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महाराष्ट्र का मामला भाजपा से जुड़ा है इसलिए खबर ही नहीं है?

टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड अखबारों से ऐसे गायब है जैसे गधे के सिर से सींग

संजय कुमार सिंह

द टेलीग्राफ की आज की लीड का शीर्षक है, कांग्रेस ने हिन्दू विरोधी होने के टैग पर एतराज किया। इंडियन एक्सप्रेस ने कल कांग्रेस की बात को अपने अंदाज में भाजपा के पलटवार के साथ छापा था। आज भी कांग्रेस का पक्ष नहीं है जबकि टेलीग्राफ में एक और खबर है जो बता रही है कि भाजपा लोगों के हिन्दू न होने के लेबल जारी कर रही है। आज के अखबारों में लीड अलग हैं और जो लीड होनी चाहिये थी वह नहीं है क्योंकि मामला भाजपा और सरकार गिराने की उसकी राजनीति से जुड़ा हुआ है। उसपर आने से पहले आपको बता दूं कि हिन्दुस्तान टाइम्स की आज की लीड का शीर्षक है, “सेना प्रमुख ने कहा, सभी स्टेकधारक अग्निपथ के लिए सहमत थे”। सेना प्रमुख ने और भी मामलों पर सफाई दी है और यह खबर इसीलिए महत्वपूर्ण है। मेरा मानना है कि यह संपादक का अधिकार है और उसके विवेक का मामला है। मैं सिर्फ रेखांकित करता हूं।

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मुझे लगता है कि अग्निपथ का मामला पुराना हो चुका और अब उसपर स्पष्टीकरण गैर जरूरी है। जो व्यवस्था लागू है वह सबकी सहमति से है या नहीं उसका बहुत मायने नहीं है। इसका संदर्भ अगर जनरल नरवणे की किताब में कुछ कहा गया है तो उसपर स्पष्टीकरण भी नहीं होना चाहिये और है तो वैसे ही पेश किया जाना चाहिये। द टेलीग्राफ में यह खबर सिंगल कॉलम में है और शीर्षक अग्निपथ पर नहीं राजौरी-पुंछ पर है जो सरकार की नई चिन्ता है। इसे समझने के लिए हिन्दुस्तान टाइम्स में लीड के साथ छपी एक और खबर का शीर्षक जानना दिलचस्प रहेगा। हिन्दी में यह शीर्षक कुछ ऐसे होगा, जनरल पांडे ने कहा, पुंछ रजौरी में आतंक का केंद्र, एक चिन्ता। आप जानते हैं कि पुंछ में सेना पर घात लगाकर किये गये हमले की जांच के सिलसिले में उठाये गये तीन लोगों की मौत के बाद मामला काफी गंभीर गंभीर हो गया था। रक्षा मंत्री वहां थे और इसपर उनके बयान छपे हैं।

टेलीग्राफ ने सेना प्रमुख की इस खबर के साथ लिखा है कि उनकी यह टिप्पणी इस पृष्ठभूमि में है। इसलिए यह खबर सरकारी प्रचार है। गैर जरूरी है। हालांकि मौके पर तनाव के मद्देनजर यह खबर हो सकती है पर लीड तो नहीं है और इसीलिए दूसरे अखबारों में नहीं है। यह अलग बात है कि इन दिनों जब ज्यादातर खबरें सरकारी प्रचार वाली होती हैं और विरोध वाली को प्रमुखता नहीं मिलती है तो यह बताना महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस को निमंत्रण स्वीकार नहीं करने के लिए अगर हिन्दू विरोधी बताया जा रहा है तो तथ्य यह भी है कि निमंत्रण और वारंट में अंतर होता है। व्यवस्था ऐसी है कि वारंट और समन का सम्मान नहीं हो रहा है। ऐसे में धार्मिक आयोजन को राजनीति बना दिया जाना भी खबर नहीं है। द टेलीग्राफ ने अपने कोट में आज कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया का बयान छापा है। उन्होंने कहा है, जो धार्मिक कार्यक्रम श्रद्धा के साथ किया जाना चाहिये था उसे राजनीतिक प्रचार में तब्दील कर दिया गया है और यह सभी हिन्दुओं के साथ विश्वासघात है।

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भाजपा और इंडियन एक्सप्रेस जब कांग्रेस को हिन्दू विरोधी बता रहे हैं। ऐसे में आज एक खबर यह भी है कि भाजपा लोगों को हिन्दू होने का सर्टिफिकेट बांट रही है। तो कांग्रेस का यह पक्ष कम महत्वपूर्ण नहीं है और आरोप के बराबर महत्व की खबर है लेकिन क्या इसे बराबर महत्व मिला है? अखबार अगर किसी पार्टी के घोषित मुखपत्र नहीं हैं तो उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे सभी दलों को समान महत्व देंगे। हिन्दुत्व की आंधी में कांग्रेस को भ्रष्टाचारी और हिन्दू विरोधी बताने वाली पार्टी कांग्रेस मुक्त भारत चाहती है और राहुल गांधी ने कहा है कि वे भाजपा को लड़कर हरायेंगे। अखबारों के एक तरफ होने से यह लड़ाई मुश्किल है और उसपर से ईवीएम तो है ही। ऐसे में सत्तारूढ़ दल अगर विधायक खरीदकर सरकार गिराये और सत्तारूढ़ पार्टी फिर भी जीत जाये तो यह नहीं माना जा सकता है कि जनता को यही पसंद है।

ईवीएम पर शक

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ईवीएम पर शक इसी कारण से है और आज के अखबारों में ऐसे ही एक मामले को महत्व नहीं दिया गया है और यह बहुत महत्वपूर्ण है। आप जानते हैं कि महाराष्ट्र में एकनाथ शिन्दे ने शिवसेना को तोड़कर भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई। विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट गया था और उसका फैसला भी आपको याद होगा। तभी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दल बदल करने वाले विधायकों की सदस्यता पर फैसला विधानसभा अध्यक्ष को करना है। विधानसभा अध्यक्ष मामले को टालते रहे और सुप्रीम कोर्ट की दी अंतिम तारीख भी पार कर गई। उसके बाद जो फैसला आया वह कल कई अखबारों में लीड था। अखबारों ने जो बताया-जैसे बताया उससे मैंने यही समझा कि दल (समर्थन) बदलने के लिए किसी की सदस्यता नहीं गई, पार्टी दो फाड़ हो गई और वंशवाद छोड़कर बहुमतवाद के अनुसार फैसला हुआ।

इसमें जिन लोगों ने अपनी आस्था या समर्थन बदली उन्हें असली पार्टी मान लिया गया। यह सब अजीब किन्तु सत्य है और अपेक्षित भी था। लेकिन उसके बाद की खबर को आज टाइम्स ऑफ इंडिया ने लीड बनाया है जो किसी और अखबार में लीड नहीं है। इसके अनुसार विधानसभा अध्यक्ष ने शिवसेना के एक गुट को निर्देश दिया है कि वह अब (बहुमत वाले जो ‘असली’ भी है) के साथ रहे। यानी जो अलग हुआ, भले बड़ी संख्या में है वह अलग नहीं है। जो जहां था वहीं है, उसे मजबूर किया जा रहा है कि आप उनके साथ रहें जिसे आप कह रहे हैं कि अलग हो गया है। जिसकी लाठी उसकी भैंस जैसी कल की खबरों से मामला मुझे समझ में नहीं आ रहा है लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि कुछ दिलचस्प है और बहुत सीधा-सरल नहीं है। ऐसे ही मामले खबर बनते और कहलाते हैं। इसीलिए टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे लीड बनाया है पर यह दूसरे अखबारों में लीड तो छोड़िये पहले पन्ने पर भी नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि इस मामले में दल बदल कानून का अस्तित्व ही संकट में नजर आ रहा है पर नया कानून बनाने और कानून को सरल बनाने का दावा करने वाली सरकार के राज में इस महत्वपूर्ण मामले में खबर भी नहीं छप रही है। ना घटना पर, ना कानून पर ना उसे विचित्र ढंग से लागू करने पर।

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द हिन्दू ने आज विधानसभा अध्यक्ष के फैसले पर देवेन्द्र फडणविस की टिप्पणी भी छापी है। शीर्षक वही है जो उन्होंने कहा है, (शिव) सेना के मामले में फैसला सरकार की स्थिरता से संबंधित आशंकाओं को खत्म करता है। पर जैसा मैंने पहले बताया, यह मामला अजीब लगता है पर खबर ही नहीं है और ऐसा है तो विधानसभा अध्यक्ष फैसला क्यों नहीं ले रहे थे और यह मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में जाने वाला है और इसका हश्र भी बिलकिस बानों मामले में जो हुआ वैसा हुआ तो? इसकी चिन्ता फडणविस का काम नहीं है उसके लिए पूरे परिवार का हेडलाइन मैनजमेंट है ना?   

मणिपुर में डबल इंजन

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ऐसे में इंडियन एक्सप्रेस की आज की लीड सर्वाइकल कैंसर से लड़ने का टीका पेश करने की सरकार की योजना है। हालांकि, मणिपुर में हिन्सा अब भी जारी होने की खबर भी है। इसके अनुसार चार लोगों के लापता होने की खबर के बाद तीन लोगों का शव मिला है। कहने की जरूरत नहीं है कि डबल इंजन वाले मणिपुर में मई में शुरू हुई हिंसा अभी भी नियंत्रित नहीं है और खबरें पहले पन्ने पर नहीं के बराबर रहती हैं। द हिन्दू में आज सरकारी प्रचार ही लीड है। इसके अनुसार, प्रत्यक्ष कर के मामले में 2023-24 के लक्ष्य का 80 प्रतिशत पूरा हो गया। इसके साथ बराबर में छपी खबर का शीर्षक है, सीटों के बंटवारे पर तृणमूल, कांग्रेस में भिड़ंत। मेरा मानना है कि अगर ऐसा है और यहां भी विवाद है तो इंडिया गठबंधन और लोकसभा चुनाव एक साथ लड़ने का सपना अभी दूर है। मेरे ख्याल से अखबारों को भाजपा की सेवा में जनता को यही बताना है। जो भी हो, हम आपको खबरों का खेल बताते रहेंगे।

बीते हुए दिनों की अखबारी समीक्षाएँ पढ़ने के लिए इसे क्लिक करें- https://www.bhadas4media.com/tag/aaj-ka-akhbar-by-sanjay-kumar-singh/

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