राज्य के किसी हिस्से में राजा के जाने के बाद खुशहाली और सौगातों के पदचिन्ह रह जाते हैं लेकिन अफसोस कि भरी दुपहरी में अपने प्रधामंत्री का इस्तकबाल करने को पहुंचे एक लाख से ज्यादा ब्रजवासियों को अपने ब्रज में एैसा कोई ‘चिन्ह’ दिखायी नहीं दिया। यमुना के लिये दिल्ली नाप आये पदयात्रियों के कान टी.वी. सेटों से यह सुनने को चिपके रहे कि शायद चुनाव से पहले वाले मोदी साहब एक बार बोल दें कि ‘पिछली बार यमुना माँ से सरकार की शक्ति मांगने आया था आज उस शक्ति से यमुना माँ का मैला आंचल धोने आया हूं।’’ लेकिन यमुना के हिस्से में मोदी जी का केवल यही वाक्य आया कि ‘गंगा और यमुना मेरी माँ है।’’
मथुरावासियों ने पिछले कुछ दिनों में प्रधानमंत्री के मथुरा आगमन से बड़ी उम्मीदें पाल ली थीं लेकिन उनकी आशा को कोई ‘मोल’ नहीं मिला । पूरी सभा में ना तो मथुरा के ओला पीडि़त किसानों के जख्मों का जिक्र हुआ ना प्रदूषण की भेंट चढ़ी यमुना को साबरमती की निर्मल जलधारा की याद दिलायी और ना ही शहीद हेमराज के बलिदान को सलाम हुआ। कई योजनाओं और घोषणाओं का गवाह बनने को मथुरा बेताब था लेकिन ‘ब्रज की बात’ नहीं हुई । हाँ प्रधानमंत्री ने जनधन, 12 रूपये दुर्घटना बीमा, 330 जीवन बीमा, स्वप्रमाणन अधिकार और पीएफ एकाउन्ट से लेकर पिछले 1 साल में बढ़े सैलानियों की संख्या तथा यूरिया के लिये कारखानों की क्षमता बढाने की योजना को पूरे जोर शोर से सामने रखा ।
तब की कांग्रेस सरकार की नीतियों पर जहाँ मोदी ने करारी चोट की, वहीं यह भी खुलासा किया कि अगर एक साल और कांग्रेस का राज रहता तो पूरा देश डूब जाता । दीनदयाल धाम में भारी भीड़ से भरा मैदान प्रधानमंत्री की हर बात में सुर मिलाता दिखायी दिया लेकिन सभा समाप्त होने पर लौटते जनसमूह में ब्रज की खाली झोली पर सवाल करने वाले बड़ी संख्या में ‘मन की बात’ बोलते नजर आये ।
कुछ शुभचिन्तको का कहना है कि मथुरावासी गलतफहमी के शिकार हुये हैं । असल में विशाल रैली मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल पूरा होने पर आयोजित थी ना कि मथुरा जैसे जनपद के विकास और समस्याओं को लेकर । इस रैली पर देश-विदेश की मीडिया और जनता का ध्यान लगा हुआा था । रैली स्थल के लिये मथुरा में पं. दीनदयाल धाम को चुनकर आमजनता की सरकार होने का सन्देश दिया जाना था ।
हालांकि पार्टी की और से सासंदों को प्रधानमंत्री का सम्बोधन ध्यान से सुनने की हिदायत दी गयी थी जिससे वह विपक्ष के सवालों का मुहॅंतोड़ जवाब दे सकें लेकिन पूरे भाषण में बढ़ती महगांई, रिटेल में एफडीआई पर सरकार की पलटी, क्रूड आयल के मूल्य में कमी के बावजूद पैट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों, चीन तथा पाकिस्तान के बढ़े दुस्साहस, अन्तराष्ट्रीय मंचों पर देश की आन्तरिक राजनीति पर सवाल उठाने, देश के अन्दर लहराये जाने वाले पाकिस्तानी झंण्डों जैसे सवालों का जवाब सुनने गये शुभचिन्तकों को सीधा जवाब नहीं मिला । हाँ अच्छे दिनों जैसे चुनावी जुमले पर सरकार को कोसने वाले विरोधियों को जरूर जवाब मिला है कि उनके अच्छे दिन कभी नहीं आने वाले बल्कि और बुरे दिन आ सकते हैं ।
कुल मिलाकर मथुरा की जनता को चुनाव से पहले आये मोदी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में एक ही समानता दिखायी दी कि उनके बोलने में आत्मविश्वास और सपने दिखाने का हुनर अभी भी वही पुराना रंग लिये हैं । बड़े बुजुर्गों ने कहा है कि आशावादी होना लाभदायक ही नहीं बल्कि जरूरी है । सपने देखना भी जरूरी है लेकिन उन्हें पूरा करने के लिये कीमत चुकाते समय आखें ना खोलें । कोई शक नहीं कि नरेन्द्र मोदी की ताजपोशी के बाद दुनियां में देश को नये नजरिये से देखा जा रहा है । लेकिन इस नजरिये में कमजोर भारत की बजाय शक्तिशाली और जवाबदेह भारत की तस्वीर ही दिखे, ऐसी कोशिशें होनी चाहिए । हाल ही में कश्मीर घाटी में पाकिस्तानी झण्डे लहराये जाने और चीन दौरे के समय चीनी मीडिया द्वारा भारत का विवादित नक्शा प्रसारित करने जैसी घटनाओं से देशवासियों का चिन्तित होना लाजिमी है । महंगाई जैसी जिन नितान्त जमीनी समस्याओं से निजात पाने को आम जनता ने मोदी सरकार को चुना है उन अच्छे दिनों की तलाश अभी बाकी है ।