दिल्ली विवि के जाकिर हुसैन कॉलेज में बीते 13 वर्षों से असिस्टेंट प्रोफ़ेसर (एडहाक) के रूप में पढ़ा रहे Dr Laxman Yadav को सेवा से हटा दिया गया है. इस फ़ैसले की मैं तीव्र निंदा करता हूँ. यह सौ फ़ीसदी तानाशाही है. असहमत लोगों को शत्रु समझने वाला ऐसा प्रशासन पहली बार सामने है. -उर्मिलेश
लक्ष्मण यादव-
आधिकारिक सूचना. हमसे हमारी धड़कन छीन ली गई. वज़ह नहीं बताई. मगर वज़ह जगज़ाहिर है.
Academic Performance Indicators (API) : 96/100
ये चार नम्बर भी इसलिए कम हुए कि हमारे BA MA में 80% से ज़्यादा नहीं हैं। अन्यथा 100/100 होते। भले ही ये इंटरव्यू के पहले की पात्रता है।
बावज़ूद इसके अगर आपको परमानेंट नहीं किया जाए, तो एक बात स्पष्ट है, यहाँ नियुक्ति पाने के लिए ‘मेरिट’ की ज़रूरत नहीं। विभागाध्यक्ष के मुताबिक़ मेरा इंटरव्यू भी सबसे अच्छा हुआ।
फिर किस आधार पर हमें बाहर किया गया? क्यों बहुत कम API पर नियुक्तियाँ हो रही हैं? क्या कारण है मुझे निकालने का? ये सवाल हैं मेरे। जवाब तो देना पड़ेगा डीयू प्रशासन।
क्या RSS की शाखाओं में मैं नहीं गया, किसी प्रोफ़ेसर की कभी चापलूसी न की, इसीलिए नौकरी छीन ली? कारण बताओ डीयू।
देशवासियों! ये सब आप भी जान सकें, इसलिए अपना सब दाव पर लगाकर आपको बता रहा हूँ कि आपके देश के विश्वविद्यालय बर्बाद कर दिए गए हैं। बचा सकें तो बचा लीजिएगा।
मेरे लहजे में जी-हुजूर न था
इससे ज्यादा मेरा कसूर न था.
वे डरते हैं
किस चीज़ से डरते हैं वे
तमाम धन-दौलत
गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज के बावजूद?
वे डरते हैं
कि एक दिन
निहत्थे और ग़रीब लोग
उनसे डरना बंद कर देंगे।
अबू माज़-
दिल्ली विश्वविद्यालय का एक लोकप्रिय हरदिल अज़ीज़ शिक्षक
ग़रीबों शोषितों वंचितों का दर्द लेकर जीने वाला एक दर्दमंद !समाजिक बराबरी की वकालत करने वाला एक निडर योद्धा हमारी माटी का लाल प्रोफ़ेसर Laxman Yadav विश्वविद्यालयों में व्याप्त भेदभाव का शिकार हो गया उनका हक़ छीन कर बेईमानी की भेंट चढ़ा दिया गया। हम लोग देखते रह गए। हक हुकूक की बेलौस आवाज़ हाकिमों के कानों पर गरां गुजरती है इसलिए एक शिक्षक को ख़ामोश करने की कोशिश की गई है। ग्रामीण ओबीसी परिवेश से आने वाली बाबा साहब की वैचारिक और मुखर संतानें उन्हें पसंद नहीं हैं। उन्हें चरण चापलूस चाहिए। चरण चापलूसों की भीड़ चाहिए।
मयंक यादव-
डॉ० Laxman Yadav और हमने साथ में काम किया है. उनसे मेरे मतभेद रहे हैं, मतभेद सार्वजनिक जीवन को लेकर रहे हैं तो उन्हें सार्वजनिक करने में भी मुझे कोताही नहीं रही है. यह बात वे खुद भी जानते हैं. हमने आपस में इस पर पहले बातचीत भी की है.
लेकिन लक्ष्मण यादव की क्षमता और प्रतिभा को लेकर मुझे कभी कोई संशय नहीं रहा. उनके लेखन और वाचन की शैली के बारे में जानकारी सार्वजनिक है. बौद्धिक रूप में से बेहद समृद्ध व्यक्ति हैं. किंतु उनका API स्कोर संभवत: अधिकतम 96/100 होने के बावजूद उन्हें उस दिल्ली विश्व विद्यालय से बाहर कर दिया गया जहां वे पिछले 14 साल से पढ़ा रहे थे.
कुछ कुतर्क गढ़ने वाले शातिर लोगों का कहना है कि चूंकि वे संविदा पर पढ़ा रहे थे, इसलिए उनका कोई अधिकार नहीं था. हमें मालूम है अब हर तरह का अधिकार तो सिर्फ शाखामृगों और उन मृग बहादुरों की पादुकाओं को सर पर ढोने वाले वाले विशुद्ध रीढ़विहीन दो पैरों वाले जंतुओं का ही है.
जिन्हें लगता है डॉ० लक्ष्मण को हटाने की वजह उनका मुखर होना नहीं है, तो मुझे 10 ऐसे एड हॉक पढ़ाने वालों के नाम बता दें जिनको पर्मानेंट किया हो और जो पिछले वर्षों में इस सरकार की नीतियों की मुखालफत करते हों, आरक्षण के पक्ष में बोलते हों, जाति के सवाल को उठाते हों या साप्रदायिकता का खुला विरोध करते रहे हों.
पर्मानेंट तो छोड़ो, विरोध करने वालों के नाम ही गिनती भर के हैं.
एक परिवार वाले आदमी की नौकरी छीनी गई है. कुछ करना तो खैर तुम से होगा नहीं लेकिन तुम से तो चुप रहने उम्मीद भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि हम जानते हैं जितना देर तुम जैसे शाखा के पालतू भौं भौं करोगे उतना ही देर तुमको हड्डी मिलेगी.
रही बात हमारे और लक्ष्मण यादव के संबंधों की तो हम में मतभेद होंगे, हम बहस करेंगे. एक दूसरे से सवाल करेंगे. आलोचना करेंगे लेकिन तुम्हारी तरह शाखा में नृत्य पेश नहीं करेंगे.
इतनी राजनैतिक समझ हम में अब भी बची हुई है कि आताताइयों से मुकाबले के लिए हम और ऐसे तमाम साथी हमेशा साथ खड़े मिलेंगे. डॉ० लक्ष्मण को मजबूती मिले !
जयंत जिज्ञासु-
लक्ष्मण यादव अपने पेशे के साथ न्याय करने वाले शिक्षक हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में लम्बे समय से पढ़ा रहे थे। जब स्थाई नियुक्ति की बारी आई तो उन्हें नहीं चुना गया। पूरे तंत्र को हल्का व छिछला बनाया जा रहा है। लक्ष्मण जी जैसे शिक्षक पर विश्वविद्यालय को गर्व होना चाहिए था, पर अफ़सोस!
दुनिया भर के संस्थान अच्छे शिक्षकों को संभाल कर रखते हैं। सरकार किसी की भी हो, ऑक्सफ़र्ड, कैम्ब्रिज, कोलंबिया, हार्वर्ड, आदि में चयन प्रक्रिया को प्रभावित नहीं किया जाता, गुणवत्ता का ख़याल रखा जाता है। काश, यहाँ भी ऐसा हो!
अगर हम सचमुच समृद्ध स्वतंत्र ज्ञान परम्परा चाहते हैं, तो विविधतापूर्ण आवाजों के प्रति सम्मान व सहिष्णुता का भाव होना चाहिए।
बाक़ी, लक्ष्मण बहादुर साथी हैं, उनका मनोबल और ऊंचा ही उठेगा!
राहुल रोशन-
लक्ष्मण भैया को दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य से हटा दिया गया है।वर्तमान सरकार की कार्यशैली को देखते हुए शायद ये लाज़मी भी था क्योंकि इस व्यवस्था में सबकुछ एक रंग में होना चाहिए और इनका स्पष्ट विचार और व्यवहार मुखरता के साथ संघी सोच के विपरीत ही रहा है हमेशा।चुकी ये एडहॉक पर कार्यरत थे तो आसान भी था इनके विरुद्ध ये निर्णय लेना।
इसपर कुछ लोगों का मत है की एडहॉक शिक्षक थे तो कभी ना कभी तो हटाना ही था।दूसरा तर्क ये की इससे नए लोगों को मौका मिलेगा और सबको समान अवसर मिलेगा दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक बनने का।तर्क वाजिब भी लगता है प्रथम दृष्टया।पर उनके अनुभव और योगदान को देखते हुए उनको और वैसे दूसरे शिक्षकों को परमानेंट भी तो किया जा सकता था।या फिर उनके अनुभव के लिए एक्स्ट्रा पॉइंट्स देकर नए सिरे परीक्षा ही ले ली जाती।
जो पत्र जारी हुआ उसमें सिर्फ दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत जाकिर हुसैन कॉलेज के दो ही विषयों के 8 शिक्षकों के हटाए जाने की सूचना है।सिर्फ उसी कॉलेज के शिक्षक हटाए गए या और भी दूसरे कॉलेज हैं इस लिस्ट में ये जांच का विषय है।एडहॉक हटाके परमानेंट ही करना है तो सारे कॉलेजेस के सारे विषय के एडहॉक फैकल्टी को हटा देना चाहिए था और उससे भी पहले परमानेंट रिक्रूटमेंट कर लेना चाहिए था।ये लोग जो 10 वर्ष से ज्यादा टाइम से पढ़ा रहे थे उनके अनुभव का फायदा यूनिवर्सिटी उठा सकती थी इससे छात्र और शिक्षक दोनों का फायदा होता।ये योग्य थे तभी 15 साल से पठन पाठन कर रहे थे और नहीं थे तो इतने साल छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ क्यों हो रहा था।सवाल बहुत हैं जिनके जवाब मिलने चाहिए।पर इसकी भी आशा कम ही है जैसा की अब तक दूसरे मामलों में 9 साल से देखने को मिलता रहा है।बस तुगलकी फरमान ही जारी होते रहेंगे।
इरफ़ान ज़िब्रान-
लक्ष्मण यादव जाकिर हुसैन कॉलेज में एडहॉक पर असिस्टेंट प्रोफेसर थे।एडहॉक कॉन्ट्रैक्ट बेसिस होता है इसलिए कभी भी हटाया जा सकता है।जाकिर हुसैन कॉलेज ने लक्ष्मण यादव की सेवा समाप्त कर दी।सेवा समाप्त करने वाली जो नोटिस लक्षमण यादव ने शेयर किया है उसमें 8 नाम है जो कि फिलॉसफी और हिंदी के हैं।
हटाया जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि यह नौकरी ही कांट्रेक्ट के आधार पर होती है।ऐसा बहुत क्षेत्रों में होता रहता है।शिक्षामित्र में डेढ़ लाख से ज्यादा थे और परमानेंट हो चुके थे पर माननीय न्यायालय के आदेश पर इनकी स्थायी नौकरी चली गयी।
आखिर विक्टिम कार्ड क्यों खेलना?मेहनत करके प्रक्रिया के तहत परमानेंट नौकरी लीजिये।एडहॉक और संविदा अच्छे बच्चों के लिए कभी फायदेमंद नहीं होता है,इसलिए एडहॉक और संविदा का सिस्टम पूरी तरीक़े से खत्म करके प्रक्रिया के तहत सारी भर्तियां की जाए……..इससे अच्छे और पढ़ने वाले बच्चों को फायदा मिलेगा।
प्रक्रिया के तहत जब काबिल बच्चे आएंगे तो पठन-पाठन का स्तर और ऊंचा होगा।
आज के दौर में विक्टिम कार्ड खेलना भी फायदे लेने का टूल बन गया है और सोशल मीडिया,यूट्यूब जैसी जगहों पर विक्टिम कार्ड खेलकर अपने आधार का विस्तार करने की कोशिश और व्यूज बढ़ाने की कोशिश करना अब कोई नई बात नहीं हैं।
ऐसे न्यूज़ देखने और विक्टिम कार्ड खेलते देखते हुए सोचता हूँ कि इनकी हालत इतने पर ही ऐसी है…….अगर उर्दू नाम वाले होते तो क्या हालत होती।
Ramprasad
December 7, 2023 at 2:15 pm
दिल्ली यूनिवर्सिटी के होनहार प्रोफेसर लक्ष्मण यादव जी को नौकरी से टर्मिनेट कर देना व्यवस्था और सत्सता पर हजारों सवाल खड़ा करता है।
यह बात अब सिद्ध हो चुका है कि इस व्यवस्था और इस सत्ता को विरोध पसंद नहीं है, सवाल पसंद नहीं है, विरोधी विचारधाराएं पसंद नहीं है।
यह बहुत ही दुखद घटना है।
हम भारत के लोग कहां जा रहे हैं?
किसी ओर जा रहे हैं?
हमारी मंजिल क्या है?
अब भारत के विषय में “अनेकता में एकता” झूठ और बेईमानों का जुमला साबित हो चुका है।
परंतु, सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं हो सकता है।
अंतिम रूप से सत्य की ही विजय होगी।
मुकेश
December 7, 2023 at 7:19 pm
एडहॉक से लगभग सभी महविद्यालयों से लोग रोज हटाए जा रहे हैं । यह संख्या लगभग हजारों में है । और यह सभी वर्ग में हुआ । लेकिन लक्ष्मण यादव ने एक शब्द नहीं क्या , जब अपनी बारी आई तो बहुत शातिराना अंदाज में टर्मिनेशन का लेटर शेयर कर ,अपने आप को केंद्र में लाने का प्रयास कर रहे हैं । यह कोई नई बात नहीं है , नियुक्ति में केवल और केवल सेटिंग ही काम करता है । पढ़ाई लिखाई कभी मायने नहीं रखता है ।पहले भी नहीं चलता था आज भी नहीं । इधर हो चाहे उधर , सालों से यही चलता है ,आगे भी यही रहेगा ।
NJP Singh
December 8, 2023 at 10:59 am
Laxman yadav type people can’t be suitable for a prestigious university like DU , such people should search a job some where in Bihar. This fellow has nothing to do with teaching.These fellow will pollute the academic atmosphere of any institution. He may be fit for Bihar politics only.
Arvind Mishra Mishra
December 8, 2023 at 1:52 pm
जो भी व्यक्ति अपनी बौद्धिकता का दुरुपयोग करता हो, समाज में विद्वेष फैलाता हो। अनर्गल प्रलाप करता हो। उसका ऐसा ही हश्र होना चाहिए। यह एक नजीर है जो लोगों को आगाह करेगी।
Vineet
December 8, 2023 at 5:20 pm
Bilkul thik kiya …..du ek jimendar sanstha h jo santan ka apman karta h uske sath aisa hi hona chahiye
Arun
December 9, 2023 at 6:23 am
Teacher ka kaam hota hai padana mene inke video dekhe hai kese ek dhram vishes aor bramano ko target karte hai jo ek shikshak ko shobha nahi deta yadav hote hue ishwar ko bura bhala kahna bahut acha laga inhe hata diya ab khulkar apne pahle wale ajenda me lag jao
रौशन कुमार विश्वकर्मा
December 9, 2023 at 7:35 am
कुछ लोग बोल रहे है कि लक्ष्मण यादव contract basis पर नौकरी कर रहे थे, जो कभी भी जा सकता है l
तो भाई लक्ष्मण यादव के स्थान पर सरकारी व्यवस्था मे contract system का विरोध करो ना, जिसमे selctor अपने परिवार, जाती, धर्म, और विचारधारा देखकर intrerview, नंबर और selection list तय करते है l
इसके स्थान पर सेंट्रल और स्टेट लेवल पर क्रमशः UPSC और state PCS के जैसा प्रतिवर्ष UGC असिस्टेंट प्रोफेसर का वैकेंसी लाया जाए l
और यह काम हाल ही में बिहार में हुए नए सिरे से शिक्षक बहाली जैसे कार्यक्रमों के तहत होना चाहिए जितने भी पुराने कॉन्ट्रैक्ट बेस पर लोग काम कर रहे हैं उसके लिए एक एग्जाम लिया जाए और नए सिरे से भर्ती किया जाए
उसके बाद प्रतिवर्ष केंद्र में सभी विषयों से लगभग 3000+ और स्टेट में लगभग 1000+ भरती आना चाहिए इससे सिस्टम में पारदर्शिता बढ़ेगा और कंपटीशन का माहौल बढ़ेगा और जातिवादी और परिवारवादी के जरिए भर्ती हुए गधे के स्थान पर काबिल अभ्यर्थी की चयन होगी
डा निहोरा प्रसाद यादव
December 11, 2023 at 11:21 am
न्याय के लिए लड़ने वालों का हश्र इस देश में यही होता है भले ही हम अभिव्यक्ति स्वतंत्रता की बात करते है पर जो भी सही बात कही सुकरात की तरह जहर का प्याला पीना ही पड़ता है अपने आप को पिछड़ा कहने वाला प्रधान मंत्री के शासन में पिछड़ों दलितों पर ही अत्याचार हो रहा। है वर्षो संघर्ष करना होगा तब मनुवादियों से छुटकारा मिलेगा आगे बढ़ते रहे हम साथ है
Ankit
December 16, 2023 at 7:06 am
Right sir