ज़ी न्यूज़ के वरिष्ठ कैमरामैन मनोज मिश्रा का लखनऊ में आज निधन हो गया।
उत्तर प्रदेश में विगत एक दशक से कार्यरत और राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त कैमरामैन मनोज मिश्रा का शुक्रवार दिनांक 24 जुलाई, 2020 को देर रात राजधानी के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया।
मनोज मिश्रा पिछले कई दिनों से बीमार थे। उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। मनोज मिश्रा की आयु अभी महज 40 वर्ष थी। परिवार में पत्नी, छोटे बच्चों समेत कई जिम्मेदारियां उनके ही उपर थीं।
पत्रकार नेता हेमंत तिवारी ने दिवंगत पत्रकार मनोज मिश्रा के परिवार की सरकारी स्तर से आर्थिक सहायता के लिए मुख्यमंत्री योगी से अनुरोध किया है।
उधर मनोज के इलाज में लापरवाही की भी सूचना मिल रही है। पढें ये एफबी पोस्ट-
इस पूरे प्रकरण के बारे में लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार नवेद शिकोह फेसबुक पर लिखते हैं-
सत्ता से संबंधों का भी फ्रेम बना पाते तो बिना आक्सीजन के नहीं मरते ज़ी न्यूज के कैमरामैन मनोज मिश्रा…जी न्यूज के लखनऊ ब्यूरो कार्यालय के वरिष्ठ कैमरामैन मनोज मिश्रा की मृत्यु की खबर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। मीडिया का क्षेत्र ग़मज़दा है। लखनऊ के मीडियाकर्मी मनोज के सुखद साथ और उनके दुखद अंत को चर्चा का विषय बनाये हैं। जाने वाले की पेशेवर क़ाबिलयत और नाकाबिल सिस्टम की बातें सोशल मीडिया पर छिड़ी हैं।
टीवी पत्रकारिता के स्तम्भ वाशिन्द मिश्रा जैसे वरिष्ठ पत्रकारों ने इस दिवंगत वीडियो जर्नलिस्ट के बेहतरीन काम और उनके अनुशासन की तारीफों का सिलसिला जारी रखा है। टीवी पत्रकार लिख रहे हैं कि ये अनुशासित वरिष्ठ कैमरामैन अपने पेशे के प्रति बेहद ईमानदार थे। उनका कैमरा उन छिपी हुई अनदेखी पिक्चर को भी अपनी आंख में उतार लेता था जो बड़ी खबरें साबित होती थीं। अपने हुनर में माहिर मनोज मिश्रा का फेम वर्क अद्भुत था। बस वो निजी जरुरतों के लिए सत्ता की ताकतों, नेताओं और अधिकारियों से निजी सम्बंधों का फ्रेम बनाने में विश्वास नहीं रखते थे। इसलिए उनकी लम्बी पत्रकारिता और बड़ा बैनर भी काम नहीं आया। नतीजतन इस काबिल मीडियाकर्मी का अंत एक आम इंसान की तरह नाकाबिल सिस्टम के नाकारेपन की भेंट चढ़ गया।
सपा, बसपा, कांग्रेस या भाजपा सरकार हो। रामराज हो या जंगलराज। आप ज़ी न्यूज़ मे हों या झमझम टाइम्स मे हों। एक्टिव फील्ड रिपोर्टर हों, रिटायर हो या स्वतंत्र पत्रकार हो। वरिष्ठ हो या कनिष्ठ। बड़े मीडिया प्लेटफार्म पर लिखते हों या सिर्फ जगह-जगह और सोशल मीडिया पर दिखते हों।
आप बतौर जर्नलिस्ट जितना भी अच्छा काम करते रहे हो लेकिन यदि आपने निजी जरूरतों के लिए अफसरों, धनपशुओं और नेताओं से व्यक्तिगत संबंध नहीं बनाये तो आपकी जिन्दगी से लेकर आपका अंत कष्टदायक होगा। आप बीमार पड़ेंगे तो आपको आसानी से अस्पताल/बैड/ऑक्सीजन/वेन्टीलेटर नहीं मिल सकेगा। सीएमओ आप को फोन करके आपकी तबियत का हालचाल नहीं लेगा।
फाइव स्टार होटल जैसे कमरे में आपका इलाज हो और वहां उम्मीद से बेहतर आपको भोजन मिले। पत्रकार होने का ऐसा लाभ तब ही मिल पायेगा जब आप ने बड़े लोगों से निजी सम्बंध बनाये हों।
ज़ी न्यूज़ लखनऊ ब्यूरो कार्यालय के वरिष्ठ कैमरामैन मनोज मिश्रा की दुखद मृत्यु की खबर के पीछे की खबरें ये बता रही हैं कि उनका बेहतर इलाज नहीं हो सका। उन्हें आक्सीजन की जरूरत थी लेकिन लखनऊ के एक बड़े अस्पताल राम मनोहर लोहिया में उन्हें आक्सीजन तक नहीं मिल सका। उनकी सांसें उखड़ने लगीं और वो चल बसे।
दो दर्जन से ज्यादा लखनऊ के जिम्मेदार मीडियाकर्मियों की खबरों से ये दुखद खबर पता चली। लखनऊ के ही क्रांतिकारी किस्म के युवा टीवी जर्नलिस्ट निशांत चौरसिया और निखिलेश मिश्रा ने अपनी एफबी पोस्ट में लिखा है कि मनोज मिश्रा पहले तो इलाज के लिए कई दिन तक राजधानी लखनऊ के अस्पतालों में भटकते रहे। किसी ने भर्ती नहीं किया। फिर बड़ी मुश्किल से आर एम एल में भर्ती किया गया। यहां इन्हें आक्सीजन भी नसीब नहीं हुआ। दम घुटने लगा.. सांसे उखड़ने लगीं और वो चले गये।
शूट बहुत कुछ होना था। ख़बर बीच मे ही थी..बाइट मुकम्मल नहीं हुई थी, कैमरा चलना बाक़ी था। लेकिन इस काबिल कैमरापरसन के साथ अन्याय हो गया। कमख्त नाकाबिल प्रोडक्शन वाले ने ऐसा टेप दिया था जो बीच मे ही खत्म हो गया और मनोज मिश्रा की जिन्दगी का कैमरा बंद हो गया। श्रद्धांजलि
प्रकाश
July 26, 2020 at 11:10 pm
बहुत दुखद है इस तरह से किसी कैमरामैन का आक्सीजन ना मिलने के कारण चले जाना और उसके लिए कोई आवाज ना उठाये ये उससे भी ज्यादा दुखद है ये तो मैं भाडास मीडिया का धन्यवाद करना चाहूंगा कि जो सभी की आवाज उठाता है। वर्ना कैमरामैन की आवाज कोई नहीं उठाता कैमरामैन एक थैंक लैस जौब है जिसकी कोई आवाज नहीं उठाता अगर ये किसी और पोस्ट पर होता तो चैनलों इनकी भी चर्चा होती। कैमरामैन को देखा है वह कभी भी अपने लिए काम नहीं कर्ता चैनलों में तो खास कर उसका हमेशा उत्पीड़न ही होता है अच्छी स्टोरी हो तो रिपोर्टर का नाम होता है कहते उस रिपोर्टर ने अच्छी स्टोरी की उसकी तो अपने चैनल में भी कोई नहीं कहता तुम्हारी अच्छी स्टोरी थी। अच्छा कमरामैन हमेशा अपने काम लगा रहता है वह ना तो किसी से पोलटिशन से संबध बना पाता ना अपने आफिस में चमचा गिरी कर पाता है और उसका इनाम ऐसे ही मिलता जैसे इनको मिला है। यह बहुत ही दखदाई है जिस कैमरामैन से चैनल का नाम होता है वही कैमरामैन गुमनाम हो जाता है।चैनल का मालिक भी उसको नहीं पहचानता वह भी उन्हीं को पहचानता जो उसके खबरीलाल होते हैं। और कैमरामैन हमेशा ऐसे ही चले जाते हैं। अगर भाडस मीडिया ना हो तो कुछ ना पता चले इसलिए भाडस मीडिया का बार बार धन्यवाद।