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सियासत

मैं भारतीय क्यों हूं!

प्रभात डबराल

Prabhat Dabral : बरसों पुरानी बात है. खुशवंत सिंह ने इलस्ट्रेटेड वीकली में एक लेख लिखा था “ मैं भारतीय क्यों हूँ”. शुरूआत में ही उन्होंने कह दिया कि मैं अपनी मर्ज़ी से थोड़े ही यहाँ पैदा हुआ. अगर पैदा करने से पहले ईश्वर मुझसे पूछता कि तुम कहाँ पैदा होना चाहते हो तो मैं कहता कि मुझे तो ऐसे देशमे पैदा करो जो ज़्यादा समृद्ध हो, जहाँ क्या खाना है क्या पीना है इसे लेकर ज़्यादा टोका टाकी न हो और जहाँ धर्म को लेकर इतनी कट्टरता न हो. (ज़रा सोचिये आज अगर खुशवंत ये लिखते उनकी क्या दुर्गति होती, लोग उन्हें कहाँ कहाँ नहीं भेज देते).खुशवंत ने तो इस लेख में यहां तक लिख दिया कि “ ना जी, मुझे भारतीय होने पर कोई गर्व नहीं है”.

आगे खुशवंत खुद से वही भक्तों वाला सवाल पूछते हैं कि फिर “तुम कहीं और जाकर क्यों नहीं बस जाते”. इसके जबाब में खुशवंत लिखते हैं कि मैं जिन देशों में रहना चाहता हूँ एक तो वहां कोटा सिस्टम है, हर किसी को ऐसे ही नहीं आने देते. दूसरे, वहां भी गोरे काले का बड़ा भेदभाव है. लेख में खुशवंत अपने हिसाब से तर्क गढ़ते हुए इस नतीजे पर पहुंचते है सब कुछ के बावजूद वो भारत में ही रहना पसंद करेंगे -“ मैं इसे पसंद तो नहीं करता पर इससे प्यार करता हूँ”.

सबसे प्यारी बात(मुझे तो प्यारी लगी) खुशवंत सिंह ने ये कही कि अगर कोई मुझसे पूछे कि तुम भारतीय पहले हो या पंजाबी / सिख, तो मैं कहूंगा कि “ये सवाल ही गलत है…तुम अगर मुझसे मेरी पंजाबियत छीनोगे तो मैं खुद को भारतीय कहना भी छोड़ दूंगा……क्षेत्रीय अस्मिता की विविधता ही देश की सबसे बड़ी ताकत है. अनेक युद्धों में हमने इस विविधता की एकता को राष्ट्र की ताकत बनते देखा है“.

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खुशवंत लिखते हैं कि “जब हम पहले ही बार बार सिद्ध कर चुके हैं कि हम सब भारतीय हैं तो फिर ये भारतीयता का टंटा क्या है?..और तुम कौन हो जी ये फैसला करने वाले कि कौन अच्छा भारतीय है कौन बुरा”.

अब अपनी बात:

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अगर ईश्वर मुझसे ये पूछे कि तुम कहाँ पैदा होना चाहते हो तो मैं जबाब में भारत शायद ना भी कहूँ, उत्तराखंड ज़रूर कहूंगा क्योंकि मेरी भारतीयता मेरी पहाड़ियत का ही विस्तार है. तुम जैसे निरंकुश शासक मेरी या किसी और की भारतीयता छीनने की कोशिश तो शायद कर भी लें, मेरी पहाड़ियत छीन लो इतनी औकात तुम्हारी और तुम्हारे निरंकुश बहुमत की भी नहीं है.

मैं उत्तराखंड में पैदा होना चाहूंगा और उसी नगरपालिका आधारिक विद्यालय नंबर -४, कोटद्वार में पढ़ना चाहूंगा जहाँ के हर शिक्षक को पैर छूकर प्रणाम करने में मैं गर्व महसूस करता था. जिसने किताबों के अलावा मुझे जीवन का पाठ पढ़ाया. उन प्रभात फेरियों में शामिल होना चाहूंगा जहाँ भारत माता की जय के साथ हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई- आपस में हैं भाई भाई का नारा भी लगता था. उन पुस्तकों को पढ़ना चाहूंगा जो हमें हमारे पूर्वजों, स्वतंत्रता सेनानियों/ क्रांतिकारियों का जीवन चरित्र पढ़ाती थीं, उनसे सीख लेने को प्रेरित करती थीं. उन शिक्षकों से पढ़ना चाहूंगा जिनके दिए संस्कार मुझे आज भी किसी देवस्थान, चाहे वो मंदिर हो मस्जिद हो ,गुरुद्वारा हो या कोई और, उसकी और पैर करके सोने से रोक देते हैं- जो घृणा नहीं, भाईचारे का पाठ पढाते थे.

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घृणा, विद्वेष और असहिष्णुता की बुनियाद पर जिस भारत का निर्माण तुम करना चाहते हो वो मेरा भारत नहीं हो सकता …..ये वो संस्कार नहीं हैं जो मुझे मेरे शिक्षकों से मिले थे. सभी धर्मों के बीच भाईचारा मेरी भारतीयता की पहली शर्त है. इसके लिए सभी धर्मों को बराबर का सम्मान देना होगा. इसलिए जब तक CAA में संशोधन नहीं होगा मैं NRC का फार्म नहीं भरूंगा. मेरी भारतीयता तुम्हारे किसी सर्टिफिकेट की मोहताज़ नहीं है.

वरिष्ठ पत्रकार और संपादक प्रभात डबराल की एफबी वॉल से.

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0 Comments

  1. मवेशी

    January 22, 2020 at 8:48 pm

    डबराल जी आप से आशा थी की बजाए इधर उधर की बात करने के असल मुद्दे की बात करते की CAA में आपके या आप जिनके लिए परेशान हैं हैं उनके विरोध में क्या है तो बेहतर होता.
    सर इस लिए की आपको मोदी पसंद नहीं को कारण नहीं बनता की आप हवाई आलोचना करें.

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