
Hemant Sharma : गुरूवर नामवर सिंह अब ठीक है।उनका वेन्टिलेटर हट गया है। रक्तचाप, ह्यदयगति सामान्य है।चेतना लौट आई है। आज सुबह से हल्की फुलकी बात भी कर रहे है। दिमाग मे चोट है इसलिए थोड़ी गफ़लत है। बातचीत भटक रही है। पसलियों के जुड़ने मे वक्त लगेगा। फेफड़ों में संक्रमण बना हुआ है। डॉक्टरों का कहना है स्थिति मे सुधार है। पर उनकी उम्र को देखते हुए ,अभी ख़तरे से बाहर नही कहा जा सकता। मैं उनसे आज सुबह आई सी यू में मिला। मुझे देखते ही वे पहचान गए। हालाँकि मैं आई सी यू की वर्दी में था सिर पर टोपी चेहरे पर मास्क।सामान्य आदमी को पहचानने में वक्त लगता। वे तो गम्भीर बीमारी के सदमें में है। मुझे सिर्फ अपना नाम बताना पड़ा। और वे हमेशा की तरह मुस्करा दिए।
‘आ गईला। अब सब ठीक हो जाईं। हमार पट्टी हटवावा।’ उनके दोनों हाथ में पट्टियाँ बँधीं है। ताकि वे तन्द्रा में अपनी जीवन रक्षक प्रणाली न हटा दे।मैने कहा डॉक्टर से बात हो गयी है वो एक दिन बाद खोल देंगें। वे इस बात पर अडे रहे कि तुम कहो तुम्हारे कहने से खोल देगें। फिर इधर उधर की बात करने लगे। जो ज्यादा समझ में नही आ रही थी। फिर बोले तुम्हारे किताब की समीक्षा करनी है मुझे। मैंने उनसे बताया कि आपही ने भूमिका लिखी है वे बोलते रहे मुझे दूरदर्शन पर समीक्षा करनी। मै उनकी गफ़लत समझ गया था। इसलिए फिर उनके कहे सिर्फ हॉं में हॉं मिलाने लगा। तब तक डॉक्टर आ गए थे। उन्होने बताया गुरू जी पहले से ठीक है। इतनी जल्दी ऐसी रिकवरी की उन्हे उम्मीद नही थी। यह नामवर जी की जिजीविषा और इच्छा शक्ति है। जिसने उनकी रिकवरी को रफ़्तार दिया।
बिस्तर पर नामवर जी को लाचार देख मन उद्दीग्न हो गया। जिस आदमी को पूरे ताप के साथ मैंने देखा। जम्मू से लेकर त्रिवेन्द्रम तक जिस व्यक्ति की तेजस्विता के सामने हिन्दी विभाग काँपते थे। जिसकी मर्ज़ी तीस बरस तक हिन्दी आलोचना की धारा तय करती थी। जिसका कहा एक एक शब्द हिन्दी आलोचना का बीज शब्द बनता था। मैंने उस नामवर की तेजस्विता का सूर्य देखा है।आने वाली नस्ले हम पर रश्क भी कर सकती हैं कि मै गुरूदेव के प्रिय शिष्यों में रहा हूँ।
काशी हिन्दू विश्वविघालय के हिन्दी विभाग में जब वे आते सेमिनार के लिए तब हम उनसे मिल कर ही आलोचना के अरस्तू बन जाते थे। नामवर जी बहुत समय तक बीएचयू में आते नही थे। क्यो कि एक लोकसभा का चुनाव लड़ने के कारण गुरूदेव को दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में बीएचयू छोड़ना पड़ा था। फिर उन्होने आना जाना बन्द किया पर जब उनके व्यक्तित्व का सूर्य पूरी प्रखरता पर था। कुलपति के निवेदन पर वे विश्वविघालयी संगोष्ठियों में आने लगे। गुरू देव की कृपा तभी से मिलने लगी थी। नामवर सिंह हिन्दी के इकलौते आलोचक है। जो आदिकाल से लेकर उत्तर आधुनिक युग तक बारह सौ बरस के हिन्दी साहित्य की किसी भी कृति की समीक्षा के अधिकारिक विद्वान है।
मै जब जनसत्ता में आया तो मेरी जो रिपोर्ट उन्हे अच्छी लगती फ़ौरन मुझे फ़ोन करते। वे जनसत्ता के नियमित पाठक है। बाद के दिनों में वे तमाशा मेरे आगे के कॉलम पर मुझे नियमित फ़ोन करते। “वाह ! पंडित जी अईसन कौउनव बनारसीए लिख सकला।” गुरूदेव जब मुझे मिलते। हमेशा मेरे लिखे हुए किसी लेख की चर्चा करते। और हर बार कुछ नया लिखने के लिए प्रेरित करते। अयोध्या वाली किताब तो हर इतवार तगादा कर के उन्होने ही लिखवाई।
आज उन्ही हिन्दी साहित्य के लाईट हाउस को एम्स के ट्रामा सेन्टर में निढाल पड़ा देख रहा था। गुरुदेव जल्द स्वस्थ हो जाएँ, इसी प्रार्थना और उम्मीद के साथ एम्स से वापिस लौटा। नामवर सिंह के नाम मे वर जुड़ा है। ये यश का वर है। जिजीविषा का वर है। लोकप्रियता का वर है। ये नाम की शाश्वतता का वर है। हम सौभाग्यशाली हैं कि हमने लंबे समय तक इस वर की छत्रछाया में सांस ली है। ये छत्रछाया दीर्घजीवी हो।
बनारस निवासी वरिष्ठ पत्रकार और टीवी9हिंदी के एडिटर इन चीफ हेमंत शर्मा की एफबी वॉल से. ज्ञात हो कि अपने घर में गिर जाने से नामवर सिंह बुरी तरह जख्मी हो गए थे.