मैं शायद सूर्या समाचार का पहला संपादक था। उस समय चैनल लाँच करने की तैयारियां चल रही थीं। एक महीने में ही समझ में आ गया था कि ग़लत जगह फँस गया हूँ। बंदा साठ लोगोँ से नेशनल चैनल चलाना चाहता था। कुछ भी समझने के लिए तैयार नहीं। लीचड़पने की तो हद ही न थी। आख़िरकार महीना पूरा होते-होते अपन निकल लिए। मेरे बाद पता नहीं कौन-कौन संपादक बनकर आया और चला गया मगर सेठजी को समझ नहीं आई कि चैनल वैसे नहीं चल सकता जैसा वे चलाना चाहते हैं।
पुण्य प्रसून ने बागडोर सँभाली थी तो लगा था कि लाला को किसी भी सूरत में दखलंदाजी न करने के लिए राज़ी कर लिया होगा। हालांकि अपने अनुभव से ये भी यक़ीन था कि वह मानेगा नहीं। फिर भी लग रहा था कि चुनाव तक तो वे रहेंगे ही मगर ये भी हो न सका।
लोग पुण्य प्रसून पर टूट पड़े हैं। हो सकता है अहंकार वाली बात सही हो, मगर इस पूरे प्रकरण में दोष सेठजी का ज़्यादा है। अव्वल तो उसे ऐसे लोग लेना चाहिए जिनसे उनकी निभ सके और दूसरे साधना टाइप चैनल से बेहतर चैनल चलाने की महत्वाकांक्षा पालनी नहीं चाहिए। राज्यसभा में जाने के कई और रास्ते हैं उन्हें आज़माना चाहिए।
पुण्यप्रसून को तो मैं बधाई दूंगा कि उन्होंने समझौता नहीं किया। चार जगह से छोड़ने या निकाले जाने से ज़िंदगी ख़त्म नहीं होती। ज़िंदगी ख़त्म होती है समझौते करके नौकरियों में बने रहने से।
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की एफबी वॉल से.
One comment on “पुण्य में दोष नहीं, लाला ही लीचड़ था : मुकेश कुमार”
एकदम सही , समझौता करने से बेहतर है नौकरी छोड़ देना