दिल्ली के दो बड़े पत्रकार क्लब (प्रेस क्लब ऑफ इंडिया P.C.I और इंडियन वूमैन प्रेस कोर I.W.P.C) पिछले दो तीन वर्ष से पूरी तरह सियासी रंग में रंग गए हैं। ये दोनों क्लब दो धड़ों में बंटे हैं- वामपंथ और दक्षिण पंथ। दिल्ली का मीडिया अपने हितों की कम और अपनी अपनी विचारधारा की पार्टियों की ज्यादा चिंता करता है। चाहे फिर वो पत्रकारों की हत्याएं हों या फिर महिला पत्रकारों के शोषण या फिर वेतन का मामला हो या मीडिया संस्थानों से बड़े पैमाने पर छंटनी। लाखों की सैलरी पाने वाले वो सभी दिग्गज चुप्पी साध जाते हैं जो हर छोटे से मुद्दे पर बवाल खड़ा कर देते हैं और धरने प्रदर्शनों का आयोजन करते हैं।
P.C.I और I.W.P.C दोनों का पूरी तरह से राजनीतिकरण हो चुका है। वामपंथी खेमा दोनों जगह काबिज है और यहां होने वाले ज्यादातर कार्यक्रम सियासी विचारधारा पर आधारित होते हैं। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया अभी हाल ही में भारत विरोधी कार्यक्रम को लेकर आलोचना का शिकार बना था। IWPC में भी दो साल चुनाव नहीं हुए। पदाधिकारियों से लेकर 21 सदस्यों की कार्यकारिणी निर्विरोध चुनी जाती रही और एक खास विचारधारा वाले गुट का कब्जा रहा। इस साल भी सभी पदाधिकारी निर्विरोध चुन लिए गए लेकिन कार्यकारिणी के लिए 28 उम्मीदवार मैदान में थे। इस चुनाव को पूरा सियासी रंग दिया गया। दो-तीन उम्मीदवारों को संघ और बीजेपी के उम्मीदवार बता कर दो साल से काबिज रहे गुट ने जोरदार प्रचार किया और कार्यकारिणी के चुनाव को LEFT बनाम RIGHT का रंग दे दिया। जो महिला पत्रकार वोट डालने आ रही थीं उन्होनें वोट मांग रहे उम्मीदवारों पर सवाल दागे- तुम्हारे पैनल में कितने RIGHT वाले और कितने लेफ्ट वाले हैं। अफवाह तो यहां तक उडायी गयी कि बीजेपी अपने उम्मीदवार खड़े करके I.W.P.C पर कब्जा करना चाहती है।
लगभग 23 साल पुराने इस क्लब में ऐसी ओछी राजनीति बहुत सी महिला पत्रकारों को रास नहीं आती। बहुत सी संस्थापक सदस्य और अन्य सदस्य यहां आना बंद कर चुकी हैं। आप इसी बात से अंदाज़ लगा सकते हैं कि केवल एक तिहाई सदस्य ही वोट डालने आते हैं। कल्याणी शंकर, मृणाल पांडे, शांता सरबजीत सिंह, रश्मि सक्सेना, कुमकुम चड़्डा, सुषमा रामाचंद्रन और अन्य कई वरिष्ठ महिला पत्रकारों ने भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री नरसिंह राव के कार्यकाल में 1994 में महिला पत्रकारों के लिए जगह लेकर इस क्लब की स्थापना की थी। यहां तक कि फर्नीचर और क्रॉकरी वो अपने घर से लेकर आयीं। लेकिन आज ये क्लब ओछी राजनीति का अड्डा बन रहा है। कुछ महिला पत्रकार एक संगठन के रूप में संगठित ना होकर विचारधारा पर आधारित गुटों में क्लब को बांट चुकी हैं जो कि किसी भी पत्रकार संगठन की सेहत के लिए खतरे का सूचक है।
एक महिला पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.