दैनिक भास्कर के पूर्व पत्रकार ने लखनऊ में फ्लैट की रजिस्ट्री के लगभग 7 साल बाद भी बिल्डर दिनेशमणि रामनरेश तिवारी (पोलार्स ग्रुप) द्वारा फ्लैट पर भौतिक कब्जा नहीं मिलने के चलते योगी आदियत्यनाथ को पत्र भेजकर न्याय की गुहार लगाई है. उनकी मांग है कि, फ्लैट का सौदा तत्काल प्रभाव से रद्द करवाने और मेरे द्वारा अदा किए गए फ्लैट के कुल मूल्य यानी 16,00,000/- पर पहले दिन से 12% वार्षिक ब्याज सहित मुझे पूरी धनराशि अविलंब वापस करवाई जाए.
धर्मेंद्र प्रताप सिंह-
मैं, पूर्व में ‘दैनिक भास्कर’ का प्रिंसिपल करेस्पांडेंट हुआ करता था। मुंबई में रहते हुए भी बरसों से इसलिए बेरोजगार हूं, क्योंकि मैंने कंपनी से मजीठिया अवार्ड के मुताबिक वेतन की मांग कर ली थी तो कंपनी ने झूठे आरोप लगा कर मुझे घर बिठा दिया। हालांकि यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है, पर इसी कारण मुझे मुंबई का अपना फ्लैट बेचना पड़ गया।
उपरोक्त फ्लैट की बिक्री से ही मैंने 22 नवंबर, 2016 को लखनऊ की ‘पोलार्स इन्फ्रावेंचर्स एलएलपी’ से एक फ्लैट बुक किया था और 24 जनवरी, 2017 को पूरे पैसे (16,00,000/-) अदा कर दिए थे। इस फ्लैट की रजिस्ट्री 15 मई, 2017 को हुई। मेरा यह फ्लैट बाबू बनारसी दास यूनिवर्सिटी के करीब स्थित आतिफ विहार कॉलोनी में बरसों से निर्माणाधीन ‘प्राजस टॉवर- 1’ के प्रथम तल पर है, जिसका क्रमांक 109 है।
इस फ्लैट की बुकिंग के समय बिल्डर दिनेशमणि रामनरेश तिवारी द्वारा मुझे प्रस्ताव दिया गया था कि यदि मैं दो साल बाद पजेशन मिलने वाली बिल्डिंग में फ्लैट बुक करता हूं तो वह एक प्रतिशत मासिक दर के हिसाब से फ्लैट का पजेशन मिलने तक मुझे प्रति महीने 16,000/- रुपए देगा, किंतु मैंने कहा कि नहीं, मुझे चार-छह महीने में पजेशन मिल जाने वाला फ्लैट चाहिए। इसलिए हमारे बीच तय हुआ था और इस बात का उल्लेख अग्रीमेंट में स्पष्ट रूप से है कि मुझे ‘प्राजस’ के उक्त फ्लैट का भौतिक कब्जा अक्टूबर, 2017 के प्रथम सप्ताह में दे दिया जाएगा।
लेकिन बिल्डर ने ऐसा नहीं किया… जब मैंने अक्टूबर, 2017 में इस बाबत उससे बात की तो उसने रेती- सीमेंट के बढ़े भाव के साथ-साथ कभी नोटबंदी तो कभी सरकार द्वारा मान्य ‘रेरा’ कानून का हवाला देते हुए वादा किया कि मुझे तीन महीने बाद फ्लैट का कब्जा मिल जाएगा। तिवारी से यह जवाब मिलने पर जब मैंने इस दौरान अपने होने वाले नुकसान की बात की तो उसने वादा किया कि ठीक है… चूंकि वह अगले तीन महीने के अंदर पजेशन दे देगा, इसलिए अक्टूबर, 2017 से जनवरी, 2018 तक वह मुझे 10,000/- प्रति माह बतौर नुकसान-भरपाई अदा करेगा।
मुझे उक्त राशि वह देने भी लगा था। इसकी शुरुआत 20 नवंबर, 2017 को हुई, जब मैंने पहली किश्त के रूप में 10,000/- की रकम प्राप्त की। लेकिन चूंकि वह जनवरी, 2018 में भी फ्लैट का पजेशन देने में असमर्थ रहा तो इसके चलते तिवारी द्वारा दस हजार रुपए देते रहने का यह सिलसिला मार्च, 2018 तक भी अनवरत चलता रहा… अप्रैल में उसने कोई राशि नहीं भिजवाई, फिर मई में उसकी तरफ से मैंने दस हजार रुपए और प्राप्त किए।
इस बीच हमारी बातचीत होती रही… तिवारी के स्टाफ (मि. शफी, गिरिजेश शर्मा और श्री बलराज शर्मा) द्वारा बताया जाता रहा कि कार्य प्रगति पर है और मैं जब भी लखनऊ पहुंचूंगा, मुझे अपने फ्लैट पर भौतिक कब्जा मिल जाएगा। लेकिन मान्यवर, मई के तीसरे सप्ताह में जब मैं अपने परिवार संग लखनऊ पहुंचा और साइट पर जाकर हमने बिल्डिंग की प्रगति का जायजा लिया तो यह देख कर हमें घोर निराशा हुई कि वहां साइट पर न तो कोई काम चल रहा था और न ही बिल्डिंग के निर्माण में कोई खास प्रगति हुई थी।
स्वाभाविक है कि इस ‘ढिलाई’ की वजह जानने के लिए मैं तिवारी से मिलता… मैंने जब तिवारी से मुलाकात की, तब एक नई ‘डेडलाइन’ देते हुए उसने विश्वास दिलाया कि जुलाई, 2018 में मुझे कब्जा जरूर मिल जाएगा। मैंने अपने बकाए की मांग करते हुए उससे एक और बात स्पष्ट तौर पर कही कि यदि जुलाई में फ्लैट का कब्जा नहीं दिया तो वह मुझे मिल रही राशि में बढ़ोत्तरी करेगा।
अफसोस कि वह मुझे जुलाई, 2018 में भी फ्लैट का कब्जा नहीं दे पाया। इसका कारण जानने के लिए संपर्क करने पर 19 जुलाई, 2018 को तिवारी ने फोन पर मुझसे कहा- ‘अभी तो कब्जा नहीं दे पाऊंगा। हां, काम चालू है और नवरात्रि… अक्टूबर में कब्जा दे दूंगा।’ मान्यवर, तिवारी के इस रूखे जवाब से मेरा संतुष्ट होना तो दूर, उल्टे दुखी होकर मैंने उसी दिन उसकी कंपनी (पोलार्स) की ई-मेल आईडी ([email protected]) पर एक मेल भेज कर जानने की कोशिश की कि ‘आप और आपकी कंपनी के अनप्रोफेशनल रवैये के विरुद्ध मैं संबंधित अथॉरिटी में क्यों न शिकायत दर्ज करवाऊं?’
आश्चर्य की बात है (इसे उसका बिल्कुल गैर जिम्मेदाराना व्यवहार/व्यवसाय भी कहा जा सकता है) कि तीन-तीन बार लिखित प्रश्न पूछने के बाद भी उसने मेरे पत्र का उत्तर आज तक नहीं दिया है। यही नहीं, नवरात्रि (अक्टूबर, 2018) में जब मैंने पजेशन प्राप्त करने के संदर्भ में तिवारी से पुनः संपर्क किया तो उसके द्वारा मुझे एक और डेट का झुनझुना पकड़ा दिया गया- ‘जनवरी, 2019’। जाहिर है कि तिवारी के इस असहयोग के चलते मेरे साथ-साथ मेरा पूरा परिवार किस मानसिक प्रताड़ना से गुजरते आया है, उसकी अभिव्यक्ति मैं यहां नहीं कर पा रहा हूं। तिवारी की यह दादागिरी ही थी कि उसने नवंबर, 2018 से नुकसान भरपाई की रकम भी देनी बंद कर दी (जिसे मैं 21 महीने बाद जुलाई/अगस्त, 2020 में बड़ी मशक्कत के बाद पा सका था) और उसका घमंड तो ऐसा है कि वह खुद को आधुनिक दौर का ‘रावण’ कहने में भी शर्म महसूस नहीं करता है!
खैर, तिवारी ने एक के बाद एक वादे तोड़े… जनवरी, 2019 में पूछने पर उसने पजेशन की एक नई तारीख बता दी- ‘राम नवमी।’ यानी उसने इस बार मुझसे अप्रैल, 2019 के दूसरे सप्ताह में पजेशन देने का वादा किया, मगर जो अपने वादे को सही और शांतिपूर्वक निभा दे, वह बिल्डर दिनेशमणि रामनरेश तिवारी ही नहीं। अप्रैल- मई, 2019 सहित नवंबर / दिसंबर, 2019 और मार्च- 2020, में भी उसने पजेशन देने की नई तारीख दी… यहां तक कि जुलाई, 2020 में लिखित भरोसा दिया कि अक्टूबर, 2020 में पजेशन दे देगा, मगर उस पर भी वह खरा नहीं उतरा। हम दोनों की आखिरी मुलाकात 12 अक्टूबर, 2020 को लखनऊ में हुई थी, जिसके बाद से आज तक बहुत प्रयास करने के बावजूद तिवारी से मेरा कोई संपर्क नहीं हो पाया है… तिवारी ने मेरा फोन ब्लॉक करके रखा है!
इस फ्लैट का पजेशन पाने के लिए हमारा परिवार अभी तक कम से कम 12 से 14 बार मुंबई से लखनऊ जा चुका है… इसमें भी मेरा लाखों रुपए खर्च हो चुका है, पर यह बात अब पूरी तरह साफ हो चुकी है कि दिनेशमणि रामनरेश तिवारी नामक यह बिल्डर एकदम फ्राड है… सुना है कि ‘यूपी रेरा’ से मिली मोहलत (दो साल का टाइम एक्सटेंशन) भी दिसंबर, 2020 में खत्म हो चुकी है।
मैंने जनवरी, 2022 में ‘यूपी रेरा’ में लिखित शिकायत की थी, लेकिन जवाब मिला कि आनलाइन शिकायत ही स्वीकार की जाएगी। तत्पश्चात मार्च, 2023 में आनलाइन शिकायत की तो 4-5 तारीख और लगभग एक वर्ष उपरांत ‘यूपी रेरा’ का आया दुखद आदेश (LKO162/03/106635/2023) मुझे मरने के लिए मजबूर करने वाला है… आदेश के मुताबिक, चूंकि मेरे फ़्लैट की रजिस्ट्री हो चुकी है, इसलिए अब हमें सक्षम न्यायालय की शरण में जाना होगा ! तो क्या ‘यूपी रेरा’ ने इस मामले में पहले से कोई स्पष्ट नियम नहीं बना रखा है? इसका एक मतलब यह भी हुआ कि ‘यूपी रेरा’ किसी के फ्लैट की रजिस्ट्री तो करवा सकता है, लेकिन रजिस्ट्री के बाद बिल्डर यदि खरीददार को कब्जा देने में बरसों तक रुलाता/नचाता रहे तो ‘नो ज्यूरीडिक्शन’ के नाम पर ‘यूपी रेरा’ हमारे लिए कुछ नहीं कर सकता है?
अतः श्रीमान, इस प्रार्थना-पत्र के द्वारा मैं आपसे विनम्र अनुरोध करता हूं कि आप जबकि भारतवर्ष के सर्वश्रेष्ठ न्यायप्रिय मुख्यमंत्री के रूप में जाने जा रहे हैं, संबंधित मामले में मुझे भी यथोचित न्याय देने की कृपा कीजिए ! इसी दौरान 15 दिसंबर, 2023 को मैंने अपनी बेटी का विवाह किस हालात में किया, मैं बता नहीं सकता हूं सर… इसलिए कृपया मेरे फ्लैट का सौदा तत्काल प्रभाव से रद्द करवा कर और मुझ द्वारा फ्लैट के लिए अदा किए गए कुल मूल्य यानी 16,00,000/- (इसमें नकद दिया गया 1,00,000/- शामिल है) पर पहले दिन से 12% वार्षिक ब्याज सहित रजिस्ट्री में आए कुल खर्च (1,20,000/-) को मिला कर मेरी पूरी धनराशि (तिवारी ने मुझे नुकसान-भरपाई के नाम पर जो भी रकम दी है, वह इसमें से काटा जा सकता है) मुझे अविलंब वापस करवाने की कृपा करें, मुझ सहित मेरा पूरा परिवार सदैव आपके आभारी रहेंगे! मुख्यमंत्री जी, इसके लिए जो भी औपचारिकताएं होंगी, मैं उसे पूरा करने के लिए सहर्ष तैयार हूं।
लेखक धर्मेन्द्र प्रताप सिंह पत्रकार एवं न्यूजपेपर एंप्लॉईज यूनियन ऑफ इंडिया के महासचिव हैं. उनसे संपर्क 9920371264 पता: एम-9/बी-203, प्रेस एन्क्लेव आरंभ को-आप. हा. सोसायटी लि., प्रतीक्षा नगर, सायन (पूर्व), मुंबई-400022, ई-मेल: [email protected] है।