यूपी चुनाव खत्म होने के बाद मीडिया में छाई गंदगी का सफाया तेजी से हो सकता है। बताया जाता है कि यूपी चुनाव में भाजपा बहुमत की उम्मीद कर रही थी लेकिन लाख कोशिशों के बाद त्रिशंकु विधानसभा जैसी स्थिति बनने की आशंका व्यक्त की जा रही है। और इसका ठीकरा न्यूज़ चैनलों पर फोड़ा जा सकता है। कभी दो नंबर की पायदान बनाए रखने वाले न्यूज चैनल को बंद होने की भविष्यवाणी मोदी भक्त अभी से कर रहे हैं।
एनडीटीवी के मनोरंजन चैनल का लाइसेंस रद्द किया जा चुका है। विभिन्न संस्थानों में कार्यरत एक पत्रकार जो अब न्यूज़ चैनल के मालिक हैं उनके चैनल पर खुफिया विभाग पहले से ही आंखे ततेरे हुए है। बताया जाता है कि इसमें एक कांग्रेसी नेता और दाऊद का पैसा लगा हुआ है। मतलब साफ है कि काला कारोबार करने वाले कुछ लोग मीडिया का लोचा पहनकर उपदेश दे रहे हैं, देश की दशा तय कर रहे हैं, चर्चा का विषय तय कर रहे हैं और यह बात कुछ राजनेताओं को बिल्कुल पसंद नहीं।
प्रिंट मीडिया का भी यही हाल
यही हाल प्रिंट मीडिया का है, डीएव्हीपी को इतना जटिल बना दिया गया है कि इसका फायदा सिर्फ ब्रांडेड संस्थानों और भाजपा समर्थित पुराने मीडिया संस्थानों को ही मिलेगा। वहीं मजीठिया वेतनमान ना देकर सुप्रीम कोर्ट और सरकार की शक्तियों को चुनौती देने प्रेस मालिकों से सरकार परेशान है। इससे भारत की छवि विश्व स्तर पर धूमिल हुई है कि भारत में मीडिया मालिक काफी सशक्त हैं। उनके सामने सरकार, न्यायपालिका लाचार है। इसलिए बड़े प्रेस मालिकों को इसके लिए राजी करने का प्रयास किया जा रहा है कि वे पूरा ना सही पर इतना वेतनमान तो दें जिससे सरकार और न्यायपालिका की लॉज बची रहे।
पत्रकार क्या करें?
मीडिया पर सरकार का सफाई अभियान चलेगा तो कुलमिलाकर प्रभावित पत्रकार ही होंगे। और इसमें कब किसका नंबर आ जाए कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसे में पत्रकारों की जिम्मेदारी बनती है कि जाते-जाते ही सही देश को राजनीतिक चर्चा से ऊबार कर सभी के लिए रोजगार के अधिकार, किसानों के सभी फसलों की सरकारी खरीद हो। स्वच्छ न्यायपालिका, कार्यपालिका के लिए पूरा काम-काज आनलाइन करने जैसे मांगों पर चर्चा करने की जरूरत है। इसके लिए समाचार प्रकाशित करने, लेख लिखने और बहस करने की जरूरत है। एक पत्रकार होने के नाते हमारा दायित्व बनता है कि लोगों की विचारधारा को सही दिशा दें।
2014 के एक लेख ‘वर्तमान समय पत्रकारों के लिए अघोषित आपातकाल” के लेख में मोदी का विकास कार्य, युद्ध की ओर बढ़ती सरकार और मोदी सरकार के काम का असर 2017 में दिखेगी जैसी बातों की संभावना पहले ही थी। सपना सच्चाई से मिलता तो है वास्तविक दर्द और सपने के दर्द में अंतर होता है।
महेश्वरी प्रसाद मिश्र
पत्रकार
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