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सियासत

हमें कश्मीर का बॉयकाट करने की नहीं, कश्मीर में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की जरूरत है

आओ, जन्नत को संभालें… शक्ति और सत्ता के लालच में न केवल केंद्र सरकारों ने बल्कि स्थानीय राजनीतिक दलों, नेताओं और अलगाववादियों ने कश्मीर घाटी में आग लगाई है, बल्कि कश्मीर समस्या की गांठों को कुछ और उलझा दिया है। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी जब सत्ता में नहीं होते तो उनकी ज़ुबान अक्सर अलगाववादियों की भाषा बोलती है। लेकिन उसका एक बड़ा कारण यह है कि दशकों से कश्मीर में अलगाववाद की हवा बहती रही है और कुछ लोग देश की केंद्रीय सत्ता को “विदेशी आक्रांता” के रूप में परिभाषित करते रहे हैं और कश्मीर घाटी में वोट लेने के लिए अलगाववाद की भाषा एक आसान रास्ता है। दक्षिणी कश्मीर जहां अलगाववाद चरम पर है, सिर्फ कश्मीर घाटी पर ही नहीं बल्कि पूरे प्रांत पर हावी है और आतंकवाद से डरे प्रादेशिक अखबार भी अलगाववाद की भाषा बोलने के लिए विवश हैं। खेद का विषय है कि केंद्र की किसी भी सरकार ने इस सच को नहीं पहचाना है, यही कारण है कि कश्मीर में आतंकवाद पर काबू पाने की सरकार की सारी कोशिशें विफल होती रही हैं।

समस्या की जड़ को समझे बिना समस्या का इलाज बेकार ही साबित हुआ है। दरअसल हम सिर्फ कुछ आतंकवादी युवकों को तो मार गिराते हैं, जबकि हमारा हमला आतंकवाद पर होना चाहिए था। यह समझना आवश्यक है कि आतंकवाद एक विचार है, यह एक विशिष्ट विचारधारा है। यदि हम आतंकवाद खत्म करना चाहते हैं तो हमें आतंकवादियों के साथ-साथ आतंकवाद पनपाने वाली विचारधारा से भी लड़ना पड़ेगा, उस विचारधारा की काट पेश करनी पड़ेगी जिसके कारण कश्मीर का युवावर्ग आतंकवाद की ओर आकर्षित हो रहा है।

ऐसा नहीं है कि प्रदेश के लोग शांति नहीं चाहते, सन् 2009 में जब उमर अब्दुल्ला प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो सारे देश के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के लोगों में भी उम्मीद थी कि अब प्रदेश शांति की राह पर चल पड़ेगा, पर पाकिस्तान की राजनीति और वहां पल रहे आतंकवादियों के कारण ऐसा संभव न हो सका। इस दौरान अलगाववादी विचारों वाले युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहे विपक्षी नेता मुफ्ती मुहम्मद सईद और उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती का प्रभाव बढ़ता चला गया और नवंबर-दिसंबर 2014 में संपन्न हुए जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में मुफ्ती मुहम्मद सईद के दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को 28 सीटें मिलीं और पीडीपी विधानसभा में सबसे बड़ा राजनीतिक दल बना लेकिन 87 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए आवश्यक 44 सीटों से वह काफी पीछे रह गया। तब केंद्र में एक वर्ष पूर्व ही नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में आई थी और मोदी को हिंदु हृदय सम्राट माना जाता था।

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चुनाव प्रचार के दौरान अमित शाह ने प्रदेश के हिंदुओं को संगठित करने के लिए यह कहा भी कि कल्पना कीजिए कि इस प्रदेश में पहली बार कोई हिंदू मुख्यमंत्री बनेगा। इससे आशान्वित पूरा हिंदू समाज भाजपा के पीछे हो लिया और 25 सीटें जीत कर भाजपा भी विधानसभा में एक मजबूत दल बन गया जबकि नैशनल कांफ्रेंस 15 तथा कांग्रेस 12 सीटों पर सिमट गए। प्रदेश में सत्ता में आने के लिए बेताब भाजपा ने पीडीपी से बातचीत की कोशिश की तो उमर अब्दुल्ला ने कूटनीतिक चाल चलते हुए पीडीपी को समर्थन देने की घोषणा कर दी। पीडीपी के लिए अपने प्रतिद्वंद्वी से हाथ मिलाकर उसे फिर से मजबूत होने का मौका देना संभव नहीं था इसलिए अंतत: मुफ्ती मुहम्मद सईद को भाजपा का प्रस्ताव स्वीकार करना पड़ा और मार्च 2015 में पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार ने सत्ता संभाल ली।

प्रदेश में सत्ता में आने के बाद से केंद्र सरकार गलती पर गलती करती रही है। धारा 370 लागू होने के कारण कश्मीर को विशेष दर्जा हासिल है। शेष देश का कोई नागरिक या कंपनी वहां जायदाद नहीं बना सकते, कारखाना नहीं लगा सकते, इससे वहां रोज़गार की स्थाई समस्या है। आतंकवाद के चलते वहां के स्थानीय उद्योग को भी नुकसान पहुंचा है। लेकिन केंद्र और राज्य सरकार की ओर से नागरिकों को दी जाने वाली सुविधाओं, और पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के पोषण के कारण बेकारी भी पुरस्कार बन गई है। कश्मीर की असली समस्या यह है कि वहां पाकिस्तान की ओर से भारत सरकार के विरुद्ध इतना जबरदस्त प्रचार है कि युवाओं के दिमाग में जहर भर गया है।

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उन्नत तकनीक ने हमें स्मार्टफोन दिये हैं और ये स्मार्टफोन पाकिस्तान के लिए वरदान बन गए हैं। फेसबुक, ह्वाट्सऐप, ट्विटर, पिनटेरेस्ट आदि सोशल मीडिया मंचों पर पाकिस्तान और स्थानीय अलगाववादियों के जबरदस्त प्रचार, बेकारी और उसके कारण उपलब्ध खाली समय ने यहां के युवाओं को पत्थरबाज़ और आतंकवादी बना दिया है। इससे समस्या बहुत गंभीर हो गई है और खोखली बातचीत, छोटी-मोटी रियायतों या गोली-बंदूक से समस्या को सुलझाना संभव नहीं है। इसमें बहुत गांठें पड़ चुकी हैं। अब इस समस्या के समाधान के लिए बहुत धैर्य और लंबी योजना की आवश्यकता है।

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ह्वाट्सऐप से जुड़े युवाओं को फौज की गतिविधियों की सूचना तुरंत मिल जाती है। इससे प्रदर्शन या पत्थरबाजी के लिए मिनटों में उन्हें इकट्ठा करना भी आसान हो गया है। यही कारण है कि वहां तुरंत दंगा हो जाता है। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारी सरकारें और बुद्धिजीवी वर्ग इस एक समस्या को नहीं समझ रहे हैं कि जब तक पाकिस्तान का प्रचार निर्बाध चलेगा, आतंकवाद खत्म नहीं होगा। सारे विश्व के युवाओं की तरह आज कश्मीर में भी हर युवक के हाथ में स्मार्टफोन है जिसके कारण कश्मीर के युवा सभी सोशल मीडिया मंचों से जुड़े हुए हैं। पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी आतंकवादियों की ओर से लगातार पेशेवर ढंग से इन युवाओं को भारत विरोधी सामग्री भेजी जा रही है।

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पाकिस्तान ने इस तरह से कश्मीरी युवकों का ब्रेन-वॉश कर डाला है। यह हर रोज़ हो रहा है, लगातार हो रहा है और यह एक बड़ी समस्या है क्योंकि पाकिस्तान इस तरह से हर रोज़ काश्मीर में आतंकवाद की जड़ों को मजबूत कर रहा है। इस प्रचार की काट के लिए हमारी ओर से उससे भी शक्तिशाली प्रचार और किसी योजनाबद्ध कार्यवाही का अभाव भी समस्या को बढ़ा रहा है। अब आवश्यकता है कि पाकिस्तान से हर तरह का संबंध खत्म किया जाए, स्थानीय अलगाववादियों और उनकी संस्थाओं के साथ-साथ देवबंद द्वारा संचालित मदरसों पर प्रतिबंध लगाया जाए, धारा 35-ए और धारा 370 को समाप्त किया जाए, उद्योग को बढ़ावा देकर रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएं और पेशेवर ढंग से भारत समर्थक प्रचार की योजना बनाई जाए। यह काम कई चरणों में होगा और लंबे समय तक चलते रहने के बाद ही इसका प्रभाव होगा, पर यदि ऐसा न किया गया तो कश्मीर समस्या का और कोई हल संभव नहीं है।

इसके अलावा हमारे लिए यह समझना भी आवश्यक है कि कश्मीर और कश्मीरियों का बायकाट करके तो हम बल्कि कश्मीर खुद ही पाकिस्तान को सौंप देंगे। हमें कश्मीर का बायकाट करने की नहीं, बल्कि कश्मीर में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की आवश्यकता है। मैं दोहरा-दोहरा कर कहना चाहता हूं कि असल लड़ाई प्रचार की है। जिस प्रकार सोशल मीडिया मंचों के उपयोग से 2014 में नरेंद्र मोदी केंद्र की सत्ता में आये थे, पाकिस्तान की फौज वैसे ही प्रचार के सहारे कश्मीर में अलगाववाद फैला रही है। अलगाववाद की इस लहर को रोकने के लिए स्थानीय अलगाववादियों को अलग-थलग करने के साथ-साथ पाकिस्तान के प्रचार की काट के लिए हमारा प्रचार भी उससे कई गुना शक्तिशाली और प्रभावी होना आवश्यक है। आवश्यकता इस बात की है कि हमारी सरकारें, नेतागण, बुद्धिजीवी और समाजसेवी संगठन इस असलियत को पहचानें, उसे स्वीकार करें और तद्नुसार मिलकर कार्य करें ताकि पाकिस्तान और उसके समर्थक अलगाववादियों की शरारतों पर काबू पाया जा सके।

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लेखक पीके खुराना वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और राजनीतिक रणनीतिकार हैं.

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1 Comment

1 Comment

  1. यशवंत सिंह

    February 21, 2019 at 11:53 am

    मैदानी इलाके के जो लोग उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों पर जमीन खरीदना चाहते हैं, इनके सारे अप्लीकेशन को कश्मीर के लिए मान कर तुरंत स्वीकृत करते हुए वहां बसा दिए जाने की आवश्यकता है ताकि ये लोग देश हित के काम आ सकें और पहाड़ के जन्नत का आनंद भी ले सकें. कायदे से धारा 370 टाइप तो उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में लागू कर देना चाहिए कि अब कोई मैदानी यहां न जमीन खरीद सकेगा और न बस सकेगा.. क्योंकि इन दोनों प्रदेशों को लूट खसोट कर मैदानियों ने बुरा हाल कर रखा है. हां, कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने की जरूरत है ताकि वहां की मानवीय बहुलता का अनुपात बढ़ाया जा सके.

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