श्रीकान्त अस्थाना-
अग्रज रामेश्वर पांडेय (काका) के आकस्मिक महाप्रस्थान की सूचना से स्तब्ध और मर्माहत हूं। अभी 10-12 दिन पहले ही मिला था …. सब कुछ सामान्य लग रहा था सिवाय इसके कि हर पांचवें- छठें दिन डायलिसिस के लिए जाना उनकी सामान्य चर्या में शामिल हो गया था।

दरअसल, काका योद्धा थे। वह जिंदगी भर कई-कई मोर्चों पर एकसाथ कई लड़ाइयां लड़ते हुए भी सहज ही नहीं, प्रसन्न रहना और दिखना जानते थे। उनका अतुलनीय जीवट और समायोजन क्षमता सभी परिस्थितियों को सहज बना देता था जिसके कारण बहुत कम लोगों को ही उनकी निजी पीड़ाओं और संकटों का भान हो पाता था।
पत्रकारीय जीवन में उनका कई हजार लोगों से सीधा साबका पड़ा और इन हजारों में से ज्यादातर को यही भरोसा रहा है कि वे काका के आत्मीय हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि काका के असमय प्रस्थान की इस घड़ी में मैं बच्चों, भाभी जी और अन्य परिजनों को किन शब्दों से ढाढ़स बंधाऊं और किन शब्दों में श्रद्धांजलि दूं।
ख़ुशदीप सहगल-
मुझ जैसे सैकड़ों नौसिखियों को पत्रकारिता का ककहरा पढ़ाने वाले काका नहीं रहे… आदरणीय रामेश्वर पांडेय का बुधवार सुबह लखनऊ में निधन…
दैनिक जागरण और अमर उजाला में काका ने मुझे पत्रकारिता की दुनिया में उंगली पकड़ कर चलना सिखाया…2004 में मैंने प्रिंट पत्रकारिता से टीवी पत्रकारिता का रुख किया….लेकिन पिछले 19 बरस में भी उन्होंने अपना स्नेह मुझ पर बनाए रखा…फोन और सोशल मीडिया के ज़रिए लगातार उनसे संपर्क बना रहा…
उनकी विनम्रता देखिए जिनके एक आदेश पर मैं सिर के बल पर खड़ा हो सकता था, वो मुझे मैसेज करके कहते थे- खुशी जब फ्री हो तो कॉल करना…
एक सच्चे कर्मयोद्धा की तरह आख़िरी समय तक उनकी क़लम नहीं रुकी…हाल ही में उन्होंने ‘वॉयस ऑफ लखनऊ’अख़बार छोड़ ‘सत्य संगम’ की कमान संभाली …मुझे याद है कि किस तरह डॉयबिटीज़ की वजह से वो इन्सुलिन के शाट्स लेते हुए भी काम करते रहते थे….उनका पत्नी, एक बेटी, तीन बेटों का भरापूरा परिवार है…ईश्वर सभी को ये अपार दु:ख सहने की शक्ति दे…
क़लम के कर्मयोगी को शत शत नमन…
अलविदा काका…