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सुख-दुख

बिहार-झारखंड में बुलेट से सरेआम कलम का कत्ल किया जा रहा है

यह सिर्फ पत्रकारों की हत्या नहीं बल्कि पत्रकारिता जगत, अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र की हत्या हुई

राजनीति के गलियारे में भ्रष्टाचार और दबंगई के दौर के कारण लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ इस समय बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा है। बिहार में पिछले 4 महीने में 3 पत्रकारों और झारखण्ड में 2 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है। ये केवल 5 पत्रकारों की हत्या भर नहीं है, बल्कि पत्रकारिता जगत, अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र की हत्या है। पत्रकारिता की दुनिया के लिए ये दिन काले दिन के समान हैं। बुलेट से सरेआम कलम का कत्ल किया गया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सरेआम खून किया जा रहा है।

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यह सिर्फ पत्रकारों की हत्या नहीं बल्कि पत्रकारिता जगत, अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र की हत्या हुई

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राजनीति के गलियारे में भ्रष्टाचार और दबंगई के दौर के कारण लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ इस समय बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा है। बिहार में पिछले 4 महीने में 3 पत्रकारों और झारखण्ड में 2 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है। ये केवल 5 पत्रकारों की हत्या भर नहीं है, बल्कि पत्रकारिता जगत, अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र की हत्या है। पत्रकारिता की दुनिया के लिए ये दिन काले दिन के समान हैं। बुलेट से सरेआम कलम का कत्ल किया गया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सरेआम खून किया जा रहा है।

अभी हजारीबाग के पत्रकार की मृत्यु की जाँच निष्पक्ष रूप से कराने की मांग ही हो रही थी की बिहार के समस्तीपुर से एक और कलम के सिपाही की बेरहमी से 7 गोली मारकर हत्या की सूचना मिली। आखिर इन हत्याओं के लिये हम कबतक केवल निंदा और श्रद्धांजलि देते रहेंगे? यह हत्याओं का सिलसिला आखिर कब थमेगा? कई खुलासों के बैंक तैयार करने वाले पत्रकार आम तौर पर सुबूत जुटाने में कई लोगों के निशाने पर हो जाते हैं। निशाना तब तक ही चूकता है, जब तक इन निशानेबाज़ों के हाथ, क़ानून और व्यवस्था की पकड़ से ढीले नहीं कर दिए जाते। यह वह कोण है, जिसमें राजनीति गंदी दिखायी पड़ती है क्योंकि भारत में पत्रकारों को सबसे ज्यादा खतरा नेताओं से है।

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पिछले 25 साल में सबसे ज्यादा उन पत्रकारों की हत्या हुई है जो राजनीतिक बीट कवर करते थे। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पिछले 25 सालों में जिन पत्रकारों की हत्या हुई है, उनमें 47 फीसदी राजनीति और 21 फीसदी बिजनेस कवर करते थे। ये आंकड़े साबित करते हैं कि देश में पत्रकारों के खिलाफ नेताओं और उद्योगपतियों का एक गठजोड़ काम कर रहा है। पत्रकारों का हर वह शख्स दुश्मन होता है जिसके हाथ काले कारोबार से सने होते हैं।

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नेता, पदाधिकिरी, माफिया, उग्रवादी, आतंकवादी सभी के लिये पत्रकार आंख की किरकिरी बना रहता है। उस पर से सितम यह, पत्रकार ही पत्रकार का दुश्मन होता है। अफ़सोस है ऐसे दोहरे चरित्र के पत्रकारों को अपने मृत भाई का सौदा करते हुये शर्म नहीं आती। पत्रकार सुरक्षा कानून एक मात्र हथियार है जिससे कलम के सिपाहियों की रक्षा हो सकती है। हम सभी को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी जी को पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने के लिये पत्र लिखना चाहिए। यह हमारे वजूद और अस्तित्व की लड़ाई है, “चौथे स्तंभ” के वजूद को बचाने के लिये हम सभी यह पहल करें।

Rahul Kaushal
[email protected]

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मूल खबर….

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