डा. मुकेश कुमार उपाध्याय-
समाजवादी पार्टी के लिए 2024 के राजनीतिक हवन में काव्यमय आहुति दी जा चुकी है। आहुति के होता (हवनकर्ता) कवि कुमार विश्वास थे। मौका था ‘विश्वविद्यालय के सांंस्कृतिक आयोजन’ का। आयोजनकर्ता थे कई विश्वविद्यालयों के संस्थापक और सपा महासचिव के बेहद करीब कहे जाने वाले एक सज्जन और स्थान उन्हीं का शिकोहाबाद स्थित निजी विश्वविद्यालय का परिसर।
मंचासीन कवि कुमार विश्वास के सामने तीन लक्ष्य नजर आ रहे थे. पहला सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और उनकी राजनीतिक पारी का यशगान कर सपा को प्रमोट करना। दूसरा विद्यार्थियों को प्रेरक संदेश देना और तीसरा था काव्य पाठ करना।
इधर श्रोता, आयोजन के पोस्टरों से उसकी संरचना का साम्य बैठाने की कोशिश में लगे थे। होर्डिंग्स पर ‘तरंग सांस्कृतिक आयोजन’ लिखा गया था। जबकि मंच पर ‘कुमार विश्वास संवाद’ के अलावा कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं दिखा। आम जनमानस इससे पूरी तरह बेखबर, मौज में था। फिर भी जो खुलासा हुआ वह हैरान करने वाला नहीं था!
मंच से जैसे ही कुमार विश्वास ने बोलना शुरू किया, उनकी स्टार प्रचारक वाली भूमिका का भेद ढक्कन की तरह खुल गया या यूं कहें कि उन्होंने तो छिपाया ही कुछ नहीं था। जो भी कहा, खुलकर कहा.. खुल्लमखुल्ला कहा।
‘जो जन सैलाब यहां पर दिखाई दे रहा है और विशेष रूप से मेरे बड़े भाई प्रोफेसर रामगोपाल यहां पर हैं तो ऐसा लग रहा है, यह तो एक रैली हो गई….एक चुनावी सभा टाइप की हो गई ! आज मंच पर दीप प्रज्वलन के लिए प्रोफेसर साहब के साथ अक्षय को भी होना चाहिए था। असली रैली तो उसी की है। दो-चार-पांच महीने बाद उसी का इम्तिहान शुरू होना है!’
सुधीजनों को यह सुनकर ऐसा लगा जैसे 2024, एक महीने पहले ही आ गया है। कुमार ने छात्र-छात्राओं के आयोजन को साफ-साफ चुनावी रैली बता दिया। अक्षय यादव 2024 के इम्तिहान की तैयारी कर रहे हैं, इसकी भी घोषणा कर दी। पूर्व सांसद अक्षय यादव अपने पिता के साथ श्रोताओं की पहली पंक्ति में बैठे थे।
कुमार विश्वास जिले में पहली बार आए थे। उनके आगमन का तगड़ा प्रचार किया गया था। अधिकांश युवाओं समेत कुमार को सुनने के लिए भारी भीड़ यहां पर उमड़ी थी। इस भीड़ से उत्साहित कुमार ने अपने अंदाज में चुटकी ली, ‘पहली बार लेफ्ट में इतने लोग देख रहा हूं, वरना भारत में तो लेफ्ट में लोग ही खत्म हो गए हैं…।’ इस वाक्य से माहौल को पूरा राजनीतिक रंग मिला जो काफी देर तक जारी रहा।
कुमार ने आयोजनकर्ता विश्वविद्यालय की स्थापना के कार्य से लेकर उसके नए नवेले कोर्स की जमकर तारीफ करने के तुरंत बाद स्टार प्रचारक वाले दायित्व का अगला कदम रखा और मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक योगदान की तारीफ शुरू की..
‘इस पूरे इलाके की जो समृद्धि है मानिये या मत मानिए… इस पुण्य अवसर पर मैं उस आत्मा को याद करना चाहता हूं, भारतीय राजनीति में जिनके उदय के कारण बहुत वर्षों से पीछे रहे इस इलाके को पहचान मिली… आगरा के अलावा इस इलाके के किसी कस्बे का नाम दिल्ली नहीं जानती थी..। यह तो एक संयोग रहा कि सैफई में नेताजी जैसा एक जनप्रतिनिधि पैदा हुआ..। वह मुख्यमंत्री रहे केंद्र की राजनीति में रहे।’
कुमार ने आगे कहा, ‘आदरणीय डाक्साब की पुस्तक का जब विमोचन हुआ उस समय मेरा बड़ा सौभाग्य था कि मैं उनके (मुलायम सिंह) बिल्कुल पास रहा। उन्हें इस इलाके की चिंता रहती थी वह अपने आप में एक बड़ी बात है। इतने बड़े पद पर रहने के बाद भी वह याद रखते थे। मैं अपने प्रिय भतीजे अक्षय से यह कह रहा था कि अपने ताऊ जी से सीखो…। हेलीकॉप्टर में चलते हुए भी जो यह बता सकता था कि नहर के इस किनारे कौन सा गांव है और उस किनारे कौन सा गांव है…।
यह अगर कोई बता सकता था तो वह एक आदमी था जिसका नाम मुलायम सिंह यादव था।’
मुलायम के व्यक्तित्व को कुमार ने अपने रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया तो मौजूद जनता की राजनीतिक श्रद्धा विस्फोटक हो गई। भीड़ नारेबाजी पर उतर आई। वे बिना रुके बोलते रहे..
‘इन दिनों तो राजनीति सेफोलॉजी की हो गई है। जातिगत रुझानों की हो गई है। लेकिन कामों को याद रखना एक बड़ी बात है। इस इलाके से गुजरते समय अचानक नेताजी याद आए.., कवियों की वह खूब इज्जत करते थे।’
कुमार ने नेताजी के साथ के कुछ संस्मरण भी सुनाए और यादव बहुल इस क्षेत्र की जनता को रिझाने के लिए यदुवंश शिरोमणि भगवान श्री कृष्ण तक गये। युवाओं को ज्ञान देने के द्वितीय लक्ष्य को भी कवि ने ठीक से साधा। युवाओं से कहा कि तुम यूरेनियम हो, तुमसे बिजली भी बन सकती है और बम भी! देश बनाने वालों के सपनों को पूरा करने और बराबरी व हिस्सेदारी में ईमानदारी का पाठ भी उन्होंने पढ़ाया।
अखिलेश यादव पर उनकी टिप्पणी से ऐसा लगा जैसे रामगोपाल यादव के दिल की गहराई में छिपी बात को उजागर कर रहे हैं। लेकिन टिप्पणी से पहले ‘नेताजी’ को सराहा। युवाओं को प्रोत्साहित करते हुए सफलता के मानक के रूप में मुलायम सिंह यादव को फिट किया।
‘अपनी ऊर्जा और चेतना लगा दो। जो बनना है उसके लिए मेहनत करो। सपना देखना शुरू करो। अपने सपनों को पानी की जगह पसीना पिलाओ, आंसू पिलाओ…. इस कवि ने एक वयोवृद्ध नेता के दिवंगत होने के एक वर्ष बाद भी पिछले आधा घंटे से चर्चा की है…, वह उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए कोई नेता नहीं थे, एक इमोशन थे एक भावना थे जिसने जीता पूरा प्रदेश।’
इसके बाद अखिलेश यादव का नाम लिए बगैर दो टूक नसीहत दी..
‘नेताजी का जूता बहुत बड़ा है उसमें पैर डालने के लिए उतनी ही तपस्या करनी पड़ेगी…उतना ही घूमना पड़ेगा.. उतनी ही मेहनत करनी पड़ेगी जितनी उन्होंने की थी.. जितनी प्रोफेसर साहब ने की थी और पूरे परिवार ने की थी..।’
कार्यक्रम के उत्तरार्ध में कुमार ने अपनी कविताओं से लोगों को जमकर रिझाया लेकिन कार्यक्रम छूटते ही हर एक जुबान पर यही था कि कविता सुनने को कम मिली, सपा का प्रचार ज्यादा हुआ. कुमार ने अपने भाषण में भी यही कहा था कि वे कविता सुनाने नहीं आपसे बातें करने आए हैं. और ये बात 2024 को लेकर थी और अक्षय यादव को लेकर थी…,बिल्कुल यह साफ था.
डा. मुकेश कुमार उपाध्याय
गली रामचरण, सिरसागंज (फिरोजाबाद) उ.प्र.
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