजीठिया वेज बोर्ड मामले में अपना क्या स्टेटमेंट दिया है और तय समय पर अखबार मालिकों ने मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश लागू की या नहीं। इस आरटीआई के जरिये श्रम आयुक्त कार्यालय ने वर्ष 2014 और 2015 में समाचार पत्र मालिकों द्वारा भेजे गए पत्र की कॉपी की प्रति भी भेजी है।
इस सूचना में बताया गया है कि फ्री प्रेस ने इंदौर के सहायक कामगार आयुक्त को 24 जून 2015 को एक पत्र लिखकर बताया है कि उसने कुल 51 कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ दिया है जिसमें 15 पत्रकार और 36 गैर पत्रकार हैं। फ्री प्रेस की तरफ से डायरेक्टर इनचार्ज प्रवीण नागर ने ये जवाब सहायक कामगार आयुक्त को भेजा है। इसी तरह दैनिक भास्कर ने श्रम आयुक्त इंदौर को एक पत्र लिखकर 6 जुलाई 2015 को बताया कि उसके यहाँ कर्मचारियों ने 20 (जे) का विकल्प स्वेच्छा से चुना है। दैनिक भास्कर ने श्रम आयुक्त कार्यालय द्वारा भेजे गए एक नोटिस के जवाब में ये जानकारी दी। डीबी कार्प की तरफ से भेजे जवाब में लिखा गया है 11 नवम्बर 2011 को मजीठिया वेज बोर्ड के लिए जारी अधिसूचना में सेक्शन 20 (जे) जो अधिसूचना के पेज नंबर 75, 76 में है का विकल्प हमारे कर्मचारियों ने चुना है इसलिए मजीठिया वेज बोर्ड की अधिसूचना डीबी कार्प में लागू नहीं होती।
दैनिक भास्कर की तरफ से इसके पूर्व सहायक श्रम आयुक्त को 28 जुलाई को लिखे एक पत्र में कहा गया है कि आपके 25 मई 2014 के पत्र के जवाब में आपको सूचित करना चाहूँगा कि 11 नवम्बर 2011 को जारी अधिसूचना में 20 (जे) का विकल्प हमारे कर्मचारियों ने स्वेच्छा से चुना है। कर्मचारियों द्वारा 20 (जे) की साइन किए गए पत्र की प्रति भी डीबी कोर्प ने इंदौर के सहायक कामगार आयुक्त को भेज दिया जबकि 20 (जे) में कहा गया है कि अगर कर्मचारी का वेतन पहले से ज्यादा है तो उसके वेतन को किसी तरह कम नहीं किया जा सकता। यानि अगर मजीठिया वेज बोर्ड से ज्यादा हो तो। मध्य प्रदेश में समाचार पत्र मालिकों ने 20 (जे) का खूब दुरूपयोग किया है।
इस आरटीआई से एक और बात सामने आई है। भास्कर की प्रबंधन कंपनी ने पत्र के जरिये पूरे मध्यप्रदेश में कार्यरत अपने पत्रकारों और गैर पत्रकारों की एक सूची भी श्रम आयुक्त कार्यालय को भेजी है जिसमे इंदौर में 78 पत्रकारों और गैर पत्रकारों की संख्या 307 बताई गई है। इसी तरह खंडवा में पत्रकार 38 और गैर पत्रकार 63 बताये गए हैं। रतलाम में 32 पत्रकार और 56 गैर पत्रकार हैं। सागर में 36 पत्रकार और 74 गैर पत्रकार हैं। उज्जैन में 27 पत्रकार और 68 गैर पत्रकार हैं। दैनिक भास्कर में मध्य प्रदेश में कुल पत्रकारों की संख्या जोड़ें तो 372 है और गैर पत्रकारो की संख्या 912 है। भास्कर में कुल 1284 कर्मचारी पत्रकार और गैर पत्रकार की कैटगरी में हैं।
राजस्थान पत्रिका ने भी इंदौर में 7 जुलाई 2015 को सहायक श्रम आयुक्त को एक पत्र लिखकर मजीठिया वेज बोर्ड न देने के बहाने खोज लिए हैं। राजस्थान पत्रिका ने पत्र में लिखा है कि संस्थान द्वारा कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड की वेतन अनुपालना की जा रही है। राजस्थान पत्रिका ने भी 20 (जे) को ढाल बनाया है और लिखा है इस पत्र में कि कर्मचारियों ने उन्हें मिल रहे वेतन लाभ से संतुष्ट होकर स्वेच्छा से उक्त वेज बोर्ड की सिफारिशों के बिंदु संख्या 20 (जे) में प्रदान किये विकल्प को चुनते हुए वर्तमान में दिए जा रहे वेतन पर अपनी सहमति प्रदान की है। साथ ही पत्रिका ने ये भी लिखा है कि हमारे सभी दस्तावेज जयपुर मुख्यालय में रहते हैं।
इसी तरह स्वदेश समाचार पत्र के प्रबंधक ने भी 8 जुलाई 2015 को एक पत्र इंदौर के सहायक श्रम आयुक्त को एक पत्र लिखकर मजीठिया वेज बोर्ड से जुड़े कागजात देने में एक माह का समय माँगा था और लिखा था 2011 से कागजातों को एकत्र करने में उसे एक माह का समय दिया जाय। स्वदेश को सहायक श्रम आयुक्त इंदौर ने एक नोटिस भी दिया था। कारण बताओ नोटिस के जवाब में स्वदेश ने 15 जुलाई 2015 को भेजे पत्र में लिखा है कि आपके द्वारा चाही गयी जानकारी काफी पुरानी है इसलिए उसे एकत्र करने के लिए एक माह का समय आवश्यक है। यानी मध्यप्रदेश के बड़े अखबारो में एक ने भी मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश तय समय पर लागू करने के आदेश को नहीं माना और माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश को जमकर हवा में उछाला।
शशिकान्त सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट
9322411335