अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बरकरार रखने का संघर्ष…
एक जज जब जज होता है तो उसे अपनी जुबान और कलम बन्द रखनी पड़ती है। काटजू Markandey Katju साहब ने बहुत कुछ पढ़ा है, समझा है और जिया है। उनमें अभिव्यक्ति की भूख उसी तरह है जिस तरह सचिन जैसे क्रिकेटर के लिए कहा जाता है कि वह रनों का भूखा है। एक बार जज के खोल से बाहर निकलने के बाद उन्होंने खुद को, अपने विचारों को खुल कर व्यक्त करने का निश्चय किया और इसे वे उसी ब्लागस्पाट डाट इन के उसी प्लेटफार्म पर लिखते हैं जिस पर हजारों साधारण लोग अपना ब्लाग लिखते हैं।
जैसा कि कहा जाता है ब्लाग एक ऐसी पर्सनल डायरी है जो एक व्यक्ति सार्वजनिक रूप से खोल कर रख देता है। काटजू साहब सब कुछ जो वे महसूस करते हैं उस पर लिख डालते हैं। यह तो मीडिया है जो सनसनी पैदा करने के लिए दिन में अनेक बार उन के ब्लाग को खंगाल कर उसे न्यूज बना देता है। इसे उन के चर्चित होने की चाहत से जोड़ना बिलकुल बेमानी है।
कुछ लोग समझते हैं कि हम जैसे साधारण लोग जो सार्वजनिक प्रभावों से डर कर बहुत सी इच्छित बातें ब्लाग पर नहीं लिखते काटजू साहब भी वैसा ही करें तो यह बहुत गलत है। वे सर्वोच्च न्यायालय के जज रहे हैं। वे जानते हैं कि किसी भी सत्ता या समूह के लिए उनकी अभिव्यक्ति को रोक पाना आसान नहीं होगा। यदि वे ही इन बातों को ब्लाग में न कह सकेंगे तो फिर साधारण व्यक्ति कैसे कह सकेगा? जिस दिन काटजू जैसे लोग अपना मुहँ बन्द कर लेंगे तो फिर फासीवाद आया ही समझो। काटजू साहब जिस तरह का ब्लाग लेखन कर रहे हैं, वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार करने के संघर्ष का हिस्सा है।
छत्तीसगढ़ के एडवोकेट दिनेशराय द्विवेदी के फेसबुक वॉल से.