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सियासत

हर एक घंटे में क़रीब दस हज़ार किसान मुजफ्फरनगर में प्रवेश कर रहा है!

यूसुफ़ किरमानी-

आप लोगों को पता है यूपी में कल क्या होने जा रहा है… मुज़फ़्फ़रनगर में दो लाख किसान जमा हो चुके हैं। कल महापंचायत है। मोदी-योगी-कट्टर की सरकार किसानों को रोकने में जुटी हुई है लेकिन कुछ बस में नहीं है।

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मुज़फ़्फ़रनगर जाने वाली हर सड़क बता रही है कि किसानों का ग़ुस्सा मोदी-योगी सरकार के ताबूत में आख़िरी कील साबित होगा। क़रीब दो लाख किसान मुज़फ़्फ़रनगर में डेरा जमा चुका है। किसान नेता राकेश टिकैत के पास सूचना पहुँची है कि तमाम जगहों पर किसानों की ट्रॉलियों को रोका जा रहा है। टिकैत ने चेतावनी दी है कि अगर ऐसा हुआ तो हम हर बैरियर तोड़ देंगे।

इस बीच पुलिस की लोकल इंटेलिजेंस के लोगों का कहना है कि हर एक घंटे में क़रीब दस हज़ार किसान मुजफ्फरनगर में प्रवेश कर रहा है। जो किसान आज पहुँचे हैं उनके रहने और खाने-पीने की व्यवस्था आस पास के गाँवों में की गई है। उसी गाँव के लोगों ने खाने की व्यवस्था कर रखी है। हालाँकि किसान ट्रॉलियों में अपना खुद का राशन भी लेकर आये हैं।


लाल बहादुर सिंह-

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मुजफ्फरनगर महारैली की ललकार ! बचाओ देश, बदलो सरकार ! किसान-आंदोलन देश बचाने की लड़ाई बनता जा रहा है। देश अभूतपूर्व किसान-उभार के मुहाने पर ! किसान आन्दोलन देश में नीतिगत बदलाव की लड़ाई का एक बड़ा राष्ट्रीय मंच बनने की ओर बढ़ रहा है !

आज 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले होने जा रही ऐतिहासिक महारैली की पूर्वसंध्या पर जारी बयान में राकेश टिकैत ने कहा, ” इस सरकार से किसान कोई उम्मीद ना हीं करें तो ठीक है। किसान को अब सत्ता परिवर्तन की ही लड़ाई लडऩी होगी। किसान नौ महीने से देश की राजधानी को घेरे बैठे हैं। लेकिन केंद्र सरकार ने आज तक शहीद हुए किसानों के बारे में भी कोई शोक संदेश नहीं भेजा। यह सरकार कुछ कदम उठायेगी ऐसी उम्मीद नहीं दिखती’

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‘हमें अपनी पगड़ी के साथ फसल और नस्ल भी बचानी है वर्ना आने वाली पीढिय़ां हमें माफ नहीं करेंगी। इसके लिए फिर से यह आजादी की लड़ाई छिड़ चुकी है। तीनों कृषि बिल पूरी तरह से देश को विदेशी हाथों में सौंपने की तैयारी है। पहले एक ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत में आई थी। उसने देश को गुलाम बना लिया था और अब तो ईस्ट, वेस्ट, नॉर्थ व साउथ सभी दिशाओं से अनगिनत कम्पनियां देश को निगलने के लिये अपना जाल फैला चुकी हैं।’

संयुक्त किसान मोर्चा ने इसके बारे में दावा किया है कि, “मुजफ्फरनगर में, दुनिया के अब तक के सबसे बड़े किसानों के जमावड़े में लाखों किसानों के शामिल होने की उम्मीद है, जहां से संयुक्त किसान मोर्चा के मिशन उत्तर प्रदेश की शुरुआत होगी। “

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वैसे तो किसानों की सारी ही पंचायतें और रैलियों में भारी भीड़ हो रही है, लेकिन ऐसा लगता है कि यह रैली पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ देगी । इस रैली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह कोई स्थानीय या एक प्रदेश की रैली नहीं रह गयी है, बल्कि पूरे देश के किसानों का महाकुंभ बन गयी है। यहां से देश के अलग अलग राज्यों और उत्तर प्रदेश के विभिन्न अंचलों की ओर लौटने वाले किसान जो सन्देश और ऊर्जा लेकर वापस लौटेंगे, वह आंदोलन की लहर को पूरे देश, विशेषकर UP के गांव-गांव तक फैला देगी।

किसान नेताओं ने इस महारैली के सामाजिक-राजनैतिक महत्व की शिनाख्त बिल्कुल सही किया है । इसी मुजफ्फरनगर में 2013 में प्रायोजित दंगों ने समाज को बांटने का काम किया था, और उसी साम्प्रदयिक विभाजन की लहर पर सवार होकर मोदी का अश्वमेघ का घोड़ा पूरे उत्तर भारत में सरपट दौड़ा था और मोदी 2014 में दिल्ली की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब हुए थे तथा उसी आवेग में 2017, UP में प्रचण्ड बहुमत ( 325/406) से भाजपा सत्ता में आई और ध्रुवीकरण की उस राजनीति के पोस्टर-ब्वाय योगी का राज्यारोहण हुआ था।

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आज इतिहास का चक्र 180 डिग्री घूम गया है, उसी मुजफ्फरनगर से हिन्दू-मुस्लिम-सिख भाईचारे की मिसाल कायम करता किसान एकता का कारवां एक सैलाब की तरह आगे बढ़ रहा है, किसानों के आक्रोश का यह सैलाब न सिर्फ 22 में योगी और 24 में मोदी को बहा कर ले जाएगा, बल्कि नफरत और विभाजन की सियासत को ज़मींदोज़ करने का काम करेगा।

मोदी और योगी की लुढ़कती लोकप्रियता के बीच मुजफ्फरनगर की यह अभूतपूर्व रैली तथा 25 सितंबर को एक साल के अंदर होने जा रहा तीसरा भारत बंद साफ संकेत है कि देश एक युगान्तकारी बदलाव के मुहाने पर खड़ा है, किसानों का यह विराट उभार न सिर्फ इस सरकार वरन भविष्य में आने वाली किसी भी सरकार के लिए कृषि क्षेत्र में नवउदारवादी नीतियों के क्रियान्वयन और बड़ी पूँजी के प्रवेश को असम्भव बना देगा और वैकल्पिक नीतियों के आधार पर राष्ट्रीय पुनर्निर्माण तथा पुनर्जीवन के जनान्दोलन का प्रस्थान बिंदु बनेगा।

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