यह मप्र है, यहां सबकुछ शांति और सद्भाव के साथ होता है। व्यापमं घोटाले में 28 आरोपियों की मौत हो गई फिर भी शांति है। डीमेट घोटाले में दायें से बायें तक सब के सब फंसे हैं। कुल 5500 फर्जी डॉक्टर मरीजों का इलाज कर रहे हैं, फिर भी चारों ओर शांति है। पत्रकार संदीप कोठारी हत्याकांड हो गया, तो क्या हुआ, शांति तो शांति ही है। कोई आवाज नहीं उठा रहा। उल्टा पुलिस मरने वाले को ही कुछ इस तरह दोषी ठहरा रही है मानो मौत तो उसका मुकद्दर ही थी। जो हुआ, वही होना था।
मप्र पुलिस ने आज बड़ी ही चतुराई के साथ मृत पत्रकार संदीप ठाकुर का आपराधिक रिकार्ड जारी किया है। उसे हिस्ट्रीशीटर और सजायाफ्ता अपराधी बताया है। पूरा रिकार्ड खोल डाला गया है। कुछ इस तरह मानो जो हुआ वो अन्याय नहीं था, जो घट गया वो अपराध नहीं था, वो तो संदीप कोठारी की नियति थी, यही उसकी किस्मत में लिखा था, उसने जैसा किया, वैसा ही भुगता।
लेकिन इस तकनीकी प्रजेंटेशन में मप्र पुलिस एक चीज छिपा नहीं पाई, और वो यह कि उसके खिलाफ दर्ज होने वाली पहली एफआईआर से पहले वो नईदुनिया जैसे प्रतिष्ठित अखबार का पत्रकार था। वो 2013 तक नईदुनिया के लिए काम करता रहा।
यहां याद दिला दें कि मप्र में एक व्यवस्था लागू की गई थी, जिसमें निर्देशित किया गया है कि किसी भी पत्रकार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले राजपत्रित स्तर के पुलिस अधिकारी से उसकी जांच कराई जाए। पुलिस रिकार्ड प्रमाणित करता है कि संदीप कोठारी के खिलाफ दर्ज किए गए मामलों से पहले कोई जांच नहीं हुई। माइनिंग माफिया के दवाब में पुलिस ने संदीप के खिलाफ झूठे मामले दर्ज किए। इस मामले की जांच में यह पाया भी गया कि शिकायत झूठी थी। संदीप को पूरी जिंदगी जेल में सड़ाने की प्लानिंग पर काम चल रहा था परंतु वो फिर से बाहर निकल आया।
जिस तरीके से अपहरण हुआ और जितनी आसानी से आरोपी अरेस्ट हुए, यह संदेह करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश देते हैं कि उन्हें किसी शक्तिशाली हाथ का आशीर्वाद प्राप्त है। इस खेल के पीछे कोई और भी है, जिसका चेहरा सामने नहीं आया है और इस फाइल को फटाफट बंद करने का कार्यक्रम बनाया जा चुका है।
प्रश्न यह भी है कि एक प्रेम प्रसंग के दौरान आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या पर सीबीआई जांच का आदेश देने वाली सरकार इस मामले में चुप क्यों है। प्रदेश में पत्रकारों की ठेकेदारी करने वाले पत्रकार संगठनों के प्रदेश अध्यक्ष गण अब तक बालाघाट क्यों नहीं पहुंचे, क्या सबकुछ मैनेज हो गया है। माइनिंग माफिया ने इससे पहले पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को भी निशाना बनाया है, इस बार पत्रकार शिकार हो गया। सवाल यह है कि क्या सरकार भी माइनिंग माफिया के यहां गिरवी रखी हुई है।
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