पुष्य मित्र-
दर्जन से अधिक लड़के उस लड़की को घेरते हुए जय श्री राम के उग्र नारे लगा रहे थे. वह स्कूटी रोक कर साहस के साथ बढ़ती चली गयी. उसके साहस ने उम्मीद जगा दी. मगर जैसे ही उसके मुंह से अल्ला हू अकबर निकला, मेरा मन उदास हो गया. उसे अल्ला हू अकबर नहीं कहना था. हिंदुस्तान जिंदाबाद कह देती, ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान कह देती. कुछ और कह देती.
खैर, उसे जो कहना था उसने कहा. मगर मुझे अच्छा नहीं लगा. सबकुछ किसी पोलिटिकल प्लाट सा लगा. पिछले 80-90 साल में इस देश की राजनीति में और हुआ क्या है, सिवा जय श्री राम और अल्ला हू अकबर की जुगलबंदी के.
अंगरेजों ने शुरू करवाया और आज तक जारी है. जय श्री राम कहने से अल्ला हू अकबर वालों को ताकत मिलती है और अल्ला हू अकबर कहने से जय श्री राम वालों के हौसले बुलंद होते हैं. यह पोलिटिकल पैटर्न है. दोनों एक दूसरे के लिए खाद-पानी का काम करते हैं. आजकल मैं जिन्हें इस लड़ाई में कूदता देखता हूं, उसके बारे में यही लगता है कि या तो जानबूझकर या नासमझी में ये पोलिटिकल टूल बने बैठे हैं. मैं उस लड़की के साहस की दाद नहीं दे सकता. बस उसकी नासमझी पर उदास हो सकता हूं.
इस देश को अगर नफरत की आग से बचाना है तो इस जुगलबंदी को तोड़ना होगा. जय श्री राम का जवाब कतई अल्ला हू अकबर नहीं है. न अल्ला हू अकबर का जवाब जय श्री राम है. हमें एक दूसरे के सामने खड़ा नहीं होना है, एक दूसरे के साथ खड़ा होना है.
फिर गांधी के पास लौटने का मन होता है. फिर गाने का मन होता है, ईश्वर अल्लाह तेरो नाम…