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भदौरिया हम लोगों की तनख्वाह और पीएफ पर कुंडली मारकर बैठ गया है

मैंने जनवरी 2014 में नेशनल दुनिया अखबार ज्वाइन किया था। लेकिन मुझे महज दो माह की तनख्वाह दी गई और कई माह का वेतन आज तक लटका रखा है। नेशनल दुनिया के जीएम मनीष अवस्थी से दिन में कम से कम दो-तीन बार बात करता हूं। लेकिन झूठे आश्वासन मिलते रहे हैं। दिल्ली में लैंडलाइन फोन से अखबार के मालिक शैलेंद्र भदौरिया से भी बात की, लेकिन उन्होंने भी झूठा आश्वासन दिया है। नेशनल दुनिया पर मेरी कुल धनराशि पचास हजार रुपये बैठ रही है। मैंने मेहनत की है तो मैं अपने पैसे को नहीं भुला पा रहा हूं। गरीबों की बददुआ लेने वाला भदौरिया मार्किट से तो उजड़ गया। अब तो अखबार की महज खानापूर्ति की जा रही है।

<p>मैंने जनवरी 2014 में नेशनल दुनिया अखबार ज्वाइन किया था। लेकिन मुझे महज दो माह की तनख्वाह दी गई और कई माह का वेतन आज तक लटका रखा है। नेशनल दुनिया के जीएम मनीष अवस्थी से दिन में कम से कम दो-तीन बार बात करता हूं। लेकिन झूठे आश्वासन मिलते रहे हैं। दिल्ली में लैंडलाइन फोन से अखबार के मालिक शैलेंद्र भदौरिया से भी बात की, लेकिन उन्होंने भी झूठा आश्वासन दिया है। नेशनल दुनिया पर मेरी कुल धनराशि पचास हजार रुपये बैठ रही है। मैंने मेहनत की है तो मैं अपने पैसे को नहीं भुला पा रहा हूं। गरीबों की बददुआ लेने वाला भदौरिया मार्किट से तो उजड़ गया। अब तो अखबार की महज खानापूर्ति की जा रही है।</p>

मैंने जनवरी 2014 में नेशनल दुनिया अखबार ज्वाइन किया था। लेकिन मुझे महज दो माह की तनख्वाह दी गई और कई माह का वेतन आज तक लटका रखा है। नेशनल दुनिया के जीएम मनीष अवस्थी से दिन में कम से कम दो-तीन बार बात करता हूं। लेकिन झूठे आश्वासन मिलते रहे हैं। दिल्ली में लैंडलाइन फोन से अखबार के मालिक शैलेंद्र भदौरिया से भी बात की, लेकिन उन्होंने भी झूठा आश्वासन दिया है। नेशनल दुनिया पर मेरी कुल धनराशि पचास हजार रुपये बैठ रही है। मैंने मेहनत की है तो मैं अपने पैसे को नहीं भुला पा रहा हूं। गरीबों की बददुआ लेने वाला भदौरिया मार्किट से तो उजड़ गया। अब तो अखबार की महज खानापूर्ति की जा रही है।

एनसीआर में पत्रकारों को बुरा हाल है और कई-कई माह से वेतन नहीं मिला है। कर्मचारी बददुआएं दे रहे हैं। महाराणा प्रताप के नाम पर यूनिवर्सिटी कॉलेज तो खोल लिए, लेकिन उनसे कभी सीख नहीं ली। अपनी जनता की आंखों में राणा ने कभी दर्द नहीं देखा। लेकिन हरामी भदौरिया लोगों की तनख्वाह और पीएफ पर कुंडली मारकर बैठ गया है। उस समय मेरठ के संपादक सुभाष सिंह हुआ करते थे, जो  तनख्वाह के बारे में मुंह खोलने के लिए तैयार नहीं हैं। नेशनल दुनिया के नोएडा ऑफिस में कहते हैं कि आप कोर्ट क्यों नहीं गए। आप ही बताइये कि कोर्ट के लिए इतना पैसा कहां से लाएं।

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एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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