विष्णु राजगढ़िया-
जून 2023 के प्रथम सप्ताह में टीवी9 भारतवर्ष पर प्रसारित कन्हैया कुमार का एक इंटरव्यू चर्चा में है। युवा कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार से तीखे सवाल करने के लिए पांच संपादकों को बुलाया गया था। इनमें अशोक वानखेड़े, आर राजगोपालन, हर्षवर्धन त्रिपाठी, जयशंकर गुप्त और राहुल सिन्हा शामिल थे। एंकर की भूमिका निशांत चतुर्वेदी ने निभाई।
लगभग एक घंटे नौ मिनट की यह चर्चा प्रारंभ से अंत तक कटुतापूर्ण रही। यहां तक कि कन्हैया कुमार ने तीन संपादकों को विचारधारा विशेष का प्रवक्ता घोषित कर दिया। इस टैग से लिबरल पत्रकार अशोक वानखेड़े, आर राजगोपालन काफी आहत हैं। दोनों ने ट्वीटर पर अपनी पीड़ा जाहिर की है।
इस शो की शुरूआत ही बिल्कुल असम्मानजनक तरीके से हुई। मंच पर पांचों संपादक पहले से बैठे थे। कन्हैया को आमंत्रित करते हुए बैकग्राउंड में ‘आजादी‘ वाले नारों की धुन बजाई गई। कन्हैया ज्योंही अपनी कुर्सी तक पहुंचे, एंकर ने फौरन ‘परिवारवाद‘ पर सवाल ठोंक दिया। जबकि किसी भी चर्चा के प्रारंभ में अतिथि का स्वागत करते हुए पैनल या चर्चा में मौजूद लोगों का परिचय कराया जाता है। अतिथि को कुर्सी पर बैठकर एक क्षण सांस लेने का अवसर दिया जाता है।
लेकिन एंकर ने बेहद आक्रामक तरीके से पूछ डाला कि आपके नारों में ‘परिवारवाद‘ से आजादी की बात क्यों नहीं थी? क्या आपका पहले से ही कांग्रेस में जाने का इरादा था?
कन्हैया कुमार ने ऐसे अप्रत्याशित व्यवहार की अनदेखी करते हुए इस सवाल का जवाब देने से पहले टीवी-9 भारतवर्ष की तारीफ में एक-दो वाक्य बोले। यह शिष्टाचार की बात थी। एंकर को भी अपने संस्थान की तारीफ सुननी चाहिए थी। लेकिन एंकर ने कन्हैया कुमार को बीच में टोकते हुए परिवारवाद वाला अपना सवाल दोहरा दिया।
कन्हैया कुमार ने बात संभालते हुए कहा- “हमारी संस्कृति में कोई हमारे घर आता है तो पहले उसका हालचाल पूछते हैं, तब सवाल करते हैं।“
इसके बाद कन्हैया ने परिवारवाद वाले सवाल का जवाब दिया। एंकर ने दूसरे सवाल में पूछा कि केजरीवाल की तरह आप भी कहते थे कि राजनीति में नहीं आएंगे। फिर राजनीति में क्यों आए?
यह बचकाना सवाल था। कन्हैया ने कभी ऐसा नहीं कहा था। यही बात उन्होंने अपने जवाब में दोहराई। बोले- “मैंने ऐसा कभी नहीं कहा। पत्रकार को होशियार होना चाहिए, लेकिन पत्रकारिता में थोड़ी ईमानदारी भी जरूरी है। आप मुझे मिसकोट कर रहे हैं। मैं तो हरदम कहता हूं कि जब राजनीति से हर चीज तय होती है, तो हम सबको अपनी राजनीति तय करनी चाहिए।“
एंकर ने तीसरा सवाल ‘जातिवाद‘ की राजनीति को लेकर किया। पूछा कि आप जातिवाद के खिलाफ थे। लेकिन अब जातिवादी पार्टियों के साथ गंठबंधन में आप असहज महसूस करते हैं अथवा नहीं। कन्हैया कुमार ने इसका जवाब देते हुए जातिवाद को गलत बताते हुए इसे खत्म करने की बात करने लगे।
ठीक इसी वक्त मामला गरम होने लगा। पैनल में बैठे बुजुर्ग पत्रकार आर. राजगोपालन कुछ बड़बड़ाते हुए कुछ जातियों का नाम लेते हुए ऐसा बोलने लगे जिससे कोई सवाल स्पष्ट नहीं हो रहा था। इसी बीच अशोक वानखेड़े ने कहा कि कन्हैया जी, आपमें डबल पर्सनालिटी दिखाई देती है।
कन्हैया बोले- “आप व्यक्तिगत टिप्पणी कर रहे हैं।“
इस दौरान बार-बार एंकर के रोकने के बावजूद आर. राजगोपालन कुछ व्यवधान डालते रहे। कन्हैया ने हमला किया- “मेरा संस्कार यह नहीं है कि आडवाणी जी की तरह अपमानित करूं।“
अशोक वानखेड़े ने फिर जातिवाद पर सवाल किया। तब कन्हैया ने कहा- “हम जातिवाद के खिलाफ हैं। संविधान की प्रस्तावना में हम भारत के लोग लिखा है, किसी जाति का नाम नहीं लिखा है। हम इसी विचारधारा में भरोसा करते हैं। मोदीजी ने रैली में खुद को ओबीसी बताया, इसमें जातिवाद है या नहीं इसे भी देखना होगा।“
अशोक वानखेड़े इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुए और बोले कि आपसे कुछ सवाल पूछा था, आप कुछ अन्य जवाब दे रहे हैं।
तब कन्हैया ने कहा- “आप एडिटर हैं तो स्पोक्सपर्सन या प्रवक्ता की तरह बात न करें।“
इस पर अशोक वानखेड़े तथा आर. राजगोपालन दोनों ने आपत्ति जताई। दोनों ने पूछा कि हम किस पार्टी के प्रवक्ता हैं?
कन्हैया ने कहा- “आप जो बात कर रहे हैं, उसमें राजनीतिक पूर्वाग्रह है। प्रधानमंत्री खुद को ओबीसी कहते हैं तो उसमें आपको जातिवाद नहीं दिखता।“
इसी बीच अशोक वानखेड़े ने जेएनयू का उल्लेख किया। इस पर कन्हैया ने कहा कि जेएनयू से आपको क्या समस्या है, दो केंद्रीय मंत्री जेएनयू से हैं।
इसके बाद सेक्यूलरिज्म पर सवाल आया। कन्हैया ने कहा कि देश की सभी पार्टियों का किसी दौर में भाजपा से गंठबंधन रहा है। इस दौरान हर्षवर्धन त्रिपाठी ने कहा- “आपको लालूजी से नाराजगी है। आप लालूजी के कारण सांसद नहीं बन पाए। आपको सामान्य इतिहास का ज्ञान नहीं है। अब एक मिनट में इनको इतिहास समझा देते हैं। आपकी छवि कम्युनिस्ट नेता और जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष वाली है।“
कन्हैया ने कहा- “मैं आपका पूर्वाग्रह समझता हूं। आप पत्रकार की तरह सवाल करेंगे तो उस तरह जवाब दूंगा। अगर प्रवक्ता की तरह पूछेंगे तो प्रवक्ता जैसा जवाब मिलेगा।“
इसके बाद दोनों तरफ से गर्मागर्म बहस चलती रही। इस दौरान एंकर की कोई नहीं सुन रहा था। अशोक वानखेड़े और आर. राजगोपालन भी बीच-बीच में हस्तक्षेप करते रहे। इस क्रम में आर. राजगोपालन नाराज होकर बहस छोड़कर जाने को उठे। कन्हैया बोले- “चले जाइए। यह कोई शादी नहीं है जहां आप फूफा बन गए हैं।“
अशोक वानखेड़े ने कहा- “आप जवाहरलाल के नाती क्यों बन रहे हैं?“
इसी तरह हल्ला-गुल्ला होता रहा। कन्हैया कुमार लगातार आक्रामक बने रहे। इस दौरान जयशंकर गुप्त और राहुल सिन्हा के सवालों का जवाब सहज ढंग से चला। लेकिन सेना को लेकर कन्हैया के पुराने कथित बयान के मामले पर फिर गर्माहट बढ़ी। कन्हैया ने कहा कि दुनिया भर में महिलाओं पर अत्याचार के संबंध में मेरे एक घंटे के वीडियो से एक पंक्ति निकालकर दिखाना उचित नहीं। पूरा वीडियो दिखाइए।
इस दौरान हर्षवर्धन की बात पर कन्हैया ने कहा- “आप पत्रकार हैं? हम आपको अच्छी तरह पहचानते हैं।“
आर. राजगोपालन बार-बार कहने लगे कि आप हम सबका नाम बताइए। जबकि शो के प्रारंभ में किसी का परिचय ही नहीं कराया गया था।
कन्हैया कुमार अपने आक्रामक तेवर में रहे। संबित पात्रा और मोदी जी से जुड़े दो सवालों के जवाब में उन्होंने तीन पत्रकारों को भाजपाई प्रवक्ता कह डाला। अशोक वानखेड़े ने भी हैरानी जताते हुए पूछा कि हम तीनों प्रवक्ता हो गए?
कुल-मिलाकर पूरा शो टीवी बहसों की शोरगुल बनकर रह गया। टीवी-9 भारतवर्ष की मंशा भी संभवतः ऐसी ही रही हो। ऐसी चर्चा को सार्थक और शालीन कैसे बनाया जाए, इस पर कई सुझाव दिए जा सकते हैं। लेकिन वैसी चर्चा सुनता कौन है? टीवी चैनलों को टीआरपी तो आपसी नोकझोंक से ही मिलती है।
इस चर्चा ने अशोक वानखेड़े को दुखी किया। बेहतर होगा कभी वह अकेले में कन्हैया कुमार के साथ कोई चर्चा करें। तब शायद ऐसा दुराग्रह भरा माहौल न हो। हालांकि इस चर्चा में ज्यादा तीखी झड़प हर्षवर्षन त्रिपाठी के साथ हुई। लेकिन उन्हें भाजपा प्रवक्ता समझ लिए जाने से कोई कष्ट नहीं था। यह उनके लिए एक सम्मान ही रहा हो। ट्वीटर पर उनकी प्रसन्नता दिख रही है।
इस शो ने यह भी साबित किया कि ऐसे प्रतिकूल मौकों से निपटने की कला में कन्हैया कुमार ने महारत हासिल कर ली है। कई सवालों का उन्होंने काफी संतुलित, संयमित और सैद्धांतिक जवाब दिया। कई बार पत्रकारों के प्रति सम्मान भाव का प्रदर्शन भी किया। लेकिन किसी भी हमले का फौरन तीखे हमले से जवाब देकर अपनी प्रतिष्ठा बचाए रखने में कामयाब रहे। पांच संपादक और एक एंकर यानी छह लोग मिलकर जब व्हाट्सअप फारवर्ड स्तर के पूर्वाग्रह भरे सवाल पूछ रहे हों, तो अपना बचाव करना कन्हैया कुमार की विवशता थी।
हमने कभी सत्तापक्ष के लोगों के साथ टीवी बहसों या इंटरव्यू में मीडिया का ऐसा हमलावर रवैया नहीं देखा। चर्चा के प्रारंभ में एंकर द्वारा सामान्य शिष्टाचार का पालन नहीं करना कोई चूक थी, या अतिथि को अपमानित करके मजा लेने की रणनीति, यह विचारणीय विषय है।
शो के बाद अशोक वानखेड़े, आर राजगोपालन और हर्षवर्धन त्रिपाठी, तीनों के ट्वीट भी चर्चा हैं। तीनों के एक-एक ट्वीट को देखकर अंदाज लगा सकते हैं कि कन्हैया कुमार के साथ इनका रिश्ता पत्रकार वाला था, या प्रवक्ता जैसा।
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