शिवराज जी, जिम्मेदारी तो बनती है

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व्यापमं महाघोटाले में देर से ही सही मगर अब देशव्यापी हल्ला मचा है… हम जैसे स्थानीय पत्रकारों को तो इस महाघोटाले की जानकारी पहले से ही थी और अपने स्तर पर इसे उजागर भी करते रहे मगर मध्यप्रदेश में चूंकि विपक्ष यानि कांग्रेस अत्यंत ही निकम्मा और नकारा रहा है, जिसके चलते वह कभी भी व्यापमं जैसे महाघोटाले को जोर-शोर से उठा ही नहीं पाया और नई दिल्ली में भी इसका हल्ला नहीं मचा सका।

पिछले दिनों आज तक के पत्रकार अक्षय सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में इसी व्यापमं महाघोटाले की खोज-पड़ताल करते हुए मौत हो गई, उसके बाद दिल्ली के मीडिया को व्यापमं घोटाले की व्यापकता समझ में आई और उसके बाद पिछले चार दिनों से इस महाघोटाले का कवरेज किया जा रहा है, जिसने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की चूलें हिला दीं। पहली बार मुख्यमंत्री इस कदर बेचैन और परेशान नजर आ रहे हैं। टीवी चैनलों पर उनकी रौतली मुखमुद्रा देखकर ही समझ में आ जाता है कि बस आंसू बहाना ही शेष है। वरना रात भर मैं सोया नहीं और अत्यंत विचलित रहा, जैसे वे अपने पुराने जुमले दोहराते नजर आए। कांग्रेस के राज में सिगरेट के पैकेटों पर नियुक्तियां-भर्तियां हो जाती थी इसकी भी दलील उन्होंने दी और खुद के द्वारा इस व्यापमं महाघोटाले की जांच करवाने का भी श्रेय लिया और यहां तक कि अपने आपको व्हिसल ब्लोअर तक बता दिया मगर मुख्यमंत्री को कई सवालों के जवाब देना पड़ेंगे कि आखिर उनकी नाक के नीचे इतने सालों तक ये महाघोटाला कैसे होता रहा और अगर कांग्रेस के राज में फर्जी भर्तियां हुईं तो क्या आपको भी इस तरह की भर्तियों का अधिकार मिल जाता है, जबकि आपने तो सिस्टम को दुरुस्त करने का दावा किया मगर आपका यह सिस्टम तो महाभ्रष्ट साबित हुआ।

पिछले कई सालों में इसकी शिकायतें भी आपको मिलती रही मगर आपने कभी भी गंभीर जांच में रुचि नहीं दिखाई और सिर्फ दिखावे के लिए एसटीएफ को मामला सौंप दिया, जबकि होना यह था कि अगर मुख्यमंत्री खुद इस महाघोटाले के प्रति गंभीर रहते और खुद पर लगे आरोपों को निराधार बताते तो वे पहली फुर्सत में इसकी जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश कर देते। वो तो अब तगड़ा हल्ला मचने और पार्टी आलाकमान द्वारा निर्देश देने पर मजबूरी के चलते सीबीआई जांच का पत्र पहले हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट को सौंपना पड़ा। भाजपा के साथ-साथ शिवराज को भी इस बात का जवाब तो देना ही होगा कि कल तक वह 2-जी स्पैक्ट्रम, कॉमनवेल्थ गेम या कोयला घोटाले पर हल्ला मचाते हुए प्रधानमंत्री से लेकर तमाम मंत्रियों से इस्तीफे मांगती रही। खुद मुख्यमंत्री ने अपनी चुनावी आम सभाओं में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर हमले बोलते हुए कहा था कि उनके राज में ये घोटाले हुए तो जिम्मेदारी उनकी कैसे नहीं बनती है और उन्हें अपने पद से  इस्तीफा देना चाहिए।

अब आज खुद मुख्यमंत्री अपने भाषणों पर ही अमल करें और इस व्यापमं महाघोटाले की जिम्मेदारी लें और इससे वे बच भी कैसे सकते हैं? (राजधर्म का तकाजा तो यही बोलता है) जो भाजपा कांग्रेस राज के घोटालों पर प्रधानमंत्री से लेकर तमाम मंत्रियों के इस्तीफे जिम्मेदारी और नैतिकता के आधार पर मांगती रही वह आज मोदी गेट से लेकर व्यापमं महाघोटाले पर अपने मुख्यमंत्रियों और केन्द्रीय मंत्री को क्लीन चिट कैसे बांट सकती है?

शिवराज जी प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को धूल धुसरित करने और हजारों छात्र-छात्राओं का भविष्य चौपट करने का अपराध आपके कार्यकाल में ही हुआ, जिसके चलते कई बेगुनाह जेलों में सड़ रहे हैं। इसलिए अदालतें क्या फैसला सुनाए और सीबीआई जांच करे या नहीं यह तो बाद की बात है मगर हाल-फिलहाल तो आप किसी भी तरह की जिम्मेदारी से बच नहीं सकते और आप खुद को अपनी पार्टी के वयोवृद्ध और अभी हाशिए पर पटक दिए गए लालकृष्ण आडवाणी के शिष्य मानते हो तो यह ना भुलें कि श्री आडवाणी ने हवाला जैन डायरी कांड में अपना नाम आने पर ना सिर्फ संसद की सदस्यता से इस्तीफा दिया, बल्कि यह घोषणा भी की थी कि जब तक इस घोटाले में वे पाक साफ साबित नहीं होंगे तब तक संसद के भीतर भी प्रवेश नहीं करेंगे, तो शिवराज जी आप कम से कम अपने गुरु का ही अनुसरण कर लें और व्यापमं महाघोटाले की जिम्मेदारी लेते हुए खुद ही पद त्याग दें, क्योंकि ये तो पहला महाघोटाला है, जिसका इतना हल्ला मचा। अभी तो डीमेट से लेकर डम्पर तक ऐसे अनेक घोटाले हैं जो पिछले वर्षों में आपके मीडिया मैनेजमेंट के चलते दबे पड़े रहे, लेकिन आने वाले समय में इन तमाम घोटालों के भी भूत जागेंगे तो सही।

लेखक-हिन्दी पत्रकार राजेश ज्वैल से सम्पर्क – 098270-20830 Email : jwellrajesh@yahoo.co.in



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