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सुख-दुख

लफंगों से वो बेटी अकेले लड़ती रही और मीडिया वाले चुपचाप फोटो खीचते रहे

Kavindra Sachan : मेरठ की उस बेटी को मेरा सलाम! जिसने अकेले ही लफंगों से लोहा लिया.. और धिक्कार है उस इलाके की तमाशबीन जनता को, जो मूक दर्शक बनी रही.. मामला मेरठ कचहरी के पास भारी भरकम भीड़ के बीच एक लड़की ने अपनी अस्मिता और पिता की रक्षा के लिए हमलावरों पर धावा बोल दिया। इस दौरान वर्दी तमाशबीन बनी रही तो नैतिकता का प्रवचन करने वाले बुत बन गए। लोग लफंगों पर टूट पड़ने की बजाए दृश्य को अपने मोबाइल के कैमरे में कैद कर रहे थे।

(पत्रकार कविंद्र सचान के फेसबुक वॉल से)

Kavindra Sachan : मेरठ की उस बेटी को मेरा सलाम! जिसने अकेले ही लफंगों से लोहा लिया.. और धिक्कार है उस इलाके की तमाशबीन जनता को, जो मूक दर्शक बनी रही.. मामला मेरठ कचहरी के पास भारी भरकम भीड़ के बीच एक लड़की ने अपनी अस्मिता और पिता की रक्षा के लिए हमलावरों पर धावा बोल दिया। इस दौरान वर्दी तमाशबीन बनी रही तो नैतिकता का प्रवचन करने वाले बुत बन गए। लोग लफंगों पर टूट पड़ने की बजाए दृश्य को अपने मोबाइल के कैमरे में कैद कर रहे थे।

(पत्रकार कविंद्र सचान के फेसबुक वॉल से)

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Shambhu Nath Shukla : अब देखिए कि फोटोग्राफर इस दृश्य की फोटो तो खींचने में तल्लीन थे और तुर्रा यह कि उनका दावा है कि यही उनका व्यावसायिक उत्तरदायित्व है। ऐसे में मुझे वह एक जमाना याद आता है जब साल 1982 में मुझे बाढ़ की कवरेज के लिए दैनिक जागरण के तत्कालीन संयुक्त संपादक हरिनारायण निगम ने हमीरपुर भेजा। वहां हालात वाकई खराब थे। एक तरफ से बेतवा और दूसरी तरफ से यमुना ने इस छोटे से कस्बे को घेर रखा था। सिर्फ डीएम कंपाउंड में ही पानी नहीं था बाकी पूरा शहर जलमग्न। मैने कवरेज की बजाय अपने वहां के संवाददाता महेश अवस्थी के साथ मिलकर तय किया कि बाढ़पीडि़तों को भोजन बाटने में और दूसरी राहत पहुंचाने की मदद करनी चाहिए। हमारा यह प्रस्ताव वहां के तत्कालीन डीएम एसपी गौड़ को बहुत पसंद आया और उन्होंने हमारे साथ एसडीएम वीएन गर्ग को लगा दिया तथा वहां के ग्रामीण बैंक के चेयरमैन रवींद्र कौशल भी हमारे साथ हो लिए। हम नाव से उफनती बेतवा को पार कर जलमग्न गांवों में गए वहां भोजन वितरण तो किया ही उनको बचाकर लाए भी। जाहिर है इससे मैं उस मकसद में सफल नहीं हो पाया जिसके लिए मैं भेजा गया था। पर मैने सोचा कोई बात नहीं अधिक से अधिक यही तो होगा कि मुझे नौकरी से हटा दिया जाएगा। मगर जब मैं लौटकर आया और निगम साहब को सारी बात बताई तो उन्होंने कुछ नहीं कहा और उलटे मुझे पदोन्नति और मिली। कवींद्र सचान ने एक बहुत मानवीय पहलू पर गौर करने की बात कही है।

(वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला के फेसबुक वॉल से)

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