अजय कुमार, लखनऊ
उत्तर प्रदेश की सियासत अब दिल की जगह दिमाग के सहारे परवान चढ़ रही हैै। सभी दलों के सूरमा ‘लक्ष्य भेदी बाण’ छोड़ रहे हैं। यही वजह है बसपा सुप्रीमों मायावती अपने दलित वोट बैंक को साधे रखने के लिये बीजेपी को दलित विरोधी और मोदी की सरकार को पंूजीपतियों की सरकार बताते हुए कहती हैं कि यूपी में बीजेपी की हालत पतली है, इसलिये वह बसपा का ‘रिजेक्टेड मॉल’ ले रही है तो मुसलमानों को लुभाने के लिये बीजेपी को साम्प्रदायिक पार्टी करार देने की भी पूरजोर कोशिश कर रही हैं। आजमगढ़ की रैलीम में मायावती ने यूपी चुनाव जीतने के लिये बीजेपी पाकिस्तान से युद्ध करने की सीमा तक जा सकता है, जैसा बयान मुस्लिम वोटों को बसपा के पक्ष में साधने के लिये ही दिया गया था। वहीं भाजपा और सपा 30 के फेर में फंसे हैं। चुनावी बेला में हमेशा की तरह इस बार भी सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिये अयोध्या तान छेड़ दी हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह कह रहे हैं कि देश की एकता के लिये 16 के बजाये 30 जानें भी जाती तो वह पीछे नहीं हटते।
मुलायम का उक्त बयान उनकी वोट बैंक की सोची-समझी राजनीति का हिस्सा है। मुलायम यहीं नहीं रूके उन्होंने विवादित ढांचे को मजिस्द बताते हुए कहा कि अयोध्या में मस्जिद बचाने की कार्रवाई न करते तो देश का मुसलमान कहता कि उनके धर्मस्थल की हिफाजत नहीं हो सकती तो यहां रहने का औचित्य क्या है ? उनका विश्वास को बचाये रखना हमारा कर्तव्य था। एक तरफ तो मुलामय वोट बैंक की राजनीति करते हैं दूसरी तरफ सीना ठोंक कर कहते हैं कि अन्याय का विरोध और न्याय का साथ देना ही समाजवाद है। यह तय है कि मुलायम का यह बयान लम्बे समय तक चुनावी सुर्खिंयां बटोरता रहेगा। इस बयान के सहारे सपा-भाजपा वोटों के धु्रवीकरण की भी कोशिश करेंगे। इस बात का अहसास मुलामय का बयान आते ही होने भी लगा है। कोई कह रहा है कि मुलायम सिंह एक बार फिर मुल्ला मुलायम बनने को बेताब हो गये हैं तो किसी को लगता है कि अखिलेश सरकार की विफलताओं पर चर्चा न हो इस लिये मुलायम साम्प्रदायिक कार्ड खेल रहे हैं।
प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। मुलायम सिंह का कारसेवकों के प्रति इतना रूखा व्यवहार देखकर धर्माचार्य आग बबूला हो गये। मुलायम सिंह यादव के बयान से आक्रोशित अयोध्या में सबसे पहली प्रतिक्रिया हई। आचार्य पीठ दशरथ महल बड़ा स्थान के महंत बदुगाद्याचार्य स्वामी देवेंद्रप्रसादाचार्य ने मुलायम के बयान को गैर-जिम्मेदाराना और संवेदनहीन करार दिया। उन्होंने कहा राजनेता किसी एक समूह या संप्रदाय का नहीं होता। मुलायम सिंह का यह बयान लोकशाही को खतरे में डालने वाला है। वहीं जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य के अनुसार वोट बैंक की मजबूरी सभी दलों और नेताओं के लिए है पर इस फेर में संवेदना का ख्याल रखा जाना चाहिए।
मुलायम सिंह का यह बयान उन दिनों की याद दिला रहा है, जब उन्होंने कारसेवकों को रोकने के चक्कर में अयोध्या की परिक्रमा को ही प्रतिबंधित कर दिया था। रामवल्लभाकुंज के अधिकारी राजकुमारदास ने कहा, कारसेवक सही कर रहे थे या गलत। यह अलग बहस है पर मुलायम सिंह का कारसेवकों के बारे में ताजा बयान रामभक्तों को अपमानित करने वाला है और उन्हें इसका खामियाजा भुगतना होगा। रंगमहल के महंत रामशरण दास ने कहा, मुलायम सिंह का बयान इस तक्ष्य का द्योतक है कि कारसेवकों पर गोली राजनीतिक लाभ लेने के लिए चलवाई गई थी और ऐसे नेताओं के बारे में लोगों को नए सिरे से विचार करना होगा। नाका हनुमानगढ़ी के प्रशासक पुजारी रामदास ने कहा, मुलायम सिंह का बयान अलगाव को बढ़ावा देने वाला है और चुनाव नजदीक देखकर वे ऐसे ऊल-जुलूल बयान देकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराना चाहते हैं।
निष्काम सेवा ट्रस्ट के व्यवस्थापक रामचंद्रदास ने कहा, कुछ लोगों को अपना हित साधने के लिए कोई भी कीमत अदा करने की आदत होती है, मुलायम सिंह इन्हीं में से एक हैं। मुलायम का बयान युवा सीएम अखिलेश यादव के लिये मुश्किल पैदा कर सकता है जो विकास के नाम पर 2017 का चुनाव लड़ना चाहते थे। निश्चित तौर पर अखिलेश से भी मीडिया सवाल पूछेगी। उन्हें बताना पड़ेगा कि इस मुद्दे पर उनकी सरकार का क्या नजरिया है।
वैसे बीजेपी भी वोट बैंक की सियासत में कहीं पीछे नहीं है। बीजेपी के रणनीतिकार जिन्होंने दलित-ब्राहमण वोटरों को लुभाने के लिये पार्टी के दरवाजे खोल दिये थे को शायद अब अपनी गलती का अहसास होने लगा है। इसी लिये पार्टी के निष्ठावान नेताओं/ कार्यकर्ताओं की नाराजगी को भांप कर पार्टी का थिंक टैंक अलाप करने लगा हैं कि 30 से अधिक बाहरी (दलबदलूओं) नेताओं को टिकट नहीं दिया जायेगा। पिछले कुछ समय से जिस तरह से बीजेपी दलबदलुओ के लिये पनाहगाह बनी हुई है, उससे बीजेपी के उन नेताओं के बीच बेचैनी बढ़ना स्वभाविक है जो लम्बे समय से विधान सभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन दलबदलुओं के कारण उनकी दावेदारी कमजोर होती जा रही थी। कांग्रेस ने तो मुसलमानों और ब्राहमणों को लुभाने के लिये दिल्ली से शीला दीक्षित और गुलाम नबी आजाद को ही मैदान में उतार रखा है। कांग्रेस मुजफ्फरनगर दंगों, दादरी कांड और मथुरा-बुलंदशहर की वारदातों को उछाल कर सपा-भाजपा पर हमलावार है।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
sanjeev singh thakur
September 1, 2016 at 5:17 am
Ajay Ji,
Sateek lekh hai apka. Excellent