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मजीठिया संघर्ष समिति ने चंडीगढ़ में भी गवर्नर को थमाया मांगपत्र

मजीठिया ने देश के प्रिंट मीडिया में हलचल मचा रखी है। इस हकीकत को किसी भी रूप में नजरअंदाज करना अब नामुमकिन है। इसके पक्ष और विपक्ष में अनेक चर्चाएं-कुचर्चाएं हो रही हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर-दौरा चल रहा है। विभ्रम पैदा करने, भटकाने के कुचक्र रचे जा रहे हैं, साजिशें की जा रही हैं, चालें चली जा रही हैं। हर वह हथकंडे अपनाए जा रहे हैं जिससे इस वेज की संस्तुतियों को अमलीजामा पहनाने में रुकावट आए। इस काम में मालिकान और उनके एजेंट-गुर्गे-कारिंदे मशगूल हैं ही, वे कर्मचारी भी जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे शामिल हैं जिन्हें इस वेज बोर्ड से होने वाले फायदों से ज्यादा सरोकार नहीं है। या फिर वे मालिकान के हथकंडों, दबंगई, बदमाशी से डरे हुए हैं, सहमे हुए हैं। या फिर वे खुद ही अपनी शिथिल, दबी-कुचली मानसिकता के शिकार हैं और मैनेजमेंट के सामने अपने हक की आवाज उठाने की जहमत नहीं लेना चाहते। या फिर वे अंदरखाते तो चाहते हैं कि उनकी सेलरी बढ़े जिससे थोड़ा ठीक से जी सकें लेकिन खुल के बोलने का साहस सिरे से नदारद है। 

मजीठिया ने देश के प्रिंट मीडिया में हलचल मचा रखी है। इस हकीकत को किसी भी रूप में नजरअंदाज करना अब नामुमकिन है। इसके पक्ष और विपक्ष में अनेक चर्चाएं-कुचर्चाएं हो रही हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर-दौरा चल रहा है। विभ्रम पैदा करने, भटकाने के कुचक्र रचे जा रहे हैं, साजिशें की जा रही हैं, चालें चली जा रही हैं। हर वह हथकंडे अपनाए जा रहे हैं जिससे इस वेज की संस्तुतियों को अमलीजामा पहनाने में रुकावट आए। इस काम में मालिकान और उनके एजेंट-गुर्गे-कारिंदे मशगूल हैं ही, वे कर्मचारी भी जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे शामिल हैं जिन्हें इस वेज बोर्ड से होने वाले फायदों से ज्यादा सरोकार नहीं है। या फिर वे मालिकान के हथकंडों, दबंगई, बदमाशी से डरे हुए हैं, सहमे हुए हैं। या फिर वे खुद ही अपनी शिथिल, दबी-कुचली मानसिकता के शिकार हैं और मैनेजमेंट के सामने अपने हक की आवाज उठाने की जहमत नहीं लेना चाहते। या फिर वे अंदरखाते तो चाहते हैं कि उनकी सेलरी बढ़े जिससे थोड़ा ठीक से जी सकें लेकिन खुल के बोलने का साहस सिरे से नदारद है। 

यह स्थिति चंडीगढ़ में थोड़ा ज्यादा ही है। यहां का अखबारी जगत चंद अखबारों मसलन इंडियन एक्सप्रेस और द ट्रिब्यून को छोडक़र तकरीबन बेजान, या कहें कि मुर्दा बना हुआ है। कुछ एंडिविजुअल को छोड़ दें तो किसी भी अखबारी मुलाजिम में दम नहीं है कि वह मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के हिसाब से सेलरी एवं सुविधाएं पाने के लिए खुल कर बोले। जबकि सुप्रीम कोर्ट के 28-05-2015 के आदेशानुसार वे उन विशेष टीमों के समक्ष अपना पक्ष खुलकर बेहिचक रख सकते हैं जो हर अखबार प्रतिष्ठानों में जाने के लिए तकरीबन गठित कर दी गई हैं। इन टीमों का गठन 27 मई तक हर हाल में होना था। 

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जहां तक अपनी जानकारी है, इन टीमों-नोडल अफसरों-इंस्पेक्टरों की तैनाती कर दी गई है। यह काम राज्यों के चीफ सेक्रेटरी, यूनियन टेरीटरी के एडवाइजरों की मार्फत लेबर कमिश्नरों को करना था। इस काम और इससे संबद्ध जानकारी को पुख्ता, सुदृढ़, मजबूत, ठोस बनाने के लिए चंडीगढ़ में भी वह संगठन सक्रिय हो गया है जो काफी पहले से दिल्ली में सक्रिय है। यानी मजीठिया इंप्लीमेंटेशन संघर्ष समिति। 

जी हां, इसी समिति की अगुआई में चंडीगढ़ के अंग्रेजी और हिंदी अखबारों के कुछ वरिष्ठ मीडियाकर्मियों ने कुछ रोज पहले ही हरियाणा एवं पंजाब के गवर्नर तथा चंडीगढ़ के प्रशासक कप्तान सिंह सोलंकी से मुलाकात की है और उन्हें एक ज्ञापन सौंपा है। इस ज्ञापन में स्पष्ट रूप से कहा गया है अखबारी मालिकान मजीठिया वेज बोर्ड देने के लिए कत्तई राजी नहीं हैं। ज्ञापन के जरिए महामहिम से गुजारिश की गई है कि वे ज्ञापन में उल्लिखित बातों, सवालों के मद्देनजर अखबार मालिकों को आदेश दें कि वे मजीठिया वेज ठीक ढंग से पूरी तरह लागू करें। 

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बताते हैं कि हिंदी-अंग्रेजी के समस्त अखबारों की चर्चा के क्रम में जब दैनिक भास्कर का नाम आया तो वह चौंक गए। पूछने लगे कि दैनिक भास्कर ने भी मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू नहीं किया है? जवाब नहीं में मिलने पर उनकी त्यौरियां चढ़ गईं। बता दें कि सोलंकी उसी मध्य प्रदेश के हैं जो दैनिक भास्कर का उद्गम स्थल है। भास्कर के रंग-ढंग, अकूत-बेतहाशा कमाई का उन्हें भरपूर ज्ञान है। अपने दीर्घकालिक राजनैतिक कॅरिअर के दौरान वे मध्य प्रदेश में बड़े-बड़े ओहदों पर रहे हैं। 

संघर्ष समिति के सदस्यों से बातचीत के दौरान गवर्नर कार्यालय के एक आला अधिकारी ने बताया कि गवर्नर साहब से मिलने दैनिक भास्कर के मालिकान रमेश चंद्र अग्रवाल, सुधीर अग्रवाल और चंडीगढ़ के संपादक दीपक धीमान कई बार आ चुके हैं, आते रहते हैं। जाहिर है सत्ता के इस बड़े केंद्र में अपनी पैठ पुख्ता करने और इसके जरिए उगाही करने की मंशा से ही ये लोग यहां के चक्कर लगाते रहते हैं। 

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संघर्ष समिति ने चंडीगढ़ एवं हरियाणा के लेबर कमिश्नरों को भी ज्ञापन दिया है। ज्ञापन में  उनसे मांग की गई वे मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को समुचित ढंग से एवं चुस्ती से लागू कराने की हर संभव कोशिश ही न करें बल्कि लागू करवाएं। उनकी तरफ से सकारात्मक आश्वासन मिला है। 

बहरहाल, मजीठिया इंप्लीमेंटेशन संघर्ष समिति का चंडीगढ़ में सक्रिय होना दबाए-सताए, हक से महरूम किए गए प्रिंट मीडिया कर्मियों के लिए बहुत सुखद है। दिल्ली में इसी समिति ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को मीडिया कर्मियों की समस्याएं बताई थीं और उनसे मजीठिया वेज बोर्ड को लागू कराने की गुहार लगाई थी। सबको पता है कि केजरीवाल ने इस पर फौरन कार्रवाई की थी और दिल्ली के श्रम विभाग को इस काम में पूरी तरह से लगा दिया था। ताजा खबर यह है कि दिल्ली श्रम विभाग की विशेष टीमों ने दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण एवं दूसरे अखबारों के दफ्तरों पर छापेमारी की है और मजीठिया क्रियान्वयन से संबंधित जानकारियों को इकट्ठा किया है। बताने की जरूरत नहीं है कि उक्त अखबार वेज बोर्ड से बचने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं। निश्चित रूप से दिल्ली श्रम विभाग का सख्त रुख उन्हें बचने नहीं देगा। यह सब दिल्ली के मीडिया कर्मियों की सजगता-सक्रियता-समर्पण से हुआ है। चंडीगढ़ के भी अखबार कर्मियों को ऐसा रुख-तेवर दिखाना पड़ेगा, तभी मजीठिया मयस्सर होगा। 

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चंडीगढ़ के पत्रकार, लेखक भूपेंद्र प्रतिबद्ध से संपर्क : 9417556066

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