Yasir Raza : एक साथी का कोमा में जाना… जरा सोचिए एक साथी जो आपके ठीक बगल में बैठता रहा हो, उसका अचानक एक्सीडेंट हो जाता है और वह कोमा में चला जाता है. डॉक्टर्स बोलते हैं कि जिंदगी खतरे में है, होश आने में दो चार दस दिन नहीं बल्कि छह से आठ महीने या साल भर लग सकते हैं. कहना बहुत आसान है लेकिन सोचिए दिल पर क्या गुजर रही होगी. 32 साल के बेटे के बूढ़े मां बाप ट्रामा सेंटर की न्यूरोलॉजी सर्जरी में खून के आंसू रो रहे हैं.
यह घटना है पांच अक्टूबर की रात की. आफिस में मेरी डेस्क के ठीक बगल में सब एडिटर कुशल मिश्रा की डेस्क है. कुशल की आवाज थोड़ी पतली थी, जिसकी हम सब अक्सर नकल करते थे. लेकिन वह आवाज कुछ महीनों के लिए खामोश हो चुकी है… उस दिन कुशल का वीकली आफ था. वह किसी पार्टी में चारबाग से कपूरथला गया हुआ था. रात 10 बजे वापस आते वक्त विवेकानंद हास्पिटल के पास रेलवे ओवर ब्रिज पर साइकिल सवार से टकरा गया. उसने सर पर हेल्मेट भी पहन रखा था, जिसने शायद सिर्फ जिंदगी बचाने का काम किया, बाकी कुछ नहीं. हेड इंजरी के कारण वह बेहोश हो गया. उसके मोबाइल पर पैटर्न लॉक था. राहगीर चाह कर भी उसके घर या दोस्तों को खबर नहीं कर सकते थे. किसी तरह वह राहगीरों की मदद से विवेकानंद हास्पिटल पहुंचा. इसी दौरान कुशल के मोबाइल पर आफिस के ही डिजाइनर रोहित का फोन आता है. फोन कोई और उठाता है और घटना की जानकारी देता है, रोहित की धड़कनें बढ़ जाती हैं वह सीधे विवेकानंद हास्पिटल की ओर भागता है.
यह खबर आफिस में दूसरे कुलीग को भी हो जाती है.
डेस्क का एक साथी गुलशन द्विवेदी भाग कर विवेकानंद हास्पिटल पहुंचते हैं. जहां से उसे ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया जाता है. लेकिन एम्बुलेंस नहीं मिलती. जिस पुलिस को हम सब हमेशा गालियां देते हैं वही पुलिस मदद के लिए आगे आती है और गुलशन एमसीआर की गाड़ी में उसे लिटाकर ट्रामा सेंटर के लिए रवाना हो जाते हैं. इधर, अखबार छूटने के प्रेशर के साथ जल्दी जल्दी काम निपटाकर मैं अपने दूसरे कुलीग श्याम के साथ ट्रामा सेंटर पहुंचता हूं. पीछे-पीछे बॉस धर्मेंद्र सर भी बाकी कुलीग पंकज, नीरज, अभिजीत रोहिताश के साथ बाकी साथियों को खबर करते हुए ट्रामा सेंटर पहुंच गये. तब तक वहां स्ट्रेचर उपलब्ध नहीं हो पाता. उसे हाथों पर उठाकर इमरजेंसी में पहुंचा देते है जहां उसका इलाज शुरू होता है. लेकिन कुछ ही देर के बाद सीटी स्कैन में पता चलता है कि दिमाग के पास खून की क्लॉटिंग होने से कुशल कोमा में जा चुका है.
डॉक्टर्स कहते हैं कि होश में आने में छह से आठ महीना या साल भर भी लग सकता है. यह सुनते ही कुछ देर के लिए जैसे हाथ पैर सुन हो गया. बगल में खड़े फोटो जर्नलिस्ट आशीष पांडेय की आंखों से आंसू रवां होने लगते हैं. शायद इसलिए कि कुशल जिस पार्टी से वापस आ रहा था, उस पार्टी में आशीष भी शामिल था. आफिस के सभी कुलीग ट्रामा सेंटर में थे और यही दुआ कर रहे थे कि कुशल जल्द से जल्द होश में आ जाए. सबसे बड़ा काम अभी बाकी था. कुशल के घर पर उसके बूढ़े मां और बाप को किस तरह खबर दी जाए? डेस्क के साथी नीरज किसी तरह हिम्मत जुटा कर उसके घर फोन करते हैं और हल्के फुल्के एक्सीडेंट के बारे में बता देते हैं. किसी तरह कुशल के बूढ़े पिता हास्पिटल पहुंचते हैं. अपने बेटे को सामने बेहोश देख उनकी आंखों से आंसू जारी हो जाता है, जो अब तक जारी है. दुआ करते हैं कि यह आंसू जल्द से जल्द कुशल की ठीक होने की खुशी के आंसू बन जाएं. आप से भी उम्मीद करते हैं कि इस बेबस मां बाप के लिए कुशल के सकुशल अस्पताल से घर पहुंचने की दुआ करेंगे.
यासिर रजा
चीफ डिप्टी रिपोर्टर
आईनेक्स्ट
दैनिक जागरण ग्रुप
लखनऊ
9794810000
pankaj
October 9, 2015 at 8:30 am
bhagwan unko jaldi theek kare ….