मजीठिया ने देश के प्रिंट मीडिया में हलचल मचा रखी है। इस हकीकत को किसी भी रूप में नजरअंदाज करना अब नामुमकिन है। इसके पक्ष और विपक्ष में अनेक चर्चाएं-कुचर्चाएं हो रही हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर-दौरा चल रहा है। विभ्रम पैदा करने, भटकाने के कुचक्र रचे जा रहे हैं, साजिशें की जा रही हैं, चालें चली जा रही हैं। हर वह हथकंडे अपनाए जा रहे हैं जिससे इस वेज की संस्तुतियों को अमलीजामा पहनाने में रुकावट आए। इस काम में मालिकान और उनके एजेंट-गुर्गे-कारिंदे मशगूल हैं ही, वे कर्मचारी भी जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे शामिल हैं जिन्हें इस वेज बोर्ड से होने वाले फायदों से ज्यादा सरोकार नहीं है। या फिर वे मालिकान के हथकंडों, दबंगई, बदमाशी से डरे हुए हैं, सहमे हुए हैं। या फिर वे खुद ही अपनी शिथिल, दबी-कुचली मानसिकता के शिकार हैं और मैनेजमेंट के सामने अपने हक की आवाज उठाने की जहमत नहीं लेना चाहते। या फिर वे अंदरखाते तो चाहते हैं कि उनकी सेलरी बढ़े जिससे थोड़ा ठीक से जी सकें लेकिन खुल के बोलने का साहस सिरे से नदारद है।
