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डीएनए इंडिया की एक खबर का पोस्टमार्टम : खबरों में विचार घुसेड़ने की पत्रकारिता कहां सिखाई जाती है…

खबर और विचार बिल्कुल अलग चीजें हैं। पत्रकारिता की पहली सीख होती है, खबर में विचारों का घालमेल ना हो। उसपर कोई राय भी ना दी जाए। संपादित खबरों को यथासंभव जस का तस प्रस्तुत कर दिया जाए। निर्णय लेने या विचार बनाने का काम पाठकों पर छोड़ दिया जाए। पत्रकारिता के ह्रास के साथ साथ खबरों और विचारों का अंतर भी खत्म होता जा रहा है। पत्रकारिता में विचारों की बेईमानी वैसे ही मिलाई जा रही है जैसे दूध में मिलाया गया पानी मिनरल वाटर है। आज इस शीर्षक पर नजर गई तो लगा कि यह कौन सी पत्रकारिता है और क्या यह आम पाठक के लिए की जा रही है। खबर का शीर्षक ही – एक उद्देश्य की पूर्ति करता लगता है।

खबर और विचार बिल्कुल अलग चीजें हैं। पत्रकारिता की पहली सीख होती है, खबर में विचारों का घालमेल ना हो। उसपर कोई राय भी ना दी जाए। संपादित खबरों को यथासंभव जस का तस प्रस्तुत कर दिया जाए। निर्णय लेने या विचार बनाने का काम पाठकों पर छोड़ दिया जाए। पत्रकारिता के ह्रास के साथ साथ खबरों और विचारों का अंतर भी खत्म होता जा रहा है। पत्रकारिता में विचारों की बेईमानी वैसे ही मिलाई जा रही है जैसे दूध में मिलाया गया पानी मिनरल वाटर है। आज इस शीर्षक पर नजर गई तो लगा कि यह कौन सी पत्रकारिता है और क्या यह आम पाठक के लिए की जा रही है। खबर का शीर्षक ही – एक उद्देश्य की पूर्ति करता लगता है।

उद्देश्य क्या है – सब समझते हैं। फिर भी यह बेशर्मी हो रही है तो क्या मुफ्त में। कायदे-सिद्धांतों, नीति-नियमों की बलि मुफ्त में क्यों चढ़ाई जा रही है। कहीं उद्देश्य और लक्ष्य बड़े तो नहीं है। इसपर कौन ध्यान देगा। स्टेकधारकों को ही परवाह नहीं है तो दूसरे क्यों चिन्ता करें। आइए इस खबर पर नजर डालते हैं। माफ कीजिएगा, मैंने अंग्रेजी की खबर ली है। हिन्दी की भी ले सकता था। पर वहां हालत और बुरी है। सुधार की उम्मीद और संभावनाएं बिल्कुल अलग हैं। इसलिए मैं हिन्दी की बात करना ही नहीं चाहता। यह मेरा निजी पूर्वग्रह भी हो सकता है। पर जिस ढंग से अंग्रेजी की अनूदित खबरें हिन्दी में उपयोग होती है या हिन्दी अखबारों में नौकरी की पहली शर्त अनुवाद की योग्यता होती है – इसलिए, मुझे लगता है कि अंग्रेजी की खबर की चर्चा करना अनुचित या व्यर्थ नहीं है।

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यह खबर डीएनए इंडिया की है पर पीटीआई की बताई जा रही है। नीचे लिंक दिया है। कृपया नोट करें कि खबरें संपादित की जाती रहती हैं और बाद में बदल सकती हैं। मैंने जो खबर ली है वह यहां कॉपी पेस्ट है। मेरे ख्याल से शीर्षक में Odd-Even Effect: Rajiv Chowk picture was fake but, का प्रयोग एक उद्देश्य के लिए है और यह खबर का भाग नहीं है। खबर दरअसल यह है कि ऑड ईवन प्रयोग शुरू होने से दिल्ली मेट्रो में यात्रियों की संख्या बढ़ गई है और शीर्षक “Delhi metro got additional 2 lakh commuters” पर्याप्त था। चाहते तो ऑड ईवन की चर्चा भी की जा सकती थी पर फर्जी फोटो से जोड़ना उसकी ‘जरूरत’ बताने की कोशिश लगता है।

Odd-Even Effect: Rajiv Chowk picture was fake, but Delhi metro got additional 2 lakh commuters

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Date published: Tuesday, 5 January 2016 – 7:05pm IST | Place: New Delhi | Agency: PTI

On Monday, a picture showing a jam packed Rajiv Chowk metro station went viral on social media prompting Delhi Metro Rail Corporation Chief Mangu Singh to clarify that it was an old image.

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Delhi Metro’s ridership went up by two lakh on Monday, the first full-fledged working day since the odd-even scheme for movement of vehicles came into force in the national capital, even as DMRC officials said the train service has previously witnessed larger riderships.

खबर का पहला पैराग्राफ तो शीर्षक की पुष्टि करता है लेकिन आगे जो जानकारी है वह शीर्षक को बेमतलब बना देती है। आड ईवन से जोड़ कर जो साबित करना था वह तो हो ही नहीं रहा है। तथ्य यह है कि दिल्ली मेट्रो में इतनी राइडरशिप ऑड ईवन के बिना भी रही है। तो कायदे से खबर यही होनी थी। जो खबर दी गई है वह तो खबर है ही नहीं। राइडर शिप तो ऑड ईवन के बिना भी घटती बढ़ती रही है। दिल्ली में दरअसल इन दिनों छुट्टियां रहती हैं और काफी लोग शहर से बाहर हैं। इसलिए सोमवार यानी चार जानवरी को भले ऑड ईवन पॉलिसी का पहला दिन माना गया हो पर वह असल में था नहीं। सड़क पर गाड़ियां तो इसके असर से कम रहीं पर कार पूल और अन्य कारणों से (मेट्रो में भी यात्री बढ़े ही) और खबर अगर किसी लक्ष्य से नहीं की जाती तो आगे की जो खबर है उतनी ही होनी चाहिए थी। यही प्रमुख बात है, यही सूचना है और यही पाठकों की दिलचस्पी की चीज है। पर जबरन पाठक की दिलचस्पी अपनी दिलचस्पी के अनुसार मान ली गई है।  

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Although at 28,19,657 on Monday, the figure was a good two lakh above the average daily ridership of 26 lakh, metro officials say it was nothing unusual as every first working day of the week sees such large passenger volume. As per official data, three of the last five working Mondays saw more passengers travelling on the network than yesterday. On December 21, ridership had touched 28,88,128.

On Blue Line (Line 3/4), considered as one of the most busiest corridors, four of the five Mondays had saw more ridership. On December 21, it was 10,61,814 as opposed to yesterday’s 10,09,105

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देखिए यह सूचना कितनी दिलचस्प, नई या अनूठी है। पर दब गई या दबा दी गई। आगे पता चलेगा कि यह खबर दिल्ली मेट्रो के बयान पर आधारित है। बचाव यह हो सकता है कि मेट्रो ने ऐसी ही खबर दी थी। 

“Delhi Metro was successful in handling the expected huge rush on all its lines, on the first working Monday of the year. All necessary measures were already planned in advance and were in place to manage any additional rush of passengers. All lines and stations were thoroughly monitored throughout the day,” DMRC said in a statement.

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During the 15-day odd-even trial, DMRC has planned to run 70 additional trips daily, taking the total figure to 3,192 to handle passenger rush.

यह बयान है। दिल्ली मेट्रो अपनी सफलता बता रहा है – पाठक को इससे क्या मतलब। यह तो मीडिया वालों की सूचना के लिए है। जिसने धक्के खाए या नहीं खाए या तस्वीर देख ली उसके लिए यह सब पढ़ने की नहीं, अनुभव करने की चीज है। फिर भी।

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डीएनए की खबर का लिंक नीचे है>

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http://www.dnaindia.com/india/report-odd-even-effect-rajiv-chowk-picture-was-fake-but-delhi-metro-got-additional-2-lakh-commuters-2162568

लेखक संजय कुमार सिंह मीडिया विश्लेषक हैं. आप जनसत्ता अखबार में लंबे समय तक कार्यरत रहे हैं. अनुवादक के बतौर लंबे समय से आत्मनिर्भर पत्रकार हैं. सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता के जरिए मीडिया व राजनीति के विभिन्न उलझे सुलझे पहलुओं पर अपने नजरिए से लिखते पढ़ते रहते हैं.

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