विजय शंकर सिंह-
सूचना/प्रसारण मंत्रालय ने, TV चैनलों के भड़काऊ कंटेंट और डिबेट के खिलाफ एक एडवायजरी जारी की थी। पर यदि कोई चैनल उस एडवाइजरी की उपेक्षा करके अपना भड़काऊ चरित्र बनाए रखता है तो, सरकार उसके खिलाफ क्या कार्यवाही करेगी? कम से कम ऐसे चैनलों को, सरकार विज्ञापन देना तो बंद कर ही सकती है। नफ़रत के कारोबार में तो यह फंडिंग सरकार की ही मानी जाएगी।
विश्लेषक Soumitra Roy की यह पोस्ट पढ़ें-
नफ़रत फैलाने वाले फ्रिंज चैनल सुदर्शन टीवी को 2011-12 से 2014 तक सिर्फ़ 3.5 लाख के सरकारी विज्ञापन मिले।
फिर मोदीजी ने कुर्सी पर बैठते ही 20 गुना ज्यादा, यानी 23 लाख के विज्ञापन सुरेश चव्हाणके चैनल को दिए।
2017-18 में विज्ञापन की खैरात 81.3 लाख पहुंच गई। बाकी गोदी चैनल सरकारी मदद के लिए तरसते रहे।
2016-17 में सुदर्शन को 8 करोड़ का नुकसान हुआ। उसका दीवाला निकल गया। अगले साल फिर 2 करोड़ का झटका लगा।
फिर हुआ ये कि चैनल ने ICRA को वित्तीय जानकारियां देनी बंद कर दीं। यानी, पैसा तो खूब आ रहा है, माल दबाया जा रहा है।
ED, IT, CBI सब चुप हैं। प्रधानमंत्री चुप हैं। ज़हर फैलाने और बलात्कार का आरोपी सुरेश चव्हाणके धड़ल्ले से नफ़रत परोस रहा है।
ऐसे बहुत से नफरती फ्रिंज तत्व ज़हर बोते बाहर घूम रहे हैं। देश की इमेज सिर्फ नूपुर शर्मा ने ही नहीं बिगाड़ी। मोदी, अमित शाह और अनुराग ठाकुर भी उतने ही दोषी हैं।
आज नसीरुद्दीन शाह ने मोदीजी से नफरती बयानों को रोकने की अपील की है। अरब मुल्क लिखित माफ़ी मांग चुके हैं।
सत्ता खामोश है। खामोशी एक मौन समर्थन है नफरत को। खामोशी एक बहाना है आग बुझाने का।
दिक्कत यह है कि आग लगाने वाले ही यह काम कर रहे हैं।
(ग्राफ- RTI से मिली जानकारी के आधार पर)