अमरीक-
पंजाब और हरियाणा नए और निर्णायक टकराव की ओर बढ़ रहे हैं। इसकी शुरुआत हो चुकी है। वजह है व्यापक अकार लेता ‘किसान आंदोलन- 2’। पंजाब के हजारों किसान हफ्ते भर से दोनों राज्यों की सीमा बिंदु पर डेरा डाले हुए हैं। वे अपनी मांगों के साथ दिल्ली कूच के लिए बाजिद हैं लेकिन हरियाणा की ओर से खाकी की ताकत के दम पर उनकी राह में बाधा डाल दी गई है। बुधवार को खनौरी में पंजाब के किसानों और हरियाणा पुलिस के बीच जबरदस्त हिंसक टकराव हुआ। इसमें बठिंडा जिले के एक गांव का रहने वाला तेईस वर्षीय किसान शुभकरण सिंह खेत हो गया। करीब पौने दो सौ किसान गंभीर रूप से जख्मी हुए हैं। छह लापता बताए जा रहे हैं। किसान संगठनों का आरोप है कि वे हरियाणा पुलिस की नाजायज हिरासत में हैं। हालांकि पुलिस ने इस आरोप को नकारा है। हरियाणा पुलिस ने तो शुभकरण सिंह की मौत में अपनी शमूलियत से भी पल्ला झाड़ लिया है। बेशक जमीनी तथ्य यही बताते हैं कि शुभकरण की मौत हरियाणा पुलिस की ओर से चलाई गई रबर की गोली से हुई है। नेताओं का भी यही कहना है। मौके पर बनाया गया वीडियो सारी कहानी खुद बयान करता है। इन पंक्तियों को लिखे जाने तक शुभकरण सिंह का पोस्टमार्टम नहीं हुआ है। किसान संगठनों की मांग है कि मृतक युवा किसान के परिवार को एक करोड़ रुपए नगद मुआवजा दिया जाए। हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हत्या के आरोप में मुकदमा दर्ज किया जाए। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान घोषणा कर चुके हैं कि पड़ताल के बाद दोषियों पर एफआईआर दर्ज की जाएगी तथा शुभकरण के परिवार को मुआवजा दिया जाएगा। किसान इस मामले को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ले गए हैं।
वीरवार को सूबे भर में किसानों ने हरियाणा सरकार और पुलिस के खिलाफ जमकर रोष-प्रदर्शन किए। तमाम टोल प्लाजा पर आवाजाही रोक दी गई। कई घंटे सड़क यातायात बाधित रहा। मनोहर लाल खट्टर और अनिल विज के पुतले जलाए गए। शुक्रवार सुबह से यह सिलसिला फिर शुरू हो गया है। किसान आज ‘काला दिवस’ मना रहे हैं। तीन दिन के घटनाक्रम से साफ है कि पंजाब के किसानों में केंद्र के साथ-साथ हरियाणा की भाजपा सरकार के खिलाफ भी जबरदस्त उबाल है और इसमें लगातार इजाफा हो रहा है। किसानों को सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप), कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल का खुला समर्थन हासिल है। दीगर है कि विपक्ष भगवंत मान सरकार पर दोहरी नीति अख्तियार करने का आरोप लगा रहा है। जबकि मान सरकार तीखे तेवरों के साथ हरियाणा सरकार और पुलिस- प्रशासन को घेरे हुए है। पंजाब के मंत्री और विधायक अंतरराज्यीय सीमा पर डटे किसानों के बीच विचर रहे हैं।
एक मार्च से पंजाब का बजट सेशन शुरू हो रहा है। सूत्रों के अनुसार उस सेशन में हरियाणा सरकार और पुलिस के खिलाफ बाकायदा प्रस्ताव पास किया जाएगा। ऐसा होता है तो पहली बार होगा। इससे टकराव की खाई और ज्यादा गहरी होगी।
पंजाब के एक से लेकर दूसरे कोने तक यह माहौल बन गया है कि हरियाणा की भाजपा सरकार पूरी ताकत लगाकर ‘किसान आंदोलन-2’ को दिल्ली जाने से पहले बेरहमी के साथ कुचलना चाहती है। बुधवार का घटनाक्रम यही संकेत देता है। पिछले किसान आंदोलन में यही सीमा अथवा रास्ते खुले थे। किसान बेरोकटोक दिल्ली बॉर्डर तक पहुंच गए थे और अमन तथा सद्भाव के साथ उन्होंने अपना आंदोलन शुरू किया था जो सवा साल से ज्यादा अरसे तक चला। अपवाद को छोड़कर वह लंबा आंदोलन शांतिपूर्ण ढंग से परिणीति को हासिल हुआ। बावजूद इसके की 700 से ज्यादा किसानों की जान उसे आंदोलन के दौरान गई। ‘किसान आंदोलन-1’ ने केंद्र सरकार को झुका दिया था। खासतौर से (प्रतिद्वंदियों के बीच) ‘जिद्दी’ की छवि वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को। आंदोलन खत्म होने के बाद प्रधानमंत्री पंजाब यात्रा पर आए थे लेकिन फिरोजपुर के पास उनका काफिला किसानों के प्रदर्शन के चलते रुक गया। विश्लेषकों का मानना है कि इसे भी नरेंद्र मोदी ने अपना ‘अपमान’ माना। पंजाब के ज्यादातर लोग भी ऐसा मानते हैं। तब से अब तक अक्सर सरगोशियां होती थीं कि वक्त आने पर आला हुकूमत इसका ‘जवाब’ जरूर देगी। राज्य में अब कहा जा रहा है कि बुधवार से जवाब की प्रक्रिया शुरू हो गई है! ‘किसान आंदोलन-2’ की बाबत हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार सीधे दिल्ली के इशारे पर काम कर रही है। ‘सख्ती’ देखते-देखते यूं ही ‘क्रूरता’ में तब्दील नहीं हो रही। यह राजकाज की एक (मौजूदा) दिल्ली दरबार की जानी-पहचानी शैली और पहचान भी है!
हरियाणा का पुलिस और प्रशासनिक तंत्र आज के दिन पंजाब में बड़ा खलनायक है तो पंजाब के किसान हरियाणा सरकार के लिए! पंजाब-हरियाणा सरकारों के बीच शायद सामान्य संवाद की गुंजाइश भी नहीं बची। कड़वाहट चरम पर है और यह आने वाले दिनों में यकीनन नए गुल खिलाएगी। इस पर राजनीतिक रोटियां भी सीकेंगी; इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
ताज़ा रणनीति के तहत पंजाब के किसान वाया हरियाणा दिल्ली कूच की कोशिश करेंगे और हरियाणा पुलिस तथा अर्धसैनिक बल उन्हें रोकने की कवायद में रहेंगे। दोनों राज्यों का खुफिया विभाग बखूबी इस संभावित परिदृश्य से वाकिफ है। हरियाणा की ओर से सरकारी हथियार तने हुए हैं तो पंजाब की जमीन पर एंबुलेंस की तादाद बढ़ा दी गई है और डॉक्टरों की फौज तैनात है। ताकि घायलों को प्राथमिक उपचार दिया जा सके और अस्पताल पहुंचाया जा सके। हरियाणा की सीमा से सटे पंजाब के तमाम जिलों के सरकारी अस्पताल हाईअलर्ट पर रखे गए हैं। बड़े प्राइवेट अस्पतालों को भी सावधान किया गया है। यानी हिंसक टकरावों की आशंका की जड़ें खासी मजबूत हैं। ज़िक्रेखास है कि ‘आंदोलन-2’ में शिरकत करने वाले किसानों के तेवर भी इस बार कमोवेश गर्म हैं। यह अतिरिक्त चिंता का विषय है।
जो हो, कहीं न कहीं हैरानी की बात है कि संवादहीनता तो निरंतर बढ़ ही रही है। दोनों राज्यों के लोगों को यहां-वहां की सूचनाएं भी ठीक से नहीं मिल रहीं। एक बड़ी वजह हरियाणा के कई शहरों में इंटरनेट का बंद होना है। पंजाब के अखबारों में हरियाणा में आंदोलनरत किसानों से वाबस्ता खबरें गायब हैं। गौरतलब है कि राजनीतिक पार्टी विशेष का बदनाम आईटी सेल दोनों राज्यों में खूब सक्रिय है। जो गुपचुप लेकिन प्रभावी ढंग से यह प्रचार कर रहा है कि इस बार आंदोलन के लिए निकले पंजाब के किसानों के साथ खालिस्तानी तथा अलगाववादी तत्व भी सक्रिय हैं। इस पहलू के मद्देनजर किसानों को विशेष सावधानी बरतनी होगी। गनीमत है कि अवाम का गुस्सा सिर्फ सरकार के खिलाफ है। पंजाब और हरियाणा के किसान एकजुट हैं।